सरकारी दहशतगर्दी

सामाजिक कार्यकर्ता और सोशल मीडिया की लोकप्रिय शख्सियत भाना सिद्धू ने मालेरकोटला की सब-जेल से रिहा होने के उपरांत अपने गांव कोटदुन्ना पहुंच कर मीडिया के साथ बातचीत करते हुये पुलिस के अत्याचारों संबंधी जो खुलासे किये हैं, वे दिल दहलाने वाले हैं। इन्हें सुन कर पंजाब के हर सचेत नागरिक के मन में स्वाभाविक रूप से ये सवाल पैदा होंगे कि, क्या हम 21वीं सदी में एक लोकतांत्रिक देश में रह रहे हैं या 18वीं सदी के किसी तानाशाही शासन में जी रहे हैं। भाना सिद्धू को एक ट्रैवल एजेन्ट (जिसके पास ट्रैवल एजेंसी के कार्य संबंधी कोई रजिस्ट्रेशन भी नहीं है) द्वारा उसे धमकियां दिये जाने के संबंध में दी गई शिकायत के आधार पर गिरफ्तार किया गया था। इसके बाद उसे भिन्न-भिन्न थानों में ले जाया गया और पुलिस की ओर से उन पर अमानवीय ढंग से अत्याचार किया गया।
उसने आरोप लगाया कि उसे नंगा करके उसके साथ मारपीट की गई, बर्फ पर लेटा कर उस पर ठंडा पानी डाला गया तथा सरकार के विरुद्ध बोलने के कारण उससे माफी मंगवाई गई और इन सभी कृत्यों की पुलिस द्वारा वीडियो भी बनाई गई। भाना सिद्धू ने यह भी आरोप लगाया कि उसकी बहन जोकि एक स्कूल अध्यापिका है और कि जिसका उनके किसी भी मामले तथा उनकी रिहाई के संबंध में हुये आन्दोलन के साथ कोई संबंध नहीं है, उसके विरुद्ध भी 307 का एक झूठा मामला दर्ज किया गया। इसके अतिरिक्त उसके 18 सहयोगियों के विरुद्ध भी संगीन धाराएं लगा कर मामले दर्ज किये गये। उसने यह भी बताया कि स्वयं उस पर भी भिन्न-भिन्न शहरों में लगभग पांच मामले दर्ज किये गये हैं। उसने आरोप लगाया कि सरकार ने उसके विरुद्ध यह पूरी कार्रवाई उसका मुंह बंद करने के लिए की है, ताकि वह सोशल मीडिया   द्वारा सरकार की आलोचना न करे। उसने आगे बताया कि पंजाब में इस समय भगवंत मान सरकार द्वारा जिस तरह का तानाशाहीपूर्ण रवैया अपनाया जा रहा है, उसे राज्य का कोई भी युवा बर्दाश्त नहीं कर सकता। यहां वर्णनीय है कि 3 फरवरी को संगरूर में भाना सिद्धू की गिरफ्तारी के विरुद्ध पुलिस द्वारा लगाये गये सभी अवरोध तोड़ कर लोगों द्वारा भारी प्रदर्शन किया गया था, तथा उसकी रिहाई की मांग भी की गई थी।
वैसे यह कोई पहला मामला नहीं है जब मौजूदा सरकार के अधीन काम कर रही पुलिस ने किसी पत्रकार या सामाजिक कार्यकर्ता के खिलाफ कोई झूठा-सच्चा मामला बना कर उसकी ज़ुबान बंद करने का यत्न किया हो।  इससे पहले भी अनेक बार भिन्न-भिन्न चैनलों के पत्रकारों तथा सोशल मीडिया पर सक्रियता से लोगों की समस्याएं उभारने के लिए काम कर रहे ब्लागरों पर मामले दर्ज किये गये हैं या उनके चैनलों तथा वैबसाइटों की शिकायतों करके उनकी पहुंच कम कराई गई या उन्हें ऑफलाइन करवाया गया है। अमृतपाल सिंह की गिरफ्तारी के समय भी अनेक चैनलों एवं वैब पोर्टलों पर कार्रवाई की गई थी। जबसे इस सरकार ने सत्ता सम्भाली है, इसने एक तरफ मीडिया के एक बड़े वर्ग को अन्धाधुंध विज्ञापन देकर अपने हर वैध-अवैध काम में अपने पक्ष में चलाने का यत्न किया है, जबकि दूसरी ओर सरकार की नीतियों के प्रति आलोचनात्मक दृष्टिकोण रखने वाले मीडिया के विज्ञापन बंद करके या झूठे-सच्चे मामले दर्ज करके डराने-धमकाने की कोशिश की है। अभी कुछ दिन पहले ही सुल्तानपुर लोधी से पी.टी.