विज्ञान के क्षेत्र में सिर्फ दावों जितनी गुलाबी तस्वीर तो नहीं !

राष्ट्रीय विज्ञान दिवस पर विशेष

पांच साल पहले प्रधानमंत्री ने नए भारत का नया नारा दिया था। यह ‘जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान’ के साथ ‘जय अनुसंधान’ का था। विकास के अग्रदूत माने जाने वाले प्रधानमंत्री मोदी यह जानते हैं कि विज्ञान के बिना विकास के मार्ग पर सतत् बढ़ना संभव नहीं। विज्ञान और अनुसंधान ही वे माध्यम हैं, जिनसे देश अपने वर्तमान में सार्थक बदलाव करके भविष्य को सुरक्षित तथा खुशहाल बना सकता है। सरकारी दावा है कि देश में अनुसंधान और विकास कार्यों की रफ्तार कई क्षेत्रों में खासी तेज़ है और सहयोग, समर्थन व पर्याप्त निवेश से शिक्षा, कृषि, स्वास्थ्य, अंतरिक्ष अनुसंधान जैसे अनेक क्षेत्रों में उल्लेखनीय प्रगति हुई है जिसके चलते भारत बुनियादी अनुसंधान के क्षेत्र में शीर्ष देशों में शामिल हुआ। भले ही हम वैश्विक नवाचार सूचकांक में 40वें स्थान पर हों लेकिन विज्ञान और प्रौद्योगिकी अनुसंधान के क्षेत्र में आगे रहने वाले देशों में सातवें पायदान पर हैं।
वैश्विक अनुसंधान एवं विकास हब के रूप में तेज़ी से उभरता देश नैनो तकनीक पर शोध तथा कृत्रिम बुद्धिमत्ता के विकास के मामले में अपनी अलग हैसियत रखता है। स्टार्टअप इको-सिस्टम की संख्या के मामले में भारत अब संसार के पहले तीन देशों में से है क्योंकि विश्व की तीसरी सबसे बड़ी वैज्ञानिक और तकनीकी जनशक्ति भी हमारे यहां ही है। तकनीक के क्षेत्र में भारत की वर्तमान स्थिति को मंगलयान और आदित्य के प्रक्षेपण या फिर मौसम के पूर्वानुमान एवं निगरानी के लिये बनाये सुपरकम्प्यूटर प्रत्यूष अथवा ‘परम सिद्धि एआई’ को बनाने, कोविड के वैक्सीन निर्माण वगैरह के जरिये आसानी से समझा जा सकता है। लेकिन अंतरिक्ष विज्ञान, नैनो तकनीक और एआई तथा कुछ दूसरे तकनीकी क्षेत्रों की सफलता तथा उनकी गुलाबी तस्वीर विज्ञान की कहानी नहीं कहती। 
यह उन सवालों का जवाब नहीं देती कि आज विश्व में वैज्ञानिक प्रतिस्पर्द्धा क्षेत्र में देश चीन, जापान से पीछे क्यों है? अनुसंधान अथवा शोधपत्रों के नज़रिये से भी वैश्विक विज्ञान में भारत का योगदान महज 3 प्रतिशत क्यों है। 
भारत सरकार ने 1986 में, 28 फरवरी को राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के रूप में नामित किया और अगले साल से हमें इसी तारीख पर राष्ट्रीय विज्ञान दिवस मनाते हुए साढ़े तीन दशक से ज्यादा हो गये। अब यह सोचना ज़रूरी है कि हम इसके उद्देश्यों की प्राप्ति की ओर कितना और किस तेज़ी से बढ़े हैं। कहीं ऐसा तो नहीं कि यह भी अन्य दिवसों की तरह आने जाने वाली एक तारीख होकर तो नहीं रह गया है! अब जब हम आजादी के 75वें बरस को पार करने वाले हैं, तब यह और भी आवश्यक है कि हम विज्ञान दिवस मनाने के फलितार्थ के परिप्रेक्ष्य में भारत में विज्ञान की प्रगति का आकलन करें। इस बार विज्ञान दिवस की थीम है ‘विकसित भारत के लिए स्वदेशी तकनीक’। हर बार इसका एक विषय होता है और उस विषय पर सरकार और संस्थाएं जोर देने और निर्धारित सरकारी लक्ष्य की प्राप्ति का प्रयास करती हैं। 
इसी तरह भविष्य के लिये प्रकृति का संरक्षण, ‘पृथ्वी ग्रह को समझना’, ‘विज्ञान का सीमा विस्तार’ और ‘विज्ञान में महिलाएं वगैरह तमाम दूसरे विषय भी। बेशक इन विषयों पर संदर्भित वर्ष में काम हुए होंगे, योजनाएं, रूपरेखाएं बनी होंगी लेकिन उल्लेखनीय प्रगति को हमें कुछ तय मानकों के आधार पर आंकना होगा। राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद तथा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय का कहना है कि वह विद्यार्थियों को विज्ञान के प्रति आकर्षित व प्रेरित करने, जनसाधारण को विज्ञान एवं वैज्ञानिक उपलब्धियों, फायदों के प्रति सजग बनाने, जागरूकता लाने और समाज में वैज्ञानिक सोच पैदा करने के उद्देश्य से इस दिवस को मनाता है। सवाल यह है कि उसका यह सपना विगत सैंतीस सालों के विज्ञान दिवस आयोजनों के बाद कितना साकार हुआ है? 
आज विश्व में शीर्ष दो प्रतिशत वैज्ञानिकों की सूची में भारत 21वें स्थान पर है। भारत के नंबर एक वैज्ञानिक की वैश्विक रैंकिंग 124वीं है। संस्थानों की बात करें तो दुनिया के शीर्ष दो प्रतिशत वैज्ञानिकों की संख्या में हार्वर्ड विश्वविद्यालय से 576 वैज्ञानिक सूची में हैं, स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय से 377 तो ऑक्सफोर्ड से 252 वैज्ञानिक शामिल हैं जबकि टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (टीआईएफआर), इंस्टीट्यूट ऑफ  केमिकल टेक्नोलॉजी और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ  साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च कोलकाता और वेरिएबल एनर्जी साइक्लोट्रॉन सेंटर से इस सूची में चार चार वैज्ञानिक जगह बना सके हैं जबकि मद्रास और बॉम्बे के आईआईटी, भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (बीएआरसी) और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के बस तीन-तीन वैज्ञानिक शामिल हैं। 
अंधविश्वास बेशक कम हुए लेकिन नये तरीके के अंधविश्वावस फैलाने के तमाम उपकरण उपस्थित हो गये हैं। हमारा वैज्ञानिक अतीत नि:संदेह गौरवशाली रहा है पर हमें उसी तरह अपने प्राचीन विज्ञान का वस्तुपरक अध्ययन करना चाहिए जैसा चीन के अपने नीधम रिसर्च इंस्टीट्यूट द्वारा करता है। सरकार को चाहिये कि वह अनुसंधान एवं विकास गतिविधियों को बढ़ाने के लिये विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थानों में उचित संस्थागत ढांचे, उपयुक्त अवसंरचना, वांछित परियोजनाएं और पर्याप्त निवेश की महती आवश्यकता को समझे।

-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर