अद्वितीय शख्सियत सर्वस्व-दानी श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी

दशम पातशाह श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी विश्व के धार्मिक इतिहास में वह रहबर हैं, जिनका जीवन और शख्सियत मानवता के लिए प्रकाश स्तम्भ है। गुरु साहिब जी ने अपना सम्पूर्ण परिवार धर्म और मानव मूल की मज़बूती और अत्याचार के खात्मे के लिए कुर्बान किया। यह कोई छोटी बात नहीं है कि गुरु साहिब ने अपना पूरा परिवार बलिदान करके भी कोई गिला नहीं किया, बल्कि करता पुरख का शुक्राना ही किया। दशमेश पिता जी का सारा जीवन ही पूरी मानवता भाव हर धर्म, हर वर्ग, हर फिरके के लिए एक समान था। आप की क्रांतिकारी शख्सियत को इतिहासकारों ने अपनी-अपनी समझ के अनुसार बयान किया है परन्तु उनकी शख्सियत का सम्पूर्ण विवरण करना मानवीय समझ से परे है। हम गुरु साहिब जी के जीवन दर्शन के आधार पर उनकी शख्सियत को शब्दों में बयान तो करते हैं लेकिन हमारे शब्द सीमित हैं और गुरु साहिब की शख्सियत की मुकम्मल बयानी संभव नहीं है।
साहिब श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी की दृढ़ता, सब्र और संयमपूर्ण अद्वितीय जीवन गाथा समुची मानवता में हक-सच के लिए जूझने का जज़बा भरने और धर्म के उभार वाली है। श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी के जीवन का उद्देश्य ही धर्म की स्थापना, मज़लूमों की रक्षा और अत्याचार का डटकर मुकाबला करना था। गुरु साहिब ने अपने उद्देश्य को ‘बचित्तर नाटक’ में स्पष्ट किया है।
श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी का प्रकाश भारतीय इतिहास में एक इन्कलाब की शुरुआत थी। उस समय समाज में मानवीय आज़ादी को कायम रखना असंभव लगता था। उन्होंने 9 वर्ष की छोटी आयु में अपने पिता 9वें पातशाह श्री गुरु तेग बहादर साहिब को मज़लूमों और धर्म की रक्षा के लिए शहादत देने के लिए भेजा, खालसा पंथ की स्थापना की, अत्याचार विरुद्ध अनेक धर्म युद्ध लड़े और निर्जीव हो चुके लोगों में नया उत्साह भरा। गुरु साहिब जी ने लोगों में हिम्मत और दिलेरी भरने के लिए श्री आनंदपुर साहिब की पहाड़ियों में रणजीत नगारे पर थाप लगवाई, केसरी निशान साहिब लगाया, घोड़सवारी और शस्त्रविद्या का प्रबंध किया। इसके साथ ही गुरु जी ने लोगों में बहादुरी पैदा करने के लिए वीर-रस साहित्य की रचना की और करवाई, जिसने ऐसा करिश्मा दिखाया कि गुरु के सिख सवा-सवा लाख के साथ अकेले लड़ गये।
श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी द्वारा खालसा पंथ की स्थापना की बात करें तो यह पूरी दुनिया के धार्मिक इतिहास को प्रभावित करने वाली घटना थी। इस घटना के साथ सन् 1699 की वैसाखी का दिन दुनिया के इतिहास में एक नया अध्याय बन गया। गुरु साहिब द्वारा खालसा स्थापना के अद्वितीय कारनामें ने सदियों से दबे, गुलामी वाला जीवन जी रहे लोगों को आत्मविश्वासी बना कर अर्श पर पहुंचा दिया। खालसा बनाकर आप जी ने सभी जातियों और वर्गों के लोगों को एकता के सूत्र में बांधने का अद्वितीय एवं महान कार्य किया। उन्होंने पांच प्यारों में भिन्न-भिन्न वर्गों के