सहमति बना कर संभव है ‘एक देश, एक चुनाव’

‘एक देश, एक चुनाव’ से संबंधित पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के नेतृत्व वाले उच्च स्तरीय समिति ने अपनी 18,000 से अधिक पृष्ठों वाली रिपोर्ट 14 मार्च, 2024 को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंपी, जिसमें से केवल 321 पृष्ठों को ही सार्वजनिक किया गया है। समिति को सरकार के प्रत्येक स्तर के चुनाव एक साथ कराने की संभावना तलाशने की ज़िम्मेदारी दी गई थी, जिस पर उसने कहा है कि इस व्यवस्था को साल 2029 तक अपनाया जा सकता है। लोकसभा व विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने में कोई खास चुनौती सामने नहीं आने जा रही है, क्योंकि उचित संवैधानिक संशोधन को राज्य विधानसभाओं से अनुमोदन की आवश्वयकता नहीं होगी। लेकिन स्थानीय निकाय चुनावों व मतदाता सूचियों को भी साथ मिलाने में कम से कम आधी विधानसभाओं की अनुमति ज़रूरी होगी। समिति ने 3-टियर साथ चुनाव कराने की सिफारिश करते हुए कहा है कि लोकसभा व विधानसभाओं के चुनाव साथ कराने के 100 दिन के भीतर स्थानीय निकायों के चुनाव करवाये जा सकते हैं। 
विपक्ष की अधिकतर पार्टियों ने इस रिपोर्ट का विरोध किया है और कहा है कि ‘एक देश, एक चुनाव’ का उद्देष्य संविधान को पूरी तरह से खत्म कर देना है। उनके अनुसार, यह प्रस्ताव ‘बुनियादी चुनावी सिद्धांतों’ और भारतीय संविधान के संघीय ढांचे के विरुद्ध है। शिव सेना(यू) के नेता उद्धव ठाकरे ने कहा है कि यह प्रस्ताव ‘तानाशाही की ओर उठाया गया कदम है। कांग्रेस, तृणमूल, ‘आप’ और माकपा ने भी इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया है। बसपा ने खुलकर तो प्रस्ताव का विरोध नहीं किया है, लेकिन कुछ चिंताएं अवश्य व्यक्त की हैं। उसके अनुसार इस योजना को लागू करना चुनौतीपूर्ण बना देगा। सपा का कहना है कि अगर एक साथ चुनाव करवाये गये तो राज्य-स्तर की पार्टियां चुनावी योजना व खर्च में राष्ट्रीय पार्टियों का मुकाबला नहीं कर पायेंगी, जिससे दोनों प्रकार की पार्टियों में मतभेद बढ़ जायेंगे। एआईएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने ट्वीट किया है, ‘नियमित अंतराल पर चुनाव सरकारों को ज़िम्मेदार बनाये रखते हैं। ‘एक देश, एक चुनाव’ में अनेक संवैधानिक मुद्दे हैं, लेकिन सबसे ख़राब यह है कि सरकारों को पांच साल तक जनता के गुस्से की चिंता नहीं करनी पड़ेगी। यह भारत को एक-दलीय राज्य में बदल देगा।’
बहरहाल, इस विषय पर विधि आयोग भी जल्द अपनी रिपोर्ट देगा। हालांकि विधि आयोग अपनी पिछली रिपोर्टों में एक साथ चुनाव कराने के पक्ष में नहीं रहा है, जो उसके नज़दीक अव्यवहारिक व गैर-ज़रूरी हैं, लेकिन अब सूत्रों का कहना है कि वह सरकार के तीनों टियर—लोकसभा, राज्य विधानसभाओं व स्थानीय निकायों जैसे नगर पालिकाओं व पंचायतों के चुनाव 2029 से साथ कराने की सिफारिश करेगा और यह भी कि अगर त्रिशंकु सदन आता है या अविश्वास प्रस्ताव पारित हो जाता है तो साझी सरकार का प्रावधान हो। कोविंद समिति ने साथ चुनाव करवाने की कोई समय अवधि नहीं दी है। लोकसभा व विधानसभाओं के चुनाव साथ कराने के संदर्भ में समिति ने सुझाव दिया है कि आम चुनाव के बाद जब लोकसभा की पहली बैठक हो तो राष्ट्रपति उसे ‘नियुक्त तिथि’ के तौर पर नोटिफाई करें और इस तिथि के बाद जो राज्य विधानसभाओं का गठन हो, वह लोकसभा के पूर्ण कार्यकाल पर केवल इस तिथि तक के लिए ही हो।
समिति ने एक साथ चुनाव कराने के जो तर्क दिए हैं, उन्हें संक्षेप में दोहराना ज़रूरी है। एक लोकसभा चुनाव में कम से कम 7 मिलियन चुनाव कर्मचारियों को चुनावी ड्यूटी में शामिल होना पड़ता है। स्कूल पोलिंग बूथ के तौर पर प्रयोग किये जाते हैं और बड़ी संख्या में अर्द्धसैनिक बलों को तैनात करना पड़ता है। छोटे स्केल पर यही प्रक्रिया विधानसभा चुनावों के लिए दोहरानी पड़ती है। एक साथ चुनाव कराने से संसाधनों का अधिक प्रभावी उपयोग किया जा सकेगा।  अगर राज्य सरकार अपना 5 वर्ष का कार्यकाल पूर्ण करने से पहले गिर जाती है तो समिति ने दो सुझाव दिए हैं। एक, बिना ताज़ा चुनाव कराये नई सरकार गठित कर दी जाये, जिसका कार्यकाल ‘एक देश, एक चुनाव’ के अगले चक्र तक हो। दूसरा यह कि कोई सरकार न बनायी जाये। इसका अर्थ होगा ताज़ा चुनाव या केंद्र का शासन। रिपोर्ट में कहा गया है कि इनमें से क्या होना चाहिए, यह चुनाव आयोग को तय करना है, लेकिन हर सूरत में चुनाव एक साथ ही होंगे। सबसे बड़ी समस्या यह है कि एक साथ चुनाव कराने के मुद्दे पर सभी राजनीतिक दल एक मत नहीं हैं। समिति को लगभग 47 राजनीतिक पार्टियों ने अपनी राय दी थी। इनमें से 15 ने एक साथ चुनाव कराये जाने के विचार का विरोध किया है। समिति का कहना है कि ऐसा बिना राज्यों की सहमति से किया जा सकता है। 
इस समस्या का समाधान तभी मुमकिन है जब सरकार अगला कदम उठाने से पहले सभी राजनीतिक स्टेकहोल्डर्स का समर्थन व साथ प्राप्त करने का प्रयास करे।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर