बेतरतीबी है ‘घर-घर राशन योजना’

केन्द्र सरकार की ‘प्रधानमंत्री गरीब अन्न कल्याण योजना’ को पंजाब सरकार ने ‘घर-घर राशन योजना’ के रूप में बदल कर इसकी जो शुरुआत की है, उससे  होने वाले बिखराव का रूप अभी से उजागर होना शुरू हो गया है। इस तरह की बड़ी योजना जिसके अधीन डेढ़ करोड़ से अधिक उपभोक्ता आते हैं, को बिना पूरी योजनाबंदी के चलाने की घोषणा करके इसकी पहले बनी तरतीब को बेतरतीब बना दिया गया है। केन्द्र द्वारा हर मास उपभोक्ताओं को पांच किलो मुफ्त गेहूं दी जा रही है परन्तु पंजाब सरकार ने अब इसे आटे के रूप में बदल दिया है। यहीं बस नहीं, गेहूं की पिसाई तथा आटा घर-घर पहुंचाने के लिए 670 करोड़ का वार्षिक अतिरिक्त खर्च प्रदेश के खज़ाने पर डाल दिया गया है। कोरोना काल से चल रही इस केन्द्रीय खाद्य सुरक्षा योजना को अपने तौर पर बदल देना क्या राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में आता है? यह विचार करने वाला सवाल है। पहले भी सरकार ने कुछ केन्द्रीय योजनाओं को अपने ढंग-तरीके से बदल कर ऐसा बिखराव डाला हुआ है, जिससे केन्द्र सरकार नाराज़ है तथा इस कारण उसने राज्य सरकार के फंड भी रोक रखे हैं।
केन्द्र की ‘राष्ट्रीय स्वास्थ्य सुरक्षा योजना’ को ‘आम आदमी क्लीनिकों’ के नाम से नया रूप देकर शुरू करने पर केन्द्र सरकार ने इस योजना के अधीन दिये जाने वाले 1800 करोड़ रुपये रोक लिए हैं, परन्तु अब खाद्य सुरक्षा एक्ट में स्वयं ही बदलाव करके राज्य सरकार चाहे चुनाव नज़दीक होने के कारण इसका श्रेय ज़रूर लेना चाहती है, परन्तु इसमें कुछ ही दिनों में जो बिखराव पड़ता दिखाई दे रहा है, उसे किस प्रकार सम्भाला जाएगा, इस संबंध में कुछ भी स्पष्ट दिखाई नहीं देता। राज्य सरकार ने अपने ही करवाए सर्वेक्षण के मुताबिक 10 लाख से अधिक अप्रमाणित उपभोक्ताओं को दोबारा सूचि में शामिल करके जिस प्रकार आटा बांटने की योजना के अधीन लाया है, उसका हिसाब कौन देगा? दशकों से तयशुदा कार्य प्रणाली के अधीन राशन सप्लाई करते रहे 1800 डिपु होल्डरों का क्या बनेगा, इसके संबंध में सरकार के पास कोई स्पष्ट जवाब नहीं है। राशन डिपुओं द्वारा खाद्य पदार्थ बांटने का बढ़िया और सस्ता तरीका बना हुआ था, जिसके तहत डिपु होल्डर 50 रुपये प्रति क्विंटल कमिशन पर काम करते थे। वहीं अब सरकार ने 15 हज़ार रुपये मासिक वेतन पर कर्मचारी और 8 हज़ार मासिक पर हैल्पर रखे हैं। डिपु होल्डरों का कहना है कि पंजाब सरकार ने लोकसभा के चुनावों के मद्देनज़र गरीब लोगों को गुमराह करने के लिए और गेहूं को आटे में बदलने के कारण उसकी थैलियों पर अपनी प्रचार सामग्री छापने का जो प्रबंध किया है, वह किसी भी तरह से ठीक नहीं है। उन्होंने कहा कि यह योजना दिल्ली में फेल हो चुकी है और दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा भी इसको बंद करने के आदेश दिए हुए हैं। उन्होंने कहा कि हमारे द्वारा भी पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गई है, जिसकी सुनवाई 27 फरवरी को होनी है लेकिन मामला अदालत के विचाराधीन होने के बावजूद मान सरकार ने लोकसभा चुनावों से पहले यह योजना शुरू करके एक तरह से अदालत को भी नज़रअंदाज़ किया है। 
मिल रहे समाचारों के अनुसार यह आटा घर-घर जाकर नहीं दिया जा रहा, बल्कि इसके लिए लोगों को सड़कों पर धक्का-मुक्की करनी पड़ रही है। इस समाचार के अनुसार मार्कफैड के जो कर्मचारी सरकारी राशन लेकर आते हैं, वे क्षेत्र के पार्षद या फिर ‘आप’ सरकार के अपने नेताओं के घर के निकट गाड़ियां लगवा लेते हैं, जहां लोगों की पर्चियां काट कर लम्बी कतारें लगा कर राशन दिया जाता है। अक्सर देखा जा रहा है कि ये नेता अपने खास लोगों को पहले राशन दे रहे हैं। इस कारण कई गरीब परिवार सरकार की ओर से भेजे जा रहे राशन से वंचित रह जाते हैं। योजना के अनुसार यह राशन लोगों को घर-घर जाकर पर्ची काट कर उपलब्ध करवाना होता है, परन्तु ऐसा नहीं किया जा रहा। एक और सूचना के अनुसार घर-घर आटा पहुंचाने के स्थान पर मार्कफैड के कर्मचारी गावों की चौपालों में एक स्थान पर लोगों को इकट्ठा करके राशन वितरित करते हैं। कुछ गांवों में बिना बायोमैट्रिक मशीनों के सिर्फ आधार कार्ड का नम्बर नोट करके ही कर्मचारी राशन वितरित कर देते हैं। यह राशन योजना आम आदमी पार्टी के स्थानीय नेताओं के लिए अपनी राजनीति चमकाने का माध्यम बनती जा रही है। समाचारों के अनुसार कुछ गांवों में आम आदमी पार्टी के नेता लोगों को अपने कार्यालयों में पहुंच कर राशन लेने के लिए मजबूर करते हैं, जिससे आपसी विवाद लगातार बढ़ता जा रहा है। 
पूरे देश में डिपुओं से आती गेहूं तथा चावल को बायोमैट्रिक मशीनों के माध्यम से ही लाभपात्रियों को वितरित किया जाता है। डिपो होल्डर पारिवारिक सदस्यों की संख्या के अनुसार ही गेहूं देते रहे हैं और यह ऐंट्री तुरंत खाद्य आपूर्ति विभाग के कार्यालय चंडीगढ़ में पहुंचा दी जाती रही है। चाहे ‘आप’ प्रमुख केजरीवाल तथा मुख्यमंत्री भगवंत मान ने पंजाब में इस योजना को लागू तो कर दिया है, परन्तु जिस प्रकार यह योजना शुरू से ही अस्त-व्यस्त हो गई है, उससे यह प्रतीत होता है कि यह आने वाले कुछ समय में ही सरकार की अन्य कई योजनाओं की भांति दम तोड़ जाएगी। ऐसी योजनाओं के कारण लगातार बढ़ते वित्तीय घाटे की भरपायी कैसे की जा सकेगी, इस संबंध में सरकार के पास कोई भी ठोस योजना नहीं है। ऐसी योजना प्रदेश पर और ऋण चढ़ाने वाली तथा लोगों में उथल-पुथल मचाने वाली ही सिद्ध होगी।
  


—बरजिन्दर सिंह हमदर्द