देश को अब अंतरिक्ष स्टेशन का तोहफा देगा इसरो

गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर देश को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू ने कहा ‘भारत चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने वाला दुनिया का पहला देश बना। हमें अपने वैज्ञानिकों और प्रौद्योगिकी विशेषज्ञों पर सदैव गर्व रहा है, लेकिन अब हमारे वैज्ञानिक पहले से कहीं अधिक ऊंचे लक्ष्य तय कर रहे हैं।’ सचमुच इसरो के वैज्ञानिकों ने अपनी अथक लगन और अपार प्रतिभा के बल पर चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग कराकर तो इतिहास रचा ही है, साथ ही अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में भारत को महाशक्ति भी बना दिया है। यह साधारण बात नहीं है कि अब इसरो प्रमुख ने साल 2028 तक देश का पहला अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन लांच करने का ऐलान किया है। उसके मुताबिक 2028 में लांच होने वाला मॉड्यूल एक रोबोटिक मॉड्यूल होगा यानी एक ऐसा उपग्रह जहां हम जा सकते हैं, प्रयोग कर सकते हैं और वापस आ सकते हैं। लेकिन एक इन्सान का अंतरिक्ष स्टेशन पर जाना साल 2035 के बाद ही संभव होगा। लब्बोलुआब यह कि इसरो का लक्ष्य है कि 2035 तक भारत का अपना स्पेस स्टेशन हो। अंतरिक्ष स्टेशन (एसएस) पृथ्वी की निचली कक्षा में एक मॉड्यूलर स्पेस स्टेशन या रहने योग्य कृत्रिम उपग्रह होता है। अभी तक पृथ्वी की निचली कक्षा में पूरी तरह से कार्यरत दो अंतरिक्ष स्टेशन मौजूद हैं। पहला अंतर्राष्ट्रीय स्पेस स्टेशन (आईएसएस) और दूसरा चीन का तियांगोंग अंतरिक्ष स्टेशन (टीएसएस) है। लेकिन इनमें से दुनिया का पहला अंतरिक्ष स्टेशन कोई भी नहीं है। दुनिया का पहला अंतरिक्ष स्टेशन साल्युट-1 था, जिसे तत्कालीन सोवियत संघ (आज का रूस) ने 19 अप्रैल 1971 को कजाकिस्तान के बायकोनूर कॉसमोड्रोम से लांच किया था। यह अंतरिक्ष स्टेशन करीब 20 टन वजनी और बेलनाकार था। इसकी लंबाई 12 मीटर और चौढ़ाई 4.25 मीटर थी। सिंगल डॉकिंग पोर्ट वाला यह स्टेशन तीन कार्यशील खंडों में विभाजित था। इसके भेजने का मुख्य मकसद लम्बी अवधि की अंतरिक्ष यात्रा में इन्सान के शरीर पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन करना और अंतरिक्ष से पृथ्वी की निरन्तर तस्वीरें लेना था। लेकिन वर्तमान में जो कार्यरत अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन है, उसे 20 नवम्बर 1998 को लांच किया गया था। अमरीकी स्पेस एजेंसी नासा के नेतृत्व में संचालित यह स्पेस स्टेशन एक बहुराष्ट्रीय सहयोग से संचालित परियोजना है। इसमें 5 देशों की अंतरिक्ष एजेंसियां भागीदार हैं—अमरीका की नासा (नेशनल एयरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्टेशन), रूस की रोस्कोस्मोस (द रोस्कोस्मोस स्टेट कारपोरेशन फॉर स्पेस एक्टिविटीज), जापान की जेएएक्सए (जापान एयरोस्पेस एक्सप्लोरेशन एजेंसी), यूरोप की ईएसए (यूरोपीयन स्पेस एजेंसी) तथा कनाडा की सीएसए (कनाडियन स्पेस एजेंसी)। 
 अब बात करते हैं अपने प्रस्तावित स्पेस स्टेशन की। हालांकि इन दिनों जिस तरह प्रस्तावित भारतीय स्पेस स्टेशन की चर्चा हो रही हैए उससे लगता है कि इसका ख्याल चंद्रयान-3 की सॉफ्ट लैंडिंग के बाद आया, परन्तु ऐसा नहीं है। इसरो ने अपनी इस महत्वाकांक्षा का खुलासा साल 2019 में ही कर दिया था और तब ही ऐलान भी किया था कि अगले 20 से 25 सालों में भारत का अंतरिक्ष में अपना बेस होगा। कहने का मतलब यह कि अंतरिक्ष स्टेशन इसरो के फ्यूचर प्लान में काफी पहले से शामिल रहा है। स्पेस स्टेशन बनाने की शुरुआती योजना पर काम 2019 में ही शुरु हो गया था, लेकिन कोरोना संक्रमण के कारण कई परियोजनाएं लटक गईं या काफी पिछड़ गईं, उनमें एक यह भी रहा। बहरहाल अब सब कुछ पटरी पर आ चुका है। इसलिए इसरो ने भी अपनी महत्वाकांक्षी योजना से पर्दा उठा दिया है। 17 अक्तूबर, 2023 को प्रधानमंत्री मोदी ने गगनयान की प्रगति का आंकलन करने के लिए एक उच्चस्तरीय बैठक की अध्यक्षता की थी। इस दौरान भारत के अंतरिक्ष मिशनों को लेकर भविष्य की रूपरेखा पर चर्चा की गई थी। इस मीटिंग में अंतरिक्ष विभाग ने गगनयान मिशन की प्रगति के बारे में प्रधानमंत्री मोदी को विस्तार से जानकारी दी थी। इस मीटिंग के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने इसरो को निर्देश दिया कि अब वह बड़े मिशन पर काम करे जिसमें अंतरिक्ष में स्टेशन बनाना और चांद पर भारतीयों को उतारना शामिल है।
इस लक्ष्य के तहत इसरो अध्यक्ष एस. सोमनाथ ने स्पष्ट किया है कि अगले पांच सालों यानी 2028 तक भारतीय स्पेस स्टेशन के शुरुआती मॉड्यूल को ऑर्बिट में पहुंचा दिया जायेगा। भारत के इस शुरुआती अंतरिक्ष स्टेशन का मॉड्यूल चीन के शुरुआती अंतरिक्ष स्टेशन के मॉड्यूल तियांगोंग-1 और तियांगोंग-2 की तरह अस्थायी होगा। इसरो के मुताबिक प्रस्तावित अंतरिक्ष स्टेशन के पहले मॉड्यूल का वजन 8 टन होगा जिसका वजन बाद में 20 टन का भी हो सकता है। इसमें एक साथ 4 से 5 अंतरिक्ष यात्री रह सकेंगे और इसे पृथ्वी की सबसे निचली कक्षा में रखा जायेगा, जिसे एलईओ (लोअर अर्थ ऑर्बिट) कहते हैं और यह धरती से 400 किलोमीटर दूर स्थित है। भारत अपने गगनयान मिशन को भी पृथ्वी के लोअर आर्बिट में ही भेजने वाला है, वहीं पर इसरो का अपना स्पेस सेंटर भी स्थापित होगा। भारत सरकार ने इससे लिए आवश्यक फंड जारी कर दिया है।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर