आत्म-निर्भर भारत मिशन को आगे बढ़ाता डी.आर.डी.ओ.

पिछले काफी समय से भारत अपने पुराने हथियारों को बदलकर नई-नई तकनीकों से सेना के तीनों अंगों को आधुनिक बनाने के प्रयासों में जुटा है। रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डी.आर.डी.ओ.) द्वारा निर्मित रक्षा प्रणालियां भी इस दिशा में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। अत्याधुनिक और महत्वपूर्ण रक्षा प्रौद्योगिकियों एवं प्रणालियों में आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए भारत को सशक्त बनाने के दृढ़संकल्प के साथ जी-जान से जुटा रक्षा मंत्रालय का आरएंडडी विंग ‘डिफेंस रिसर्च एंड डवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन’ (डी.आर.डी.ओ.) सफलता की निरंतर नई कहानियां लिख रहा है। सेना के तीनों अंगों की जरूरतों के अनुसार हथियार प्रणाली और उपकरण बनाते हुए भारत को रक्षा मामलों में आत्मनिर्भर बनाने में अग्रणी भूमिका निभा रहा डी.आर.डी.ओ. तेजी से अपनी स्वदेशी मिसाइल तकनीक विकसित कर रहा है और इन स्वदेशी तकनीकों की विशेषताओं के चलते ही विदेशी ग्राहक भी अब डी.आर.डी.ओ. द्वारा निर्मित मिसाइलों में रूचि दिखाने लगे हैं। अग्नि और पृथ्वी श्रृंखला की अत्याधुनिक मिसाइलों के अलावा ब्रह्मोस जैसी सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल हो या फिर अत्याधुनिक लड़ाकू विमान तेजस, हल्के लड़ाकू विमान, मल्टी बैरल रॉकेट लांचर, वायु रक्षा प्रणाली, रडार, इलैक्ट्रॉनिक युद्ध प्रणाली की एक विस्तृत श्रृंखला, रणनीतिक प्रणालियों और प्लेटफॉर्मों का सफल स्वदेशी विकास और उत्पादन, डीआरडीओ ने अपनी स्वदेशी तकनीकों से भारत को समृद्ध करते हुए पूरी दुनिया के समक्ष स्वदेशी ताकत का लोहा मनवाया है।
सीमाओं पर बड़े हालिया तनाव और बढ़ती सुरक्षा चुनौतियों के मद्देनज़र भारतीय सेना द्वारा अब एडवांस एयर डिफेंस सिस्टम को प्राथमिकता दी जा रही है। दरअसल आज दुनियाभर के तमाम देशों के लिए अपनी हवाई सुरक्षा बेहद महत्वपूर्ण हो गई है और इसीलिए सभी देश अपनी-अपनी ज़रूरतों के हिसाब से एयर डिफेंस सिस्टम का इस्तेमाल कर रहे हैं। हवाई सुरक्षा को लेकर अब ड्रोन से उत्पन्न होने वाले खतरे भी निरंतर बड़ रहे हैं, ऐसे में एयर डिफेंस सिस्टम किसी भी देश की सुरक्षा में बहुत अहम भूमिका अदा करते हैं, जिन्हें दुश्मनों के विमानों, मिसाइलों, ड्रोन और दूसरे हवाई खतरों को रोकने तथा बेअसर करने के लिए डिजाइन किया जाता है। एयर डिफेंस सिस्टम कई प्रकार के हवाई खतरों से सुरक्षा मुहैया कराते हैं, जिनकी कई युद्धों में भी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। हाल ही में डी.आर.डी.ओ. ने भी रूसी एस-400 एयर डिफेंस सिस्टम जैसे ही स्वनिर्मित ‘वेरी शॉर्ट-रेंज एयर डिफेंस सिस्टम’ (वी.एस.एच.ओ.आर.ए.डी.एस.) का सफल परीक्षण किया है, जो एक कम दूरी वाला एयर डिफेंस सिस्टम है और अपने छोटे आकार के कारण बड़ी आसानी से सामने से आने वाले किसी भी टारगेट को रोक सकता है तथा हवाई खतरों का मुकाबला कर उसे नष्ट कर सकता है। यह तेज़ गति से आने वाले ड्रोन, फाइटर जेट, हेलीकॉप्टर अथवा मिसाइल को मार सकता है और इसकी सबसे बड़ी विशेषता यही है कि इसे कहीं भी तैनात किया जा सकता है। डी.आर.डी.ओ. ने उड़ीसा के समुद्र तट पर इंटीग्रेटेड टेस्ट रेंज (आई.टी.आर.) चांदीपुर में लगातार दो दिनों तक बहुत कम दूरी की इस हवाई रक्षा प्रणाली का सफल परीक्षण किया। रक्षा मंत्रालय के मुताबिक वी.एस.एच.ओ.आर.ए.डी.एस. मिसाइलों ने न केवल अच्छी तरह टारगेट को रोका बल्कि उन्हें नष्ट भी कर दिया। इससे पहले सितम्बर 2022 और मार्च 2023 में भी इसके परीक्षण किए जा चुके हैं।
रक्षा विशेषज्ञों के मुताबिक ‘वी.एस.एच.ओ.आर.ए.डी.एस.’ एयर डिफेंस सिस्टम को रूस के एस-400 की तरह ही माना जा रहा है। एस-400 की बात करें तो यह रूस द्वारा विकसित की गई अत्याधुनिक, लम्बी दूरी की सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल प्रणाली है। रूस के एलमाज सेंट्रल डिजाइन ब्यूरो द्वारा बनाए गए एस-400 एयर डिफेंस सिस्टम को दुनिया के बेहद आधुनिक एयर डिफेंस सिस्टम में से एक माना जाता है, जो दुश्मन देशों की बैलेस्टिक और क्रूज मिसाइल, ड्रोन, रॉकेट लांचर, फाइटर जेट्स, अवाक्स तकनीक से लैस विमान इत्यादि हवा के जरिये हो रहे किसी भी हमले को रोकने में कारगर है। यह एयर डिफेंस सिस्टम 400 किलोमीटर तक दुश्मन की मिसाइलों को नष्ट करने की क्षमता रखता है और एक साथ 36 टारगेट को ध्वस्त कर सकता है। मल्टीफंक्शन रडार से लैस दुश्मन की बर्बादी का ब्रह्मास्त्र मानी जाने वाली एस-400 रूसी सेना में 2007 में सम्मिलित हुई थी। यह ऐसी प्रणाली है, जिसके रडार में आने के बाद दुश्मन का बच पाना असंभव हो जाता है। रक्षा विशेषज्ञ इसे जमीन पर तैनात ऐसी आर्मी भी कहते हैं, जो पलक झपकते ही सैकड़ों फीट ऊपर आसमान में ही दुश्मनों की कब्र बना सकती है। एस-400 मिसाइल प्रणाली पहले अपने टारगेट को स्पॉट कर उसे पहचानती है, उसके बाद मिसाइल सिस्टम उसे मॉनीटर करना शुरू कर देता है और उसकी लोकेशन ट्रैक करता है। रक्षा विशेषज्ञों के मुताबिक इस मिसाइल प्रणाली को अगर आसमान में फुटबॉल के आकार की भी कोई चीज मंडराती हुई दिखाई दे तो यह उसे भी डिटेक्ट कर नष्ट कर सकती है। भारतीय वायुसेना में इस एयर डिफेंस मिसाइल सिस्टम के शामिल होने के बाद भारत अब जमीन की लड़ाई भी आसमान से ही लड़ने में सक्षम हो चुका है।
जहां तक डी.आर.डी.ओ. द्वारा विकसित वी.एस.एच.ओ.आर.ए.डी.एस. की बात है तो डी.आर.डी.ओ. द्वारा इसे कम ऊंचाई पर हवाई खतरों से निपटने के लिए बनाया गया है। इस पोर्टेबल एयर डिफेंस सिस्टम को डी.आर.डी.ओ. के रिसर्च सेंटर इमारत (आरसीआई) हैदराबाद ने दूसरी डी.आर.डी.ओ. लैब के सहयोग से स्वदेशी रूप से डिजाइन और विकसित किया है। भारतीय सेनाएं इसका इस्तेमाल एंटी-एयरक्राफ्ट वॉरफेयर में कर सकती हैं। एयर डिफेंस सिस्टम के हिसाब से वी.एस.एच.ओ.आर.ए.डी.एस. मिसाइल की स्पीड बेहतरीन है, जिससे दुश्मन के यान, विमान, हेलीकॉप्टर और ड्रोन को भागने अथवा बचने का अवसर ही नहीं मिलेगा। ऐसे में माना जा रहा है कि वी.एस.एच.ओ.आर.ए.डी.एस. मिसाइल के रूप में भारतीय सेना को हवाई खतरों का मुकाबला करने के लिए एक शक्तिशाली रक्षा प्रौद्योगिकी मिल जाएगी और भारत की रक्षा आत्मनिर्भरता और मजबूत होगी। दरअसल वी.एस.एच.ओ.आर.ए.डी.एस. मिसाइलों के स्वदेशी उत्पादन से विदेशी हथियारों पर भारत की निर्भरता कम होगी और रक्षा प्रौद्योगिकी में भारत की आत्मनिर्भरता मजबूत होगी। डी.आर.डी.ओ. द्वारा लाइट कॉम्बैट हेलीकॉप्टर (एल.सी.एच.) तथा रूद्र जैसे हेलीकॉप्टरों में वी.एस.एच.ओ.आर.ए.डी.एस. मिसाइलों का इस्तेमाल किया जाता है और डी.आर.डी.ओ. के मुताबिक आने वाले समय में वी.एस.एच.ओ.आर.ए.डी.एस. के और वेरिएंट भी बनाए जाएंगे।
आधुनिक तकनीक से लैस वी.एस.एच.ओ.आर.ए.डी.एस. काफी सटीक और प्रभावी है, साथ ही बड़ी तेज़ी से उड़ान भर सकता है। वी.एस.एच.ओ.आर.ए.डी.एस. का वजन 20.5 किलोग्राम, लम्बाई करीब 6.7 फीट और व्यास 3.5 इंच है, जो अपने साथ 2 किलोग्राम वजन का हथियार ले जा सकता है। इसकी रेंज 250 मीटर से 6 किलोमीटर तक है और यह अधिकतम 11500 फीट तक जा सकता है। इसकी अधिकतम गति 1.5 मैक (1800 किलोमीटर प्रतिघंटा) है। वी.एस.एच.ओ.आर.ए.डी.एस. मिसाइल में ड्यूल बैंड आईआईआर सीकर, मिनिएचर रिएक्शन कंट्रोल सिस्टम, इंटीग्रेटेड एवियोनिक्स जैसी कई प्रकार की नई आधुनिक तकनीकें शामिल की गई हैं। इसका प्रोपल्शन सिस्टम ड्यूल थ्रस्ट सॉलिड मोटर है, जो इसे बहुत तेज गति प्रदान करता है। वी.एस.एच.ओ.आर.ए.डी.एस. सही मायनों में रूस के एस-400 एयर डिफेंस सिस्टम की ही भांति एक कम दूरी की इंटरसेप्टर मिसाइल है और इस हवाई सुरक्षा प्रणाली को पूर्ण रूप से देश में ही विकसित किया गया है। इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि कोई भी बड़े आराम से इसे किसी भी जगह ले जाकर दाग सकता है, फिर चाहे वह चीन की सीमा से सटे हिमालय के पहाड़ हों या फिर पाकिस्तान से सटी रेगिस्तानी सीमा। वी.एस.एच.ओ.आर.ए.डी.एस. को केवल एक व्यक्ति भी ले जा और चला सकता है तथा यह कम ऊंचाई पर कम दूरी के हवाई खतरों से बखूबी निपट सकती है।

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