बच्चों को गोद लेने के लिए लम्बा इन्तज़ार क्यों ?

आज अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस पर विशेष

2008 में महिला और बाल विकास मंत्रालय द्वारा अंतराष्ट्रीय बालिका दिवस प्रत्येक वर्ष 24 जनवरी को मनाने का फैसला किया गया था, ताकि समाज में बच्चों के साथ होते भेदभाव और ज्यादतियों की तरफ ध्यान दिलाया जा सके और लोगों की सोच में सुधार लाया जा सके।
बेटी और बेटे के बीच महसूस किए जाते अंतर को खत्म किया जा सके ताकि हर बालिका को उसका बनता सम्मान मिले। इसमें कोई शक नहीं कि सभी के यत्नों के साथ और समाज के कुछ वर्गों की खुली सोच से आज बालिकाओं को उनका बनता सम्मान, बनती इज़्ज़त काफी हद तक मिल रही है और आज जहां भी बालिका को मौका मिलता है, चाहे कोई भी क्षेत्र हो, वह अपने-आप को साबित करने में पीछे नहीं हट रही।
सरकार द्वारा चलाई ‘बेटी बचाओ’ (Save the Girl Child) मुहिम को बहुत अच्छा प्रोत्साहन मिला है लेकिन समाज के कुछ वर्ग अभी भी बालिका को बोझ समझते हैं। उसके पैदा होते ही कहीं मरने के लिए छोड़ दिया जाता है या अनाथ आश्रम के पंघूड़े में डाल दिया जाता है, क्योंकि ये वर्ग अभी भी बेटे के जन्म होने पर ही खुश होते हैं।
आज हम बात करेंगे देश की उन बालिकाओं की जो बेसहारा होती हैं और गोद लेने की प्रक्रिया में डाल दी जाती हैं। देश में बेसहारा बच्चों को तीन श्रेणियों में बांटा गया है : 
1. अनाथ—जिनके मां-बाप दुनिया को अलविदा कह चुके होते हैं।
2. छोड़े हुए—जिन बच्चों को मां-बाप द्वारा जानबूझ कर छोड़ दिया जाता है।
3. सौंपे गये—इस वर्ग में वो बच्चे आते हैं, जिनको मां-बाप द्वारा बच्चों की कमेटी को सौंपा जाता है, क्योंकि वे अभिभावक अपने बच्चे का पालन-पोषण करने के समर्थ नहीं होते अथवा कोई और कारण होता है।
देश के कानून के मुताबिक बच्चों को गोद लेने की प्रक्रिया बहुत ही स्पष्ट और पारदर्शी है। इसलिए बाकायदा कानूनी तरीका अपनाया जाता है। CARA (Central Adoption Resource Authority) (कारा) जो महिलाओं के बाल विकास मंत्रालय के अधीन आती है, गोद लेने की सारी प्रक्रिया इसके अधीन होती है। CARA के निर्देशों के मुताबिक ही सारे अनाथ आश्रम, शैल्टर होम काम करते हैं। हर ज़िले में CWC (Child Welfare Committee) होती है जो हर अनाथ आश्रम के बच्चों की गिणती, उनकी भर्ती आदि का ध्यान रखती है।
विराग गुप्ता (सुप्रीम कोर्ट के वकील) द्वारा यह विवरण दिया गया है कि सुप्रीम कोर्ट में दो साल पहले दायर याचिका के अनुसार 5 सालों में 16,353 बच्चों (दोनों लड़के-लड़कियों) को कानूनी तौर पर गोद लेने की मंजूरी मिली थी। कानूनी बदलाव के बाद अदालतों की बजाय ज़िला प्रशासन को गोद लेने की प्रक्रिया को पूरा करने के अधिकार दिए गये थे, लेकिन इससे भी ज्यादा फर्क नहीं पड़ा। गोद लेने के लिए लोगों को 3-4 साल तक का इंतज़ार करना पड़ रहा है। देश के भीतर गोद लेने तथा बाहरी देशों के नागरिक, नि:संतान माता-पिता, अकेली माता, रिश्तेदार सभी के लिए गोद लेने के नियम अलग-अलग हैं।
CARA  के अनुसार 2022-23 में सिर्फ 1724 लड़कियों को पूरे देश में गोद लिया गया, जिनमें से पंजाब में सिर्फ 34  बालिकाओं की प्रक्रिया पूर्ण हो सकी और वर्ष 2022-23 में विदेशों से गोद लेने वाले नागरिकों में सिर्फ 244 बालिकाएं गोद ली गईं, जिनमें से पूरे पंजाब से सिर्फ 19 बालिकाएं ही गोद ली गईं। 
इसका परिणाम यह होता है कि बच्चे गोद लेने की प्रक्रिया के बिना ही बड़े होते जाते हैं जिस कारण बहुत समस्या आती है, क्योंकि एक तो गोद लेने वाले माता-पिता अधिकतर सिर्फ छोटे बच्चों को प्राथमिकता देते हैं, दूसरा बड़े होने पर बच्चे स्वयं ही अपनी संस्था छोड़ कर जाने को तैयार नहीं होते। 
कई बार नवजात बच्चों को लोग कूड़े के ढेर, स्टोशनों पर या किसी अन्य स्थान पर, अनाथ आश्रम के झूलों में, चलती ट्रेनों या बसों में भी छोड़ जाते हैं, जिसके बाद पुलिस तथा CWC का कार्य शुरू होता है, कोर्ट का आदेश लेकर बच्चों को अनाथ घरों में भेजना, जिसके बाद गोद लेने की प्रक्रिया CWC के अनुसार शुरू हो जाती है। केन्द्र सरकार को गोद लेने की इस प्रक्रिया को तेज़ करने की ज़रूरत है, क्योंकि लाखों ही परिवार बच्चों को गोद लेने से वंचित रह जाते हैं और गोद लेने के लिए वर्षों तक समय बीत जाता है। 
आजकल अधिकतर जोड़ों की गोद लेने की पहली प्राथमिकता लड़की होती है, विशेषकर विदेशी लोग तो यह भी कोशिश करते हैं कि ऐसी बच्ची गोद ली जाए जिसमें कोई शारीरिक या मानसिक कमी हो ताकि उस बच्ची का वे भविष्य संवार सकें। 
जिनती तेज़ी से बच्चे गोद लिए जा सकेंगे, उतनी ही तेज़ी से इन बेसहारा बच्चों का भविष्य सुधरेगा और अनेक को अपने बीत चुके बुरे काल को भूलने में तुरंत मदद मिलेगी।   
लगभग 30 हज़ार के करीब ऐसे जोड़े हैं जिनकी बारी गोद लेने के पोर्टल में इन्तज़ार सूची में है।
सो, विनती है उन माता-पिता को जो अपनी बेटियां नहीं रख या संभाल पाते, उन्हें कूड़े के ढेर में मत फैंकें, किसी अनाथ आश्रम को सौंप दें, जहां इन बच्चियों का भविष्य बेहतर ही नहीं होगा, अपितु चमकेगा भी। 
निवेदन है महिला एवं बाल विकास मंत्रालय तथा सरकार से कि बच्चा गोद लेने की प्रक्रिया में तेज़ी लाई जाए ताकि समाज के इन बच्चे-बच्चियों को उनका घर नसीब हो और उनका भविष्य सुरक्षित हो सके। 
जब ये बच्चियां विदेशों में गोद ली जाती हैं और अच्छे परिवारों में जाती हैं तो आंखें अवश्य नम होती हैं, परन्तु मन में यह विचार भी आता है कि परमात्मा का धन्यवाद उन जन्म देने वाले पापियों से दूर ये बच्चे नये तथा सुरक्षित वातावरण में बड़े होंगे।

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