बहु-भाषी भारत : एक जीवन्त परम्परा थीम पर केन्द्रित होगा इस बार का मेला

नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेले पर विशेष

शब्द की साधना भारतीय सांस्कृति का आदिकाल से ही महत्वपूर्ण विश्वास रहा है। लगभग 3 से 4 हज़ार साल पहले जब संसार की अन्य सभ्यताएं इतिहास में अपना नाम दर्ज करवा रही थीं तो भारत ने अपना बौद्धिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक अस्तित्व प्रकट कर दिया था। भारत में जब लिखने की तकनीक विकसित हुई तो हमारे ऋषि-मुनियों ने ताम्र पत्रों, भोज पत्रों और ऐसी अन्य सामग्रियों का प्रयोग करके पुस्तकों का प्रकाशन शुरू किया। देश में पढ़ने लिखने का रुझान शुरू हुआ। देश के अलग-अलग स्थानों पर विद्वानों, ऋषियों-मुनियों और योगी-जनों के आश्रम थे, जहां ज्योतिष, गणित, चिकित्सा शास्त्र, अर्थ-शास्त्र और आध्यात्मिकता की शिक्षा दी जाती थी। भारत ने ज्ञान और विज्ञान के हर पक्ष को बहुत गहराई के साथ सीखा है। संसार के सबसे प्राचीन विश्व विद्यालय नालंदा और विक्रमशिला भारत में ही थे, जहां विश्व का सबसे बड़ा पुस्तक संग्रह पांडुलिपियों के रूप में संभाला हुआ है।
यदि भारतीय ग्रंथों की तुलना उस समय की अन्य सभ्यताओं के ग्रंथों के साथ की जाए तो पता चलता है कि हमारे ग्रंथ संसार के अन्य ग्रथों से पुरातन और श्रेष्ठ थे। महर्षि पाणिनी ने व्याकरण पर अपना ग्रंथ रचा तो यह विश्व में अपनी तरह का अनूठा प्रयोग था। जब भरत मुनि का नाट्य शास्त्र आया तो नाटक मंच की विधा में यह मील का पत्थर था। वेदों में प्रस्तुत खगोल शास्त्र और गणित के फार्मूले हैरान करने वाले हैं। विश्व का महान विद्वान मैक्समूलर, प्रसिद्ध दार्शनिक शौपेनहावर और महान जर्मन लेखक गुनतर ग्रास के अलावा 10वीं शताब्दी के अर्थ शास्त्री इदरीसी और चीनी यात्री फाह्यान को भारत के इतिहास, कला और ज्ञान के प्रति भारतीयों की दृढ़ निष्ठा ने प्रभावित किया। यह सब इसलिए संभव हुआ क्योंकि भारतीयों ने शिक्षा को, पुस्तकों को, ज्ञान को और संवाद को सर्वोतम स्थान दिया।
आज भी मनुष्य के भीतर मानवतावादी मूल्यों, संवेदनशीलता और अच्छी भावनाएं पैदा करने और बरकरार रखने के लिए पुस्तकों का बहुत महत्व है। पुस्तकें हमें निजी और सामाजिक जीवन संवारने का ढंग सिखाती हैं। पुस्तकें जहां हमारे भविष्य के जीवन का रास्ता तय करने में मदद करती हैं, वहीं हमें अपनी विरासत के साथ जोड़कर भी रखती हैं। विगत लम्बे समय में हमने जो भी तरक्की की है, उसके पीछे पुस्तकों का ही अहम योगदान रहा है। इसमें कोई शक नहीं कि हमारी संस्कृति के विकास की नींव पुस्तकों ने मज़बूत की है। पुस्तक मेलों की संस्कृति ने आम नागरिक को ज्ञान के सागर की ओर तेज़ी के साथ बढ़ने के लिए प्रेरित किया है। मानवता के बौद्धिक विकास में पुस्तकों की बहुत बड़ी भूमिका है, जिन्होंने मानव मन में पाये जाते अंधेरे को दूर करके रौशनी का रास्ता दिखाया है। 
भारतीय पुस्तक बाज़ार को पूरे विश्व के पुस्तक बाज़ार के साथ एकजुट करने के लिए नैशनल बुक ट्रस्ट द्वारा हर साल नई दिल्ली के प्रगति मैदान में विश्व पुस्तक मेले का प्रबंध किया जाता है। यह पुस्तक मेला हमें यह मौका भी प्रदान करता है कि हम देश-विदेश से आए प्रकाशकों द्वारा यह जान सकें कि देश-विदेश के भिन्न-भिन्न भाषाओं में किस प्रकार का साहित्य रचा जा रहा है।  इस बार नई दिल्ली पुस्तक मेले का थीम है ‘बहु-भाषी भारत : एक जीवंत परम्परा’ जिसके माध्यम से इस बार भारत की सांस्कृतिक समृद्धि और भाषाई विभिन्नता को पेश किया जाएगा। 10 से 18 फरवरी, 2024 तक सुबह 11 बजे से लेकर रात 8 बजे तक प्रतिदिन नई दिल्ली के प्रगति मैदान में 1 से 5 हाल नम्बर में आयोजित नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेले में आपका स्वागत है।
