‘इंडिया’ के लिए खतरे की घंटी

पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की नेता ममता बनर्जी ने अब मई माह में होने वाले लोकसभा चुनाव में प्रदेश की सभी 42 सीटों पर ही चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है। इससे ‘इंडिया’ गठबंधन को एक बार फिर ऐसा धक्का लगा है, जिससे संभल पाना उसके लिए मुश्किल होगा। दूसरे शब्दों में कभी इकट्ठी हुई 28 पार्टियों का शीराज़ा बिखर रहा है। इससे पहले बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार द्वारा भारतीय जनता पार्टी के साथ मिलने के ऐलान ने भी इस गठबंधन को ऐसा ही धक्का लगाया था। केरल में मार्क्सी पार्टी के नेतृत्व वाली सत्ता है। उसने वहां कांग्रेस के साथ सीटों के लेन-देन संबंधी स्पष्ट इन्कार कर दिया है। उत्तर प्रदेश में भी चाहे कांग्रेस की समाजवादी पार्टी के साथ सीटों के विभाजन के बारे में बातचीत चल रही है, लेकिन जिस प्रकार इन दोनों पार्टियों के नेताओं का एक-दूसरे के साथ तकरार चलता रहा है, उसके कारण इस संबंधी अभी भी अनिश्चितता बनी हुई है।
पंजाब के कांग्रेस नेताओं ने आम आदमी पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ने से स्पष्ट इन्कार कर दिया है। चाहे केन्द्र में कांग्रेस हाई कमान यह चाहती थी कि प्रदेश में इन दोनों पार्टियों का आपसी गठबंधन हो जाए परन्तु प्रदेश में जिस प्रकार का माहौल मुख्यमंत्री भगवंत मान ने बना दिया है, उस हालत में कांग्रेसी नेता उसके निकट तक आने के लिए भी तैयार नहीं हैं। हरियाणा में भी इन पार्टियों के आपस में मिलकर चुनाव लड़ने के आसार बेहद धुंधले हैं। यहां तक कि झारखंड जैसे राज्य में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सी.पी.आई.) ने ‘इंडिया’ गठबंधन से अलग होने का ऐलान कर दिया है और कहा है कि वह प्रदेश की 14 लोकसभा सीटों पर अकेले चनाव लड़ेगी। उसने यह भी कहा कि जहां भाजपा ने अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है, वहीं कांग्रेस तथा महागठबंधन ने अभी तक सीटों के बटवारे संबंधी कोई बातचीत नहीं की। इसलिए उन्होंने अकेले ही चुनाव लड़ने का फैसला कर लिया है। एक ओर देश में मोदी की लहर चलती महसूस हो रही है, दूसरी ओर गठबंधन की पार्टियां लगातार बिखरती जा रही हैं। जब ये पार्टियां एकजुट हुई थीं, उस समय चाहिए तो यह था कि वे धरातल पर तुरंत ही बातचीत करके सीटों के आपसी बटवारे बारे फैसला कर लेतीं और इस प्रकार अपनी-अपनी राह पर न चलतीं। इन पार्टियों को किसी न्यूनतम साझे कार्यक्रम संबंधी भी फैसला करके उसे जारी करना चाहिए था, परन्तु न तो समय पर सीटों का ही विभाजन हो सका और न ही कोई साझा कार्यक्रम ही सामने आया। इस प्रकार प्रत्येक पार्टी ने अपनी-अपनी डफली बजाना शुरू कर दी है। 
ऐसे नाज़ुक राजनीतिक मोड़ पर पहुंच कर राहुल गांधी द्वारा भारत की यात्रा पर निकलने ने पहले ही हुए बिखराव को और भी बढ़ा दिया है। गठबंधन की बहुत-सी पार्टियों ने किसी न किसी प्रकार इसलिए इस यात्रा में शामिल होने से इन्कार कर दिया, क्योंकि इसका संयुक्त रूप में कार्यक्रम नहीं बनाया गया, अपितु यह एक पार्टी द्वारा दूसरी पार्टियों को विश्वास में लिये बिना शुरू कर दी गई थी। इस मामले को लेकर ही अन्य पार्टियों ने कांग्रेस के खिलाफ अपने बयान देने शुरू कर दिये थे। दूसरी ओर भाजपा ने यह नीति धारण कर ली है कि पहले जो पार्टियां राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) छोड़ गई थीं, वे पुन: इसमें शामिल हो जाएं। उसके ये यत्न बड़ी सीमा तक सफल होते भी दिखाई दे रहे हैं। अब तो ऐसा महसूस होने लगा है कि ‘इंडिया’ गठबंधन की पार्टियों का सम्भल सकना कठिन ही है। उत्पन्न हुए ऐसे हालात ‘इंडिया’ गठबंधन के लिए ऐसी खतरे की घंटी है, जिसे अनसुना करके ये पार्टियां घाटे का सौदा ही कर रही होंगी।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द