पार्टियों का नैतिक चरित्र

विगत अवधि में चंडीगढ़ में कांग्रेस एवं भारतीय जनता का भारी प्रभाव बना रहा है। नगर निगम के चुनावों में आम आदमी पार्टी तथा कांग्रेस ने बहुत सीटें प्राप्त की थीं, परन्तु इस बार मेयर एवं दो उप-मेयरों के चुनाव हेतु भारी घमासान देखा गया है। चंडीगढ़ नगर निगम में कुल 35 पार्षद हैं, जिनमें से कांग्रेस के 7, आम आदमी पार्टी के 13, भाजपा के 14 एवं एक अकाली दल से संबंधित पार्षद है। क्योंकि राष्ट्रीय स्तर पर 28 विरोधी पार्टियों का आगामी लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए ‘इंडिया’ गठबंधन के नाम पर संयुक्त मोर्चा बना हुआ है, इसलिए चंडीगढ़ के मेयर एवं दो उप-मेयरों के चुनाव भी आम आदमी पार्टी एवं कांग्रेस ने एकजुट होकर लड़ने का फैसला किया था। चाहे इन दोनों पार्टियों के पंजाब के नेता मिल कर लोगसभा चुनाव लड़ने का कड़ा विरोध कर रहे हैं, परन्तु चंडीगढ़ में बने इस गठबंधन के बावजूद भाजपा अपना मेयर एवं दो उप-मेयर बनाने में सफल हो गई। इस संबंध में आम आदमी पार्टी एवं कांग्रेस का आरोप है कि केन्द्र में सत्तारूढ़ भाजपा ने चंडीगढ़ प्रशासन पर दबाव डाल कर चुनाव में हेरा-फेरी करवाई है। इसी कारण प्रीज़ाइडिंग अधिकारी अनिल मसीह जो कि भाजपा के ही नेता हैं, ने उनके 8 पार्षदों की वोटें गलत ढंग से रद्द कर दी हैं। अब यह विवाद पुन: हाईकोर्ट में पहुंच गया है और इसके विरुद्ध चंडीगढ़ में आम आदमी पार्टी एवं कांग्रेस द्वारा प्रदर्शन भी किये गये हैं। दूसरी तरफ चंडीगढ़ के भाजपा नेताओं का पक्ष यह है कि मेयर के चुनाव में जो कुछ भी घटित हुआ है, वह आम आदमी पार्टी एवं कांग्रेस के भीतर एक-दूसरे के प्रति पाये जा रहे अविश्वास के कारण ही घटित हुआ है। हाईकोर्ट के आदेशों के अनुसार ये चुनाव पारदर्शी ढंग से हुए हैं। इसमें जो 8 वोटें रद्द हुई हैं, वे गठबंधन में शामिल दोनों पार्टियों के नेताओं के मध्य चल रहे मतभेदों के कारण ही रद्द हुई हैं क्योंकि पंजाब में दोनों पार्टियों के नेता लगातार एक-दूसरे के विरुद्ध बयानबाज़ी कर रहे हैं। इसी भावना के अधीन ही वोट डालने वाले इनके पार्षदों ने वोटें रद्द करवाने संबंधी कदम उठाया होगा।
हमारा यह स्पष्ट विचार है कि देश में लोकतांत्रिक शासन प्रणाली है एवं प्रत्येक राजनीतिक पार्टी को लोकतांत्रिक व्यवस्था के नियमों एवं कानूनों का पालन करते हुए ही अपनी राजनीतिक भूमिका अदा करनी चाहिए और हर स्तर पर लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भाग लेना चाहिए, परन्तु ज्यादातर राजनीतिक पार्टियां सत्ता पर काबिज़ होने के लिए लोकतांत्रिक कायदे-कानूनों को ताक पर देती हैं। सत्ता में आने के बाद भी वे अपने विरोधियों के प्रति बदले की भावना अपना कर उन्हें वैध-अवैध ढंग से जेलों में डालने का कार्य करती हैं। इस सन्दर्भ में दिल्ली एवं पंजाब में सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी का चरित्र भी कोई दूध से धुला नहीं है। खास तौर पर पंजाब में इसने अपने विरोधी कांग्रेसी, अकाली दल एवं अन्य पार्टियों के नेताओं को झूठे-सच्चे मामलों में फंसा कर व्यापक स्तर पर परेशान करने का काम किया है।
कांग्रेस के दर्जन से अधिक नेताओं पर विजीलैंस की ओर से भ्रष्टाचार के नाम पर मामले दर्ज किए गए हैं और इनमें से कइयों को जेल की हवा भी खानी पड़ी है तथा कई अब ज़मानत पर बाहर आए हुए हैं। इसी कारण पंजाब कांग्रेस के नेता आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय स्तर पर ‘इंडिया’ गठबंधन में शामिल होने के बावजूद पंजाब में उसके साथ मिलकर चुनाव लड़ने के लिए तैयार नहीं हैं। वे इस विचार का डटकर विरोध कर रहे हैं। दूसरी तरफ मीडिया और सोशल मीडिया के साथ संबंधित जो भी पत्रकार या आम आदमी पार्टी की सरकार की बुरी कारगुज़ारी की पोल खोलते हैं, उनके खिलाफ पंजाब की ‘आप’ सरकार द्वारा केस दर्ज करके उनकी गिरफ्तारियां की जाती हैं। सोशल मीडिया पर चलते उनके पोर्टलों को बंद करवाने की कोशिश की जाती है। 
इस तरह से इस पार्टी ने दो वर्षों में पंजाब को पुलिस राज में तबदील कर दिया है, जिसके विरुद्ध अब स्थान-स्थान बड़ी प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं। पिछले दिनों बरनाला ज़िले में भाना सिद्धू पर लगातार केस डालकर जेल में डाले रखने के कारण बड़ी संख्या में लोग वहां एकत्रित हुए और उन्होंने मान सरकार की तानाशाही के विरुद्ध भरपूर आवाज़ उठाते हुए भाना सिद्धू पर दर्ज केस वापिस लेने की मांग की थी। यदि सरकार ऐसा नहीं करती तो उनके द्वारा आगे भी सख्त आंदोलन करने के लिए चेतावनी दी गई है। हर क्षेत्र में ऊपर के इशारों पर पुलिस लोगों के प्रति तानाशाही रवैया अपना रही है और उसके द्वारा सरकार के साथ मतभेद रखने वाले प्रत्येक वर्ग के लोगों को पूरी तरह डराने की नीति धारण की गई है।
इस संदर्भ में हमारा यह कहना है कि यदि आम आदमी पार्टी भाजपा तथा लोकतांत्रिक मूल्य और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को आघात पहुंचाने के आरोप लगाती है तो उसको खुद भी अपनी ‘पीढ़ी के नीचे सोटा फेरना’ चाहिए और अपना किरदार भी लोकतंत्र-समर्थक बनाना चाहिए। अपने विरोधी मीडिया और विपक्षी पार्टियों के प्रति भी उसको बदला लेने का व्यवहार छोड़कर लोकतांत्रिक कायदे कानूनों के अनुसार ही पेश आना चाहिए, तभी वह भाजपा और अन्य दूसरी पार्टियों के लोकतंत्र विरोधी व्यवहार के बारे में नैतिक तौर पर आवाज़ उठाने के योग्य हो सकेगी।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द