वैश्विक शांति हेतु हमेशा प्रयासरत रहा है भारत

 

भारत हमेशा से शांति, सद्भावना और सौहार्द का सर्वकालिक समर्थक रहा है। रूस-यूक्रेन युद्ध में भारत की तरफ  से लगातार प्रयास किए जाते रहे हैं कि युद्ध विराम हो जाए और इसके लिए भारत में सतत् प्रयास भी किए हैं। यह अलग बात है कि विस्तारवादी दृष्टिकोण को लेकर पुतिन और जेलेन्सकी अजीब-सी राजनीतिक और कूटनीतिक परिस्थितियों में एक-दूसरे के सामने खड़े तथा अड़े हुए हैं। अब इज़रायल-हमास युद्ध में भारत की नीति स्पष्ट रूप से आतंकवाद के विरोध में रही है। भारत ने आतंकवादी संगठन हमास, हिज्बुल्लाह और फिलिस्तीन इस्लामी जिहाद का खुलकर विरोध किया है, परन्तु दूसरी तरफ इज़रायल के हमलों से घायल हुए फिलिस्तिनी नागरिकों के लिए 38 टन खाद्य सामग्री, दवाएं और आवश्यक वस्तुएं तत्काल मुहैया कराई हैं। भारत के संबंध अरब देशों के साथ-साथ यूरोप, अमरीका, ब्रिटेन, फ्रांस और नाटो देशों के साथ भी मधुर हैं। इन परिस्थितियों में अरब देश भारत के प्रति युद्ध विराम की संभावनाओं की तलाश में भारतीय पहल का इंतज़ार कर रहा है। अब भारत ने संयुक्त राष्ट्र की सभा में जॉर्डन के शांति प्रस्ताव हेतु वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया। 120 देशों के मतों से प्रस्ताव पारित हो गया। 45 देशों ने वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया। चूंकि जॉर्डन हमास को उग्रवादी संगठन नहीं मानता। अब भारत को आगे बढ़कर पूरे विश्व का नेतृत्व करने का समय आ गया है। भारत शुरू से अहिंसा का समर्थक रहा है। 
भारत लगातार ‘अहिंसा परमो धर्म’ की नीति पर अपने कदम बढ़ाता रहा है। कुछेक उदाहरण को छोड़ दिया जाए जैसे पाकिस्तान द्वारा लगातार भारत पर आक्रमण करने से भारत ने मुंह तोड़ जवाब भी दिया। इसी के परिणामस्वरूप बांग्लादेश का जन्म भी हुआ, परन्तु इस घटना में भी भारत की वैश्विक स्तर पर शांतिदूत की भूमिका ही रही। भारत की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर छवि एक धर्मनिरपेक्ष व गणतांत्रिक लोकतंत्र की रही है। भारत ने ऐतिहासिक तौर पर कभी किसी राष्ट्र पर अपनी तरफ  से आक्रमण हमला नहीं किया। संयुक्त राष्ट्र के वैश्विक स्तर पर शांति प्रयासों में भारत की भूमिका भी महत्वपूर्ण रही है। भारत की स्वतंत्रता के बाद मोदी सरकार ने भी वसुधैव कुटुंबकम् की नीति का परिचालन कर विश्व को संदेश दे दिया है। वह विश्व में भी शांति और सौहार्द बनाए रखना चाहता है। इसी के तहत 2020 में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र के स्थापना दिवस की 75वीं वर्षगांठ के अवसर पर आभासी आयोजन में हिंदी में संभाषण किया था। संयुक्त राष्ट्र संघ की सभा को उनकी ओर से हिन्दी में सम्बोधित करने का तीसरा अवसर था। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र के द्वारा किए जा रहे शांति प्रयासों में भारत की भूमिका का भी ज़िक्र किया। इसके साथ ही उन्होंने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के लोकतांत्रिक होने के प्रयासों में अपना दावा भी पेश किया था। 
उल्लेखनीय है कि भारत में संयुक्त राष्ट्र के सभी शांति प्रयासों में अपनी सशक्त ज़िम्मेदारी निभाते हुए अपना सहयोग तथा शांति सेनाओं को प्रभावित क्षेत्रों में भेजकर एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
भारत ने संयुक्त राष्ट्र संघ आह्वान पर कोरिया, वियतनाम, लागोस, मिस्र, सीरिया, लाइबेरिया, युगोस्लावियात नामीबिया, सोमालिया, सूडान सहित अनगिनत देशों में अपनी सेनाएं वहां पर शांति बहाली हेतु अलग-अलग समय में उपलब्ध करवाई थीं।
 भारत ने न सिर्फ  संयुक्त राष्ट्र के शांति अभियान में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया है बल्कि विश्व के अनेक तनावग्रस्त, संकटग्रस्त एवं युद्ध वाले देशों के मध्य अपनी कूटनीतिक, राजनीतिक भूमिका भी कर्मठता से निभाई है। संयुक्त राष्ट्र के बहुत से कार्य महत्वपूर्ण होने के साथ-साथ जटिल भी होते हैं। भारत जिस तरीके से आत्मनिर्भर होकर विदेश की सरकारों से अपने संबंध स्तापित किए हैं, उससे यह प्रतीत हो रहा है कि  भारत को संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद का स्थाई सदस्य बनने में अधिक समय नहीं लगेगा।
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