बढ़ता हुआ टकराव

कुछ दिन पहले दो किसान संगठनों जिनके प्रधान सरवन सिंह पंधेर तथा जगजीत सिंह डल्लेवाल हैं, ने किसानी मांगों को लेकर ‘दिल्ली चलो’ का आह्वान किया था। इससे पहले वर्ष 2020-21 में भी पंजाब के दो दर्जन से अधिक किसान संगठनों ने ‘दिल्ली चलो’ का नारा दिया था। संबंधित किसान उस समय भारी मुश्किलों का सामना करके एवं हरियाणा सरकार की ओर से लगाये गये कड़े अवरोधों को हटा कर दिल्ली की सीमा पर पहुंच गये थे। वहां लगभग 14 मास तक वे डटे रहे थे। इस दौरान वहां गये लगभग 700 किसान भी उस आन्दोलन की भेंट चढ़ गये थे तथा उस समय भी दिल्ली के संबंधित मंत्रियों की किसान नेताओं के साथ लगातार बैठकें होती रही थीं, परन्तु बात किसी ठोस परिणाम पर नहीं पहुंची थी। अंतत: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को नये पारित किये गये तीन कृषि कानूनों को वापिस लेने की घोषणा करनी पड़ी थी।
इसके बाद जुलाई, 2022 में केन्द्र सरकार द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य एवं कृषि से संबंधित अन्य पहलुओं पर विचार-विमर्श करने के लिए उच्च-स्तरीय समिति बनाई गई थी, जिसमें सरकारी एवं ़गैर-सरकारी क्षेत्रों से इस व्यवसाय के साथ संबंधित शख्सियतों एवं अनेक कृषि वैज्ञानिकों को शामिल किया गया था। इस समिति में किसान संगठनों के छ: प्रतिनिधियों को शामिल होने के लिए निमंत्रण दिया गया था, जिसमें संयुक्त किसान मोर्चा के आन्दोलन के साथ जुड़े तीन प्रतिनिधि भी शामिल होने थे, परन्तु किसान संगठनों ने इस समिति का बहिष्कार कर दिया था। यह 28 सदस्यीय समिति अब तक 37 बैठकें कर चुकी है तथा शीघ्र ही इसकी रिपोर्ट की घोषणा कर दी जाएगी। 
परन्तु इस बार केन्द्र सरकार के तीन मंत्रियों ने शम्भू तथा खनौरी सीमा पर मोर्चाबंदी करके बैठे किसान संगठनों के नेताओं के साथ कई बैठकें की हैं। सरकार ने मक्की, कपास एवं कई दालों की पांच वर्ष के लिए सरकारी एजेंसियों द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य पर पांच वर्ष के लिए खरीद की पेशकश की थी, जिसे इन किसान यूनियनों ने रद्द कर दिया क्योंकि बाद में केन्द्रीय मंत्री द्वारा यह कहा गया कि पांच फसलों के समर्थन मूल्य पर खरीद सिर्फ उन किसानों से होगी जो धान की फसल के स्थान पर उपरोक्त फसलों की काश्त को प्राथमिकता देंगे। भारतीय किसान यूनियन राजेवाल के प्रधान बलबीर सिंह राजेवाल ने भी इस पेशकश को रद्द करते हुए समूची 23 फसलों की सी2+50 फार्मूले पर आधारित समर्थन मूल्य पर खरीद की कानूनी गारंटी बिना कोई भी समझौता स्वीकार करने से इन्कार कर दिया है। पंजाब में संगठनों ने तीन दिन के लिए भाजपा के वरिष्ठ नेताओं के निवास स्थान के समक्ष धरने की घोषणा की थी, वहीं पंजाब भर के टोल प्लाज़ा को टोल मुक्त करने की घोषणा करके वहां पर भी धरने लगा दिये गये थे। किसानों ने सरकार की इस पेशकश को रद्द करते हुए अब पूरी तरह दिल्ली कूच के आन्दोलन को तीव्र करने की गतिविधि शुरू कर दी है तथा इसके लिए भिन्न-भिन्न टीमें भी बना दी गई हैं। यहां  हरियाणा सरकार की ओर से लगाये गये बैरीकेड तोड़ने के लिए भी टीमें बनाई गईं हैं। दूसरी ओर हरियाणा सरकार ने पंजाब के किसानों को रोकने के लिए अपनी सीमाओं पर पहले ही जो कड़ी नाकाबंदी की हुई है, उसे और भी मज़बूत कर दिया है। हरियाणा सरकार ने सीमाओं के 30 किलोमीटर तक के क्षेत्र को भी एक तरह से सील कर दिया है तथा वहां पुलिस, अर्ध-सैनिक बल एवं आम बटालियन तैनात कर दी गई हैं, जो प्रत्येक परिस्थिति में किसानों को आगे बढ़ने से रोकेंगीं। ऐसी स्थिति पैदा होने पर समूचे रूप में चिन्ता का बढ़ना स्वाभाविक है।
पिछले सप्ताह भर से ही पंजाब हर तरह की नाकाबंदी  में से गुज़र रहा है। अब तक व्यापार तथा उद्योग के क्षेत्र में इसे हज़ारों करोड़ों रुपये का नुकसान हो चुका है। प्रतिदिन हज़ारों ही ट्रक जो पंजाब से गुज़रते थे, वे पूरी तरह थम गए हैं। उनमें भरा सामान न इधर से उधर जा रहा है, न उधर से इधर आ रहा है। जन-साधारण तथा यात्री भी इस स्थिति के कारण बड़ी सीमा तक परेशान हो रहे हैं। वे अपने सामाजिक एवं धार्मिक पर्वों के लिए हरियाणा से दिल्ली की ओर जाने में कठिनाई महसूस कर रहे हैं। दिल्ली हवाई अड्डे पर पहुंचने में भी लोगों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। किसान संगठनों की घोषणा के बाद एवं केन्द्र तथा हरियाणा सरकार द्वारा हर परिस्थिति में उन्हें रोकने के प्रबन्ध से हालात के और भी ़खतरनाक रूप धारण करने की आशंका बन गई है, जिसे प्रदेश एवं प्रदेश वासियों के लिए एक और बुरा संकेत ही कहा जा सकता है। बने ये हालात अब कोई भी रूप धारण कर सकते हैं, क्योंकि इस समस्या का हल शीघ्र कहीं निकलते दिखाई नहीं दे रहा। बेहतर यही होगा कि केन्द्र सरकार तथा किसान संगठन अभी भी बातचीत से किसी सम्मानजनक समझौते पर पहुंचने और इस टकराव को और बढ़ने से रोकने के लिए यत्न करें।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द