लोगों को शामिल करके ऊंच नीच का फर्क हमेशा के लिए मिटा दिया। इतना ही नहीं, फिर आप भी पांच प्यारों से अमृत छका। यह भी धर्मों के इतिहास में विलक्षण घटना थी, क्योंकि इससे पहले ऐसा कोई उदाहरण नहीं मिलता था कि किसी गुरु ने अपने चेलों को अपने से ऊपर का दर्जा या मान दिया हो। यह मान केवल दशम पातशाह जी ने ही अपने खालसा को दिया था। इसी प्रकार होला महल्ला की शुरुआत भी गुरु साहिब के जीवन का एक विशेष कारनामा है जिसने सिख कौम को स्वाभिमान, अणख, दिलेरी, हिम्मत और वीरता के साथ जोड़ा।
गुरु साहिब जी द्वारा रची गई बाणी भी मानवता के लिए समूचे  जीवन की योजना बनाने वाली है। आप जी ने अपनी बाणी में पाखंडवाद और कर्मकांड का खंडन किया और लोगों को उत्तम जीवन के धारणी होने की प्रेरणा दी। आप ने उपदेश किया कि मूर्ति-पूजा, बुत-पूजा, तीर्थ यात्रा या समाधियों के साथ अकाल-पुरख का प्राप्ति नहीं हो सकती। जीवन अहम है और इसको व्यर्थ के कर्मकांडों और भ्रमों में पड़ कर बर्बाद करने का कोई लाभ नहीं। करतापुरख तो सहज और प्यार का मार्ग है। इसकी समझ वाले ही उसमें अभेद होते हैं। गुरु साहिब जी का फरमाण है : 
कहा भयो जो दोऊ लोचन मूंद कै
बैठि रहियो थक ध्यान लगाइउ।।
न्हात फिरियो लीये सात समुंद्रनि
लोक गयो परलोक गवाइउ।।
बास कीउ बिखियान सो बैठ कै
ऐसे ही ऐसे सु बैस बिताइउ।।
साचु कहों सुन लेहु सभै
जिन प्रेम कीउो तिन ही प्रभ पाइउ।।
इससे बड़ी बात और क्या हो सकती है कि श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने मानवता को सुखी देखने की इच्छा के साथ अपना सारा परिवार बलिदान कर दिया। आप जी ने चमकौर के जंगल में अपने बड़े साहिबज़ादों को अपने हाथों से तैयार कर शहादत के लिए भेजा। छोटे साहिबज़ादे और माता गुजरी दी की शहादत के बाद भी आप ने परमात्मा का शुक्राना किया।
श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने पूरा जीवन ही मानवता की भलाई के लिए व्यतीत किया। उन्होंने मानवता को अज्ञानता रूपी अंधकार में से बाहर निकाल कर जीवन की असल सच्चाई के रूबरू किया। धर्म की रक्षा के लिए अनेक कष्ट सहन किए। यदि आज हम सुखी जीवन व्यतीत कर रहे हैं तो यह गुरु साहिब जी की बदौलत ही है। आप जी के प्रकाशोत्सव पर हमारा फज़र् है कि जहां हमें गुरु साहिब को सम्मान भेंट करना है, वहीं उनके बताए मार्ग के पांधी भी बनना है। हम दुनिया के भाईचारे में सार्वभौमिकता के प़ैगाम को तभी ले जा सकेंगे यदि हम दुनिया के हर क्षेत्र में श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के पग चिन्हों पर चलकर कथनी और करनी के धारणी बनेंगे। गुरुदेव पिता के प्रकाश-पर्व पर हम सबको यह अरदास करनी चाहिए कि गुरु कृपा करें, तथा हम निशान-ए-सिक्खी के धारणी होकर गुरुसिक्खी जीवन व्यतीत करते हुए और उनके सर्व-सांझे उपदेशों को सारी मानवता तक पहुंचाने का यत्न कर सकें। सो आओ! गुरु बख्शी खंडे-बाटे की पाहुल ग्रहण कर गुरबाणी की रौशनी में जीवन व्यतीत करें और सम्मानजनक एवं सुखद समाज के सृजन के लिए तत्पर रहें।
-प्रधान, शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी, श्री अमृतसर