कहीं जीवन के लिए खतरा न बन जाए मानसिक तनाव

अक्सर ऐसे व्यक्ति हमारे आसपास मिल जाएंगे जो वैसे तो ठीक ठाक दिखाई देंगे लेकिन जब उनसे बात की जाती है तो बहकी-बहकी सी बातें करेंगे, उनके चेहरे पर मुस्कान का तो नामोनिशान नहीं, किसी गहरी निराशा और अवसाद में डूबे नज़र आते हैं। बातों में उदासी और शरीर में कमज़ोरी दिखाई देती है। कुछ देर चलने या बात करने में सांस उखड़ने लगती है और बैठने की जगह तलाशने लगते हैं। आम तौर से हम सलाह दे देते हैं कि डॉक्टर से दवा ले लीजिए और हां, पूरा चेकअप करवाइए, कहीं कोई भयंकर बीमारी अंदर ही अंदर न पल रही हो। हमने तो अपनी तरफ से यह कहकर अपना कर्त्तव्य निभा दिया लेकिन इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि इसे शरीर की जगह मन का रोग भी हो सकता है।
दवाई से बेहतर काऊंसलिंग
असल में होता यह है कि जब कोई व्यक्ति अपनी ओर से पूरी मेहनत करने के बावजूद अपने काम में सफल नहीं होता, दूसरों को लगातार उन्नति करते देखकर अपने को यह समझने लगता है कि मैं किसी काम का नहीं हूँ और मुझसे कुछ नहीं होगा, तो वह निराशा के भंवर में डूबने लगता है। वह हीन भावना से ग्रस्त होने लगता है और बिना किसी कारण के हर समय तनाव में रहने लगता है। यह उसकी आदत सी बन जाती है। उसकी इस अवस्था का किसी अन्य को न तो अंदाज़ा होता है और न ही इस तरफ ध्यान जाता है कि इस व्यक्ति को शारीरिक नहीं एक तरह की मानसिक बीमारी है जिसका इलाज सामान्य डॉक्टर के पास नहीं बल्कि स्वयं अपने पास है या ऐसे डॉक्टर के पास जो मनोचिकित्सक हो।
आज के दौड़ भाग वाले जीवन में और एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ में ऐसे लोगों की संख्या तेज़ी से बढ़ रही है, विशेषकर युवा वर्ग में, जो अपने लक्ष्य के प्रति ज़रा सी भी चूक जाने के कारण निराशा और हताशा के समुद्र में गोते खाते रहते हैं और इसके लिए अपने को और अपने परिवार तथा अपनी परिस्थितियों को ज़िम्मेदार मानकर कुंठाग्रस्त जीवन जीने लगते हैं। इसके अतिरिक्त एक और कारण होता है जो आम तौर से अनदेखा कर दिया जाता है। यह है बचपन में अर्थात् आठ दस या बारह वर्ष की आयु में कुछ ऐसा हो जाये जो बच्चे की समझ में न आये जैसे कि छेड़खानी, पिटाई, चोट लगना, अपनी या दूसरे की लापरवाही से घायल हो जाना। अब बालक का मन जो अभी विकसित हो रहा है, इस तरह की घटना का विश्लेषण करने में असमर्थ रहता है तो उस पर एक प्रकार का दबाव बनने लगता है जो हो सकता है कि जीवन भर बना रहे।
मुम्बई के लोखंडवाला में अपना क्लीनिक चला रहे एक डॉक्टर से पिछले दिनों इस बारे में विस्तार से बात हुई। उनका कहना है कि यदि समय रहते इस प्रकार के मनोरोगी की चिकित्सा नहीं की गई तो जीवन में कभी भी बरसों पहले घटी कोई घटना अचानक से मन में जीवित हो सकती है और किसी बड़ी दुर्घटना का कारण बन सकती है, जो जानलेवा भी हो सकती है। उनका कहना है कि ऐसे व्यक्ति की अवहेलना नहीं की जानी चाहिए, न ही उस पर दोष लगाना चाहिए बल्कि काऊंसलिंग थेरेपी से उसकी चिकित्सा होना ज़रूरी है। इसके लिए किसी दवाई से ज्यादा उसके साथ बातचीत कर उसके मन में जो बरसों पहले की घटना जड़ जमाकर बैठी है, उसे बाहर निकालना होता है।
