कांग्रेस-सपा के तालमेल से बंधी विपक्ष की उम्मीद

उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के कार्यकर्ता उत्साहित हैं क्योंकि पहली बार ज़मीनी स्तर के कार्यकर्ताओं को यह विश्वास हो रहा है कि सीटों के बंटवारे पर सहमति बनने के बाद राज्य में भाजपा को हराया जा सकता है। दूसरी ओर भाजपा के राज्य नेता घबराये हुए हैं, हालांकि पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने जनता को विश्वास दिलाया कि उन्हें राज्य की कुल 80 सीटों में से 65 सीटें मिलेंगी।
लेकिन सत्तारूढ़ खेमा राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ के राज्य से गुजरने के साथ इस गठबंधन के संभावित प्रभावों से पूरी तरह वाकिफ  था। सीट बंटवारे पर सहमति के बाद सपा नेता अखिलेश यादव की भागीदारी यात्रा को नयी गति दे रही है। राहुल गांधी की यात्रा को अब जबरदस्त प्रतिक्रिया मिल रही है। अखिलेश और अन्य सपा नेताओं के शामिल होने के बाद इसका दायरा और व्यापक होगा।
दरअसल राहुल गांधी की चल रही ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ को बड़े समर्थन ने समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव को राज्य की 80 सीटों के लिए लोकसभा चुनाव में सीट बंटवारे में तेजी लाने के लिए मजबूर किया। जिस तरह से लखनऊ और अन्य स्थानों पर ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ में बड़ी संख्या में मुस्लिम समुदाय ने भाग लिया, उसने समाजवादी पार्टी नेतृत्व को लोगों के मूड को समझने के लिए मजबूर कर दिया।
दूसरी ओर कांग्रेस नेतृत्व को भी इस बात का एहसास था कि सीट बंटवारे के बाद ही अखिलेश यादव यात्रा में शामिल होंगे। इसलिए उन्होंने भी सीट बंटवारे में तेज़ी ला दी। शुरुआत में कांग्रेस उत्तर प्रदेश में 20 सीटें चाहती थी लेकिन बाद में 17 सीटों पर समझौता कर लिया और मध्य प्रदेश में समाजवादी पार्टी को एक सीट देने पर समहत हो गयी। कांग्रेस को प्रतिष्ठित वाराणसी सीट मिली जहां उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष अजय राय ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ दो बार चुनाव लड़ा था। शुरुआत में समाजवादी पार्टी ने वाराणसी को अपनी सूची में शामिल किया था, परन्तु बातचीत के बाद उसने यह सीट कांग्रेस के लिए छोड़ दी।
अल्पसंख्यक समुदाय के वोटों में विभाजन को रोकने के लिए समाजवादी पार्टी और कांग्रेस नेताओं पर हाथ मिलाने के लिए मुस्लिम समुदाय का जबरदस्त दबाव था। पिछले विधानसभा चुनावों के दौरान अधिकांश मुस्लिम वोट समाजवादी पार्टी को मिले थे, लेकिन लोकसभा चुनावों के मद्देनज़र राहुल गांधी के आक्रामक रवैये के कारण मूड कांग्रेस की ओर हो गया, जो लगातार भाजपा पर हमला कर रहे हैं।
समाजवादी पार्टी के पास अब चुनाव लड़ने के लिए 63 सीटें हैं और पार्टी छोटे दलों और जाति आधारित समूहों के साथ इस सीटों को साझा कर सकती है। समाजवादी पार्टी पश्चिमी उत्तर प्रदेश में दलित समुदाय में प्रभाव रखने वाले चंद्र शेखर रावण की भीम आर्मी, शक्तिशाली राजपूत नेता और पूर्व मंत्री रघुराज प्रताप सिंह की जनसत्ता दल जिसे राजा भैया के नाम से भी जाना जाता है, महान दल और अन्य के साथ बातचीत करेगी।
गौरतलब है कि पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 62, बहुजन समाज पार्टी ने 10, समाजवादी पार्टी ने पांच, अपना दल ने दो और कांग्रेस ने एक सीट जीती थी। हालांकि 2017 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी कांग्रेस के साथ गठबंधन में थी, लेकिन वह अखिलेश यादव को सत्ता बरकरार रखने में मदद नहीं कर सकी। 2017 के विधानसभा चुनावों के बाद उत्तर प्रदेश विधानसभा में 300 से अधिक सीटों के साथ भाजपा सत्ता में आयी और योगी आदित्यनाथ को मुख्य मंत्री बनाकर भाजपा ने सभी को चौंका दिया।
2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान समाजवादी पार्टी बसपा के साथ गठबंधन में थी जबकि समाजवादी पार्टी 2014 में जीती गईं केवल पांच सीटें ही बरकरार रख सकी और बसपा ने सीटों की संख्या शून्य से बढ़ाकर 10 कर दी। चुनाव के बाद बसपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने बसपा उम्मीदवारों को वोट स्थानांतरित करने में विफलता के लिए समाजवादी पार्टी पर दोष मढ़ते हुए गठबंधन को भंग कर दिया था।
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या प्रियंका गांधी अपनी मां सोनिया गांधी की जगह रायबरेली से चुनाव लड़ती हैं या नहीं, जो अब राजस्थान से राज्यसभा के लिए चुनी गईं हैं। हालांकि यूपीसीसी अध्यक्ष अजय राय ने दावा किया कि राहुल गांधी अपनी पारिवारिक सीट अमेठी में वापस आयेंगे, लेकिन गांधी परिवार की ओर से ऐसा कोई फैसला नहीं लिया गया है। (संवाद)