सी. चैनल के लिए काम करते पत्रकार चरणजीत सिंह (जिसने अकाल बुंगा गुरुद्वारा साहिब पर पुलिस की ओर से की गई कार्रवाई की कवरेज की थी तथा तब पुलिस ने उससे तथा उसके सहयोगी कैमरामैन के साथ मारपीट भी की थी) पर दुष्कर्म का मामला भी दर्ज कर दिया है। चरणजीत सिंह के परिजनों तथा उसके गांव के ज्यादातर लोगों का आरोप है कि उस पर यह झूठा मामला दर्ज किया गया है क्योंकि वह बिना किसी दबाव के पत्रकारिता के अपने कर्त्तव्यों को निभा रहा था। सिर्फ मीडिया ही नहीं, अपितु राज्य की किसी भी पार्टी का कोई भी राजनीतिज्ञ जो सरकार की नीतियों की आलोचना करता है, मौजूदा राज्य सरकार उस पर झूठे-सच्चे मामले दर्ज करके या पुराने मामलों को पुनर्जीवित करके , उसे जेल में डालने का यत्न करती है। इस संबंध में कांग्रेस के राष्ट्रीय किसान विंग के चेयरमैन तथा हलका भुलत्थ से कांग्रेस के विधायक सुखपाल सिंह खैहरा, अकाली के वरिष्ठ नेता बिक्रम सिंह मजीठिया तथा एक अन्य सामाजिक कार्यकर्ता लक्खा सिधाणा के उदाहरण दिये जा सकते हैं। इनके अतिरिक्त और भी राज्य में भिन्न-भिन्न पार्टियों के अनेक राजनीतिज्ञ हैं, जिन पर मौजूदा सरकार ने बदले की भावना से विजीलैंस द्वारा कार्रवाई करवाई है।
पंजाब में इस समय ऐसा माहौल बन चुका है जिसमें न तो कोई राजनीतिज्ञ खुल कर बिना ़खतरा उठाये सरकार की आलोचना कर सकता है, और न ही कोई मीडिया संस्थान आज़ादी के साथ राज्य में घटित घटनाक्रमों की कवरेज कर सकता है, या इस संबंध में अपने विचारों की अभिव्यक्ति कर सकता है। हर मीडिया संस्थान को या तो लालच देकर अपने साथ जोड़ने का यत्न किया जाता है, या अलग-अलग ढंग-तरीके अपना कर उस पर दबाव डाल कर उसकी ज़ुबान बंद करने का यत्न किया जाता है। इस सन्दर्भ में हम राज्य सरकार तथा उसके इशारों पर चल रही पंजाब पुलिस को स्पष्ट तौर पर यह कहना चाहते हैं कि पंजाब के लोगों ने इस तरह के अत्याचार और अन्याय को कभी भी लम्बे समय तक सहन नहीं किया। सरकारों और पुलिस के ऐसे हथकंडों के विरुद्ध लोग बार-बार उठे हैं, और उन्होंने सरकारों को अपने दमनकारी ढंग-तरीकों को छोड़ने के लिए मज़बूर किया है। 
यदि मौजूदा दौर की बात करें तो इस समय भी पंजाब पुलिस राज्य के लोगों को सुरक्षा उपलब्ध कराने और अच्छी पुलिस सेवाएं देने में बुरी तरह असफल होती जा रही है। न तो यह राज्य में से नशों के प्रचलन को रोक सकी है, न यह गैंगस्टरों की गतिविधियों को नकेल डाल सकी है और न ही समाज विरोधी तत्वों द्वारा लोगों के प्रतिदिन किए जा रहे जान माल के नुकसान को प्रभावी ढंग के साथ रोकने में कामयाब हो रही है। लोग अपने घरों में भी सुरक्षित नहीं हैं। अपनी इन कमियों को दूर करने की जगह पुलिस राजनीतिक धरातल पर सरकार की नीतियों की आलोचना करने वाले राजनीतिज्ञों और पत्रकारों को दबाने के यत्नों में लगी हुई है। पंजाब पुलिस की ऐसी कार्रवाइयों के कारण जहां राज्य सरकार की छवि बिगड़ रही है, वहीं पुलिस की अपनी छवि भी बुरी तरह से प्रभावित हो रही है। पंजाब सरकार और पंजाब पुलिस, दोनों को ही अपनी कारगुजारी पर दोबारा से विचार करना चाहिए और राज्य में लोगों को सुरक्षा उपलब्ध करवाने के साथ-साथ उनके लोकतांत्रिक अधिकारों और विशेष तौर पर प्रैस की आज़ादी को बरकरार रखने के लिए अपना कर्त्तव्य बेहतर ढंग के साथ निभाना चाहिए।