ऐसा भी होता है कि मनोरोग से पीड़ित व्यक्ति कोई नशीला पदार्थ लेने लगे ताकि अपने साथ हुई घटना को भूल सके। इससे उसकी स्थिति सुधरने के स्थान पर खराब भी हो सकती है। यह एक जबरदस्त आघात या ट्रामा का कारण भी बन सकता है। कुछ घटनाएं तो वास्तविक होती हैं लेकिन कुछ काल्पनिक भी हो सकती हैं और अपने मन से बना ली जाती हैं। अब सोच की तो कोई सीमा नहीं होती, इसलिए कुछ भी सोचा जा सकता है। यह सब दिमाग के एक कोने में भंडार की तरह जमा होता रहता है। अब दिमाग को तो पता नहीं कि क्या असली घटना है और क्या केवल काल्पनिक है, लेकिन भंडारण होता रहता है। यह एक तरह से हमारी भावनाओं का संकलन है जो कभी जीवन में वैसी ही घटना होने से आन्दोलित हो सकता है। मान लीजिए कभी लाल रंग की किसी चीज से कोई हादसा हुआ हो तो वह उम्र के किसी भी दौर में दोबारा होने या दिखाई देने पर दिमाग में उभर सकता है और व्यक्ति उसकी चपेट में आ सकता है और किसी गंभीर स्थिति का शिकार बन सकता है। इसमें उसकी मृत्यु भी हो सकती है।
जब हम किसी बात को अपने मन में बहुत बढ़ा चढ़ा कर यानी उसका अपनी कल्पना से कोई भी आकार देने लगते हैं तो वह दिमाग में अंकित होता जाता है और चाहे सामने कुछ न हो लेकिन व्यक्ति को वह दिखाई देने लगता है जो किसी भीषण दुर्घटना का कारण भी बन जाता है।
अब जो चिकित्सक है, उसका काम यह हो जाता है कि वह उस व्यक्ति का उपचार करने के लिए जीवन की उन घटनाओं का विवरण लेता है जो मन के भंडार में जमा हैं। वह अपनी थेरेपी से व्यक्ति के दिमाग में एक तरह से जो कचरा या गंदगी जाने अनजाने जमा हो गई है, उसे निकालकर उसे मानसिक रूप से स्वस्थ बनाने का काम करता है। उसका तनाव या डिप्रेशन, हीनभावना और कुंठा है, उसे साफ करता है और इस तरह के व्यायाम कराता है जिनसे दोबारा यह सब दिमाग में न भर सके और व्यक्ति अपने को बुरी भावनाओं या कल्पना से मुक्त रख सके।
आवश्यक यह है कि जब भी स्वयं को यह लगे कि मन में कुछ अजीब सी उथलपुथल हो रही है, कुछ न होते हुए भी एहसास हो रहा हो कि मेरे साथ गलत होने वाला है तो समझ लें कि यह एक बीमारी के लक्षण हैं जिसकी चिकित्सा होनी चाहिए। इसी प्रकार अपने परिवार या मित्रों के साथ कोई ऐसी बात का अनुभव करें कि कुछ तो है जो सामान्य नहीं है तो उसका निदान कराना ज़रूरी है। ऐसे व्यक्ति को उसके हाल पर छोड़ने के बजाय उसकी मदद करनी आवश्यक है ताकि वह अपनी कल्पनाओं से बाहर निकल कर वास्तविकता को समझ सके।
आधुनिक युग में मानसिक समस्याओं से उबरने के लिए अनेक चिकित्सा पद्धतियां हैं जो मनोरोगों से राहत दिला सकती हैं। उन्हें नहीं अपनाने से बीमारी को बढ़ावा मिलता है। उसमें यौगिक क्रिया, मन को केंद्रित करने के लिए ध्यान लगाना और अनेक प्रकार के व्यायाम आते हैं जो विशेषज्ञ की निगरानी में होने चाहिए। टेक्नोलॉजी के युग में और जब रोबोट तथा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का दौर हो तो शारीरिक स्वास्थ्य ही नहीं, मन का स्वस्थ रहना भी आवश्यक है।