कांग्रेस-‘आप’ समझौता : कहीं एक साथ, कहीं खिलाफ

देश में लोकसभा चुनावों की तैयारी को लेकर विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ के तहत कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ‘आप’ के बीच गठबन्धन हो चुका है। देश के अन्य हिस्सों जैसे दिल्ली, हरियाणा, गुजरात और गोवा में दोनों दल मिल कर चुनाव लड़ेंगे जबकि पंजाब में एक-दूसरे के खिलाफ। इससे कुछ अजीब-सी स्थिति पैदा हो गई है। देश में नई तरह की राजनीति का वायदा करके आए अरविंद केजरीवाल ने वास्तव में कुछ नया कर दिखाया है। हालांकि इस तरह के बेमेल गठजोड़ अतीत में भी कुछ स्थानों पर होते रहे हैं परन्तु राष्ट्रीय स्तर पर पहली बार यह चर्चा का विषय बना हुआ है। कांग्रेस के भ्रष्टाचार के खिलाफ चले अन्ना हजारे आन्दोलन से ऊपजी आम आदमी पार्टी अब उस विचारधारा के विपरीत चलती दिखाई दे रही है।
यह बड़ी दिलचस्व स्थिति होगी कि चुनावों में प्रचार के दौरान पंजाब में कांग्रेस जहां भगवंत मान के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी की सरकार को कोसेगी और अरविंद केजरीवाल पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों को उछालेगी, वहीं दोनों दल दूसरे राज्यों में एक-दूसरे की पीठ खुजाएंगे। केंद्र में अगर सत्ता परिवर्तन होता है तो यहां के सांसद चाहे वह कांग्रेस के हों या ‘आप’ के, एक साथ सरकार में बैठेंगे और भाजपा सरकार बनी रहती है तो विपक्ष में गलबहियां डाले दिखेंगे, यानि ‘हमीं से मुहब्बत, हमीं से लड़ाई’ वाली बात होगी। पंजाब में इस रिश्ते को फिक्स मैच या नूरा कुश्ती का नाम दिया जाने लगा है। गत एक मार्च को पंजाब विधानसभा में शुरू हुए बजट सत्र के दौरान पंजाब में शंभू सीमा पर चल रहे किसान आन्दोलन के दौरान हरियाणा पुलिस की कर्रावाई को लेकर कांग्रेस ने  ‘आप’ की सरकार को घेरा तो सत्तापक्ष ने कांग्रेस पर पलटवार किया। भाजपा ने इसे फिक्स मैच बता कर उपहास किया है और कहा है कि दोनों भीतर से मिले हुए हैं। 
देश में जिस तरह का राजनीतिक माहौल बना हुआ है और भाजपा की विजय की अभी से भविष्यवाणी करने वालों की संख्या बढ़ रही है, शायद उसी के भय से आम आदमी पार्टी व कांग्रेस ने मिल कर भानुमति का कुनबा जुटाया है। देश के इतिहास में यह दूसरा चुनाव है जब भ्रष्टाचार को लेकर सरकार हावी है और विपक्षी दल रक्षात्मक मुद्रा में हैं। कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं पर तो काफी समय से इस तरह के केस चले आ रहे हैं। उधर स्वयं को कट्टर ईमानदार बताने वाले अरविंद केजरीवाल व ‘आप’ के कई बड़े नेताओं पर भी दिल्ली आबकारी घोटाले के छींटे पड़े हैं जो उन्हें बेचैन किए हुए हैं। आम आदमी पार्टी के कई नेता जेल में कैद हैं और यहां तक कि उन्हें इन केसों में सर्वोच्च न्यायालय से ज़मानत तक नहीं मिल पा रही। ये वही केजरीवाल हैं जो सोनिया गांधी को मंच पर खड़े हो कर भ्रष्टाचारी बताते थे और दिल्ली की पूर्व कांग्रेसी मुख्यमंत्री दिवंगत शीला दीक्षित के कथित भ्रष्टाचार के सबूतों का पुलिंदा होने का दावा करते थे। दिल्ली विधानसभा चुनावों में उन्होंने दावा किया था कि सत्ता में आते ही इन सबको जेल की हवा खिलाई जाएगी परन्तु आज वही केजरीवाल कांग्रेस को परम मित्र बताते नहीं अघाते।
पंजाब में भी भगवंत मान की सरकार ने आते ही कथित भ्रष्टाचार उन्मूलन अभियान चला कर एक दर्जन के करीब पूर्व कांग्रेसी मंत्रियों व विधायकों के यहां सतर्कता विभाग की छापामारी करवाई और कईयों को जेल में भेजा परन्तु वर्तमान में न जाने किस कारण से उनका यह अभियान केवल पटवारियों-क्लर्कों तक सीमित हो कर रह गया। बड़े नेताओं के केस लम्बी तारीख पर डाल दिए गए हैं। पंजाब के बड़े कांग्रेसियों के भ्रष्टाचार पर न केवल भगवंत मान बल्कि उनके मंत्रियों व नेताओं तक ने बोलना कम कर दिया। 
जैसे कि बताया जा चुका है कि विरोधी दलों से गठजोड़ होना कोई नई बात नहीं है, परन्तु किसी दो दलों में एक स्थान पर तो गठबंधन हो और दूसरी जगह पर एक-दूसरे से भिड़ते दिखें तो अतीत में ऐसा राजनीतिक उदाहरण दुर्लभ ही है। कहने को दोनों दल दावा करते हैं कि वे देश में लोकतंत्र व संविधान बचाने के लिए एक-दूसरे के साथ आए हैं। अगर ऐसा है तो इस मामले में पंजाब को क्यों वंचित कर दिया? अब आम आदमी पार्टी व कांग्रेस दोनों से पूछा जानी चाहिए कि इस रिश्ते को क्या नाम दिया जाए? (युवराज)