भाजपा ने अलग हुए सहयोगी दलों के लिए खोले द्वार

ठीक 13 महीने पहले10 फरवरी, 2023 को नरेंद्र मोदी ने राज्यसभा में  दावा किया था, ‘एक अकेला सब पर भारी।’ उन्होंने यहां तक कहा था कि ‘एक व्यक्ति कई लोगों के लिए बहुत ज्यादा साबित हो रहा है।’ उन्हें अपनी क्षमता, निपुणता और राजनीतिक शक्ति पर इतना भरोसा है कि उन्हें आम लोगों को ‘मोदी की गारंटी’ की पेशकश करते हुए सुना गया है।
अपने दस साल के शासन के दौरान उन्होंने अपने सहयोगियों को वस्तुत: अप्रासंगिक बना दिया और उन्हें राजनीतिक दायरे से बाहर कर दिया। अब भाजपा को विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ की चुनौती से लड़ने के लिए अपने पूर्व सहयोगियों से वापस आने, उनके साथ शामिल होने का निमंक्षण दिया जा रहा है।
यह एक खुला रहस्य है कि 2014 का आम चुनाव जीतने के बाद उन्होंने तेलुगु देशम पार्टी और शिरोमणि अकाली दल को किनारे कर दिया था, जो कभी दोनों भाजपा के सबसे मज़बूत सहयोगी थे। यहां तक कि उन्होंने ओडिशा के नवीन पटनायक के नेतृत्व वाले बीजेडी को भी नज़रअंदाज़ कर दिया था। मोदी ने एक स्पष्ट संदेश दिया कि उन्हें ऐसे सहयोगियों की परवाह नहीं है और वह अकेले अपने दम पर चुनाव जीतने में सक्षम हैं, चाहे राज्य में हों या केंद्र में।
अकाली दल ने कृषि संबंधी तीन विवादास्पद कानूनों को लेकर भाजपा से नाता तोड़ लिया था। उधर 2014 के आंध्र प्रदेश के विभाजन के बाद राज्य से किये गये वादों को पूरा करने में केंद्र की विफलता के विरोध में तेलुगु देशम ने 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले वॉकआउट कर दिया था। नवीन पटनायक भाजपा के प्रति दोहरा रवैया अपनाये हुए थे। चंद्रबाबूनायडू और उनके सहयोगी जन सेना पार्टी के प्रमुख पवन कल्याण पहले ही भाजपा नेतृत्व के साथ सीट बंटवारे पर बातचीत शुरू कर चुके हैं। दरअसल नायडू के साथ कई दौर की चर्चा हो चुकी है। मोदी बादलों की आहत भावनाओं को मनाने में भी सफल रहे हैं। उनके साथ सीटों पर बातचीत भी चल रही है।
मोदी विपक्ष के प्रति इतने तिरस्कृत भाव से परिपूर्ण थे कि उन्होंने कांग्रेस की चुनौती को कभी गंभीरता से नहीं लिया। उन्होंने सोचा कि राहुल गांधी और गांधी परिवार के खिलाफ उनके कटाक्ष कांग्रेस को निरर्थक बना देंगे। उन्होंने ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ बनाने के लिए अपना अभियान भी चलाया।
जरा सोचिएए जिस पार्टी (कांग्रेस) को प्रधानमंत्री मोदी ने महज दस साल में देश के राजनीतिक पटल से लगभग गायब कर दिया था, वह आक्रामक अंदाज़ में उभरने लगी है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि जमीनी स्तर पर लोग राहुल गांधी के आह्वान और कदमों पर अनुकूल प्रतिक्रिया दे रहे प्रतीत होते हैं, जिन्हें सही मायनों में अभी एक विकल्प के रूप में उभरना बाकी है। सबसे दिलचस्प बात यह है कि कांग्रेस के पास राहुल अलावा कोई दूसरा चेहरा नहीं है जो मोदी के नेतृत्व में भगवा दिग्गजों की एक श्रृंखला का मुकाबला कर सके। अपनी ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ के दौरान राहुल भारतीय संविधान के मूल मूल्यों और उसकी रक्षा कैसे की जाये, की बात कर रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी का अपने ही पूर्वानुमानों और अनुमानों पर से भरोसा उठना भाजपा के एक वरिष्ठ नेता की टिप्पणी से झलकता है कि हम उन सभी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन  (राजग) के सहयोगियों को वापस लाने की कोशिश कर रहे हैं जिन्होंने हमें छोड़ दिया था। सत्ता में बने रहने के लिए यह ज़रूरी है कि हमें कम से कम मौजूदा सदन में मौजूद सीटें तो मिलें। मोदी का ध्यान राजग के 400 का आंकड़ा पार करने पर है, जाहिर तौर पर इसे हासिल करने के लिए हमें अपने पुराने सहयोगियों को साथ लेना होगा।’  प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा नेतृत्व का मुख्य ध्यान दक्षिणी राज्यों पर केन्द्रित प्रतीत हो रहा है। पूर्व और उत्तर भारत के राज्य पहले से ही संतृप्ति स्तर पर पहुंचने के साथ पार्टी दक्षिणी राज्यों में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने की उम्मीद कर सकती है। इसे पाने के लिए ज़रूरी है कि उसके पास ओडिशा, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में सीटों का बड़ा हिस्सा हो। भाजपा विधानसभा चुनाव में क्षेत्रीय दलों के लिए जगह खाली रखने के फार्मूले पर काम कर रही है।
बिहार में भाजपा को बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। चिराग पासवान और जीतन राम मांझी को अपनी पेशकश पर सहमत कराना मुश्किल हो रहा है। जद (यू) 2019 में जीती गयी अपनी16 सीटों में से कुछ सीटों पर दावा छोड़ने के भाजपा नेताओं के सुझाव से भी सहमत नहीं है। इलाज के लिए नितीश के ब्रिटेन जाने से भाजपा नेतृत्व को उम्मीद है उनकी वापसी के बाद जद (यू) भाजपा के दबाव के आगे झुक जायेगा। (संवाद)