इस मेले में बहु भाषी भारत के कई रंग मिलेंगे। भारत भाषाओं के मामले में विश्व का सर्वाधिक विभिन्नता वाला देश है। 2011 की जनगणना के अनुसार यहां कुल 121 मान्यता प्राप्त भाषाएं बोली जाती हैं, जिनमें से 22 अनुसूचित भाषाएं  और 99 गैर-अनुसूचित भाषाएं हैं। 22 जून, 2022 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में बहुभाषा रुझान को प्रोत्साहन देने के लिए भारत द्वारा पेश किए गये एक प्रस्ताव को अपनाया गया, जिसमें पहली बार हिन्दी, उर्दू और बंगाली भाषा का जिक्र था।
इस मेले में सम्मानित मेहमान सऊदी अरब है। एक विशेष पैवेलियन में सऊदी अरब के प्रकाशकों की पुस्तकें होंगी। पाठकों के लिए भारत में ही अरब की भाषा, संस्कृति, लोक परम्परा और साहित्य को समझने का यह सुंदर मौका होगा। इस अंतर्राष्ट्रीय मंच पर ब्रिटेन, फ्रांस, स्पेन, तुर्की, रूस, ताईवान, ईरान, यूनाईटिड अरब अमीरात, आस्ट्रिया, बंगलादेश, श्रीलंका, नेपाल सहित अन्य 40 देशों के प्रतिनिधि शामिल होंगे। अलग-अलग देशों से आए प्रतिनिधि आपस में साहित्यिक, भाषाई, परम्परागत और सांस्कृतिक प्रगति पर विचार विमर्श करेंगे और समूचे विश्व को साहित्यिक और सांस्कृतिक एकता से जोड़ने की कोशिश करेंगे।
विशेष रूप में तैयार बाल मंडप में इस बार बच्चों के संवाद कौशल पर विशेष तौर पर ध्यान दिया गया है। उनके लिए विशेष वर्कशाप आयोजित की जाएंगी, जिनमें कैलीग्राफी, समाचार लेखन, एनिमेशन स्टोरी, डिवैल्पमैंट, कहानी लेखन, कला और शिल्प, खेल-खेल में गणित आदि के साथ बच्चों को रोचक ढंग के साथ लिखने का अनुभव मिलेगा। पैनल चर्चा और अलग-अलग मुकाबलों के साथ-साथ उनको मंच पर आकर अपने अंदर छुपी प्रतिभा को प्रदर्शित करने का भी मौका इस बार विशेष तौर पर दिया जाएगा।
लेखक मंच और आर्थर कॉरनर में भी बहुभाषी भारत की रौनक देखने को मिलेगी। यह एक ऐसा मंच है जहां देश-विदेश के प्रसिद्ध साहित्यकार अपनी पुस्तक के विषय-वस्तु की बात करते हुए अपने साहित्यक अनुभवों के बारे में भी बातें करेंगे।
यह अब तक का सबसे बड़ा पुस्तक मेला है। इसमें एक हज़ार से अधिक प्रकाशकों की लगभग सभी विषयों पर आधारित पुस्तकें अलग-अलग भाषाओं में पाठकों के लिए उपलब्ध होंगी। मेले में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अंतर्गत मातृ भाषा में शिक्षा प्राप्त करने की मुहिम को आगे बढ़ाते हुए पाठकों के लिए यहां क्षेत्रीय भाषाओं की पुस्तकें भी मिलेंगी। ‘बुक्स फॉर ऑल’ के तहत दृष्टिहीन पाठकों के लिए यहां ब्रेल पुस्तकें मुफ्त उपलब्ध करवाई जाएंगी।
पुस्तकों के इस महाकुंभ में इस बार 600 से अधिक साहित्य और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेले में सांस्कृतिक कार्यक्रम भी होंगे, जिनमें नाटक, संगीत और बैंड प्रदर्शन और अन्य बहुत कुछ शामिल है।
मेले को लेकर इसमें भाग लेने वाले प्रकाशकों के चेहरे पर खुशी है। उनको उम्मीद है कि कोलकाता पुस्तक मेले में हुए 27 करोड़ के कारोबार को यह विश्व पुस्तक मेला पार कर सकता है। अगर ऐसा होता है तो कोरोना के साथ पटड़ी से उतरा प्रकाशन उद्योग फिर से पटड़ी पर आ सकता है। कोलकाता पुस्तक मेले में 29 लाख लोगों की आई भीड़ और 29 करोड़ के हुए कारोबार को देख कर कहा जा सकता है कि पढ़ने की रुचि कभी भी खत्म नहीं हो सकती। जो अच्छा पढ़ना चाहता है, उसको किताबें खरीदनी ही पड़ेंगी। पुस्तक प्रेमियों के लिए अब इंतज़ार की घड़ियां खत्म हो चुकी हैं। लेखक, पाठकों, पुस्तक प्रेमियों और प्रकाशकों के एक बार फिर मिलने की ऋतु आ गई है।
इस ठंडी-ठंडी ऋतु में  किताबों की गरिमा उपलब्द होगी। यह ऋतु किताबों के साथ बात करने की है। आओ, किताबें आपको बुला रही हैं। देखना, कहीं ज्ञान के इस महाकुम्भ में डुबकी लगाने का सुनहरी मौका हाथों से निकल न जाए।

-पूर्व सम्पादक, नैशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया, नई दिल्ली
मो-7291945654