पंजाब कला परिषद् के आंगन में रंधावा उत्सव

पंजाब कला परिषद् चंडीगढ़ प्रत्येक वर्ष फरवरी माह में अपने आंगन में महिन्दर सिंह रंधावा (2.2.1909-3.3.1986) उत्सव मनाती है। इस वर्ष यह उत्सव 2 से 6 फरवरी तक मनाया गया। इन दिनों में मौसम की खराबी के बावजूद इस आंगन में कविता, नाटक तथा चित्रकारी प्रमुख रही। इसका आरंभ रंधावा आडिटोरियम में पंजाब कला परिषद् के चेयरमैन सुरजीत पातर के सम्बोधन से हुआ। रंधावा साहिब ऐसे गुलाब थे, जो जीवन की शाखा से जुदा होकर इतिहास की शाखा पर खिल गए और खिले रहेंगे। उद्घाटन की रस्म सांस्कृतिक एवं पर्यटन मंत्री बीबा अनमोल गगन मान ने निभाई। डा. महिन्दर सिंह रंधावा को विज्ञान कला तथा प्रबंध की त्रिमूर्ति कहा जा सकता है। अपने किए महान कार्यों के कारण वह हमसे बिछुड़ कर भी हमेशा हमारे मन में बसते हैं। उनका सपना था कि प्रत्येक पंजाबी खुशहाल, मेहनती, सौहार्द, कला प्रेमी तथा अच्छी सोच का खुले दिल से स्वागत करने वाला हो। वह पंजाब में आधुनिकता तथा विरासत के संगम की सृजना करना चाहते थे। कृषि, विज्ञान, साहित्य, कला तथा प्रगतिशील सोच उनके विशेष गुण थे। 
चित्रकला, नाटक तथा कविता के माध्यम से सांस लेते इस उत्सव की एक उपलब्धि परिषद् की वार्षिक पत्रिका ‘कला द्वार’ का महिन्दर सिंह रंधावा विशेषांक था, जिसे इसकी सम्पादक जगदीश कौर ने महिन्दर सिंह रंधावा की यादगारी तस्वीरों से सजाया। सांस्कृतिक इतिहास के पदचिन्हों पर चलती इन तस्वीरों में जवाहर लाल नेहरू, ज़ाकिर हुसैन, इंदिरा गांधी, पृथ्वी राज कपूर, बलराज साहनी, सतीश गुजराल, ली कारबूज़ीएर, नौरा रिचड्ज़र्, मुल्क राज आनंद, गुरबख्श सिंह प्रीत लड़ी तथा बलवंत गारगी सहित उन्नत कृषि संबंधी बातें करने वाले किसान भी हैं। खूबसूरत नाम वाले इस ‘कला द्वार’ में शिव कुमार बटालवी तथा खुशवंत सिंह के भावपूर्ण शब्द इसकी शान हैं। 
रंधावा साहिब के कार्य करने का तरीका प्रभावशाली भी था और अलग भी। मैंने उन्हें एक समय में तीन बैठकों की अध्यक्षता करते हुए भी देखा है और नौ उम्मीदवारों में से सिर्फ अच्छे आचरण वाले व्यक्ति का चयन करते हुए भी। उनके निधन पर टाइम्स ऑफ इंडिया ने बड़ा सम्पादकीय लिखा था, ‘हिन्दुस्तान की सभ्यता एवं सभ्याचार का पहरेदार’ शीर्षक के साथ। 
प्रताप सिंह कैरों को याद करते हुए
6 फरवरी, 2024 को पंजाब के प्रभावशाली मुख्यमंत्री को विदा हुए 59 वर्ष हो गए हैं। मुझे कल की भांति याद है कि उस दिन मैं अपने अफसर महिन्दर सिंह रंधावा को मिलने गया तो वह मेरी ओर देखे बिना कमरे की खिड़की से आसमान की ओर देखे जा रहे थे। ‘बहुत बुरा हुआ’ कह कर उन्होंने मुझे अपनी गाड़ी में बिठाया और तीन मूर्ति स्थित अपनी कोठी ले गए। रास्ते में पता चला कि कैरों की हत्या हो चुकी थी। घर जाकर अपनी पत्नी को समाचार देने के बाद उसके साथ भी बात नहीं की। खाना खाने के बाद अपने कमरे में चले गए और ड्राइवर को कहा कि मुझे दफ्तर छोड़ दे। दोपहर के बाद की सभी बैठकें स्थगित करने का संदेश भी दफ्तर वालों को मैंने ही दिया था।
मैंने प्रताप सिंह कैरों के कार्यकाल में वर्तमान पंजाब, हरियाणा तथा हिमाचल प्रदेश का सर्वपक्षीय विकास होता देखा है। वह कृषि एवं औद्योगिक विकास का सबक अमरीका से लेकर आए थे और शिक्षा उनके मन में बसी हुई थी। स्कूल, कालेज, अस्पताल, सैनिक स्कूल तथा विश्वविद्यालय स्थापित करने का आदेश देते देर नहीं लगाते थे। हरियाणा में कुरुक्षेत्र तथा पंजाब में पंजाबी विश्वविद्यालय उनकी देन हैं। किसानों के लिए संशोधित बीज, रासायनिक खाद तथा कीटनाशक दवाओं की व्यवस्था हेतु सस्ते ऋण उपलब्ध करने वाले भी वही थे। 
करनाल की डेयरी संस्था तथा अमृतसर में वेरका मिल्क प्लांट भी उनकी देन थी। उन्होंने फरीदाबाद को पंजाब का औद्योगिक हब घोषित करके पूरे प्रदेश को मालामाल किया। चंडीगढ़ में पी.जी.आई. की स्थापना सहित।याद रहे कि उस समय के पंजाब में भाषा के आधार पर पंजाबी प्रांत की मांग ज़ोरों पर थी। वह जानते थे कि इसकी स्वीकृति देश के विभाजन के बाद रह गए पंजाब के और भी टुकड़े कर देगी। वह सीमावर्ती प्रदेश की शक्ति एवं सांस्कृतिक विभिन्नता का और क्षरण नहीं करना चाहते थे। उन्होंने जीवित रहते हुए यह वचन निभाया। 
उनकी कार्यप्रणाली बारे मेरे पास भी एक घटना है। खालसा कालेज माहिलपुर (होशियारपुर) में मेरी कन्वोकेशन के समय कैरों मुख्यतिथि थे, पंजाब के विकास मंत्री के नाते। क्षेत्र निवासियों ने तीन मांगें कीं। (1) होस्टल की इमारत के लिए राशि (2) माहिलपुर-फगवाड़ा मार्ग को कच्चे से पक्का करना तथा (3) गढ़शंकर वाली रेलवे लाइन को होशियारपुर से जोड़ना। कैरों साहिब ने पहली मांग तो वहीं बैठे ही स्वीकार कर ली और दूसरी के बारे क्षेत्र निवासियों को कहा कि मिट्टी  वे डाल दें और तारकोल उनकी सरकार डाल देगी। यहीं पर ही नहीं, अन्य मार्गों पर भी। रेलवे विभाग केन्द्र के अधीन होने का ज़िक्र करते हुए उन्होंने वायदा किया कि वह पंडित नेहरू को मिलने वाले प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करेंगे। कैरों की वाह-वाह हो गई!
अंतिका
—मीर तकी मीर—
वो आये बज़्म में बस इतना तो मीर ने देखा
कि उसके बाद चिरागों में रौशनी न रही।