तृणमूल कांग्रेस के बाद क्या अन्यों को भी मिलेगी ई.डी. से राहत ?

पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के सांसद और पार्टी के महासचिव अभिषेक बनर्जी को सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी राहत दी है। सर्वोच्च अदालत ने प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी से कहा है कि वह लोकसभा चुनाव के बीच अभिषेक बनर्जी और उनकी पत्नी रूजिरा बनर्जी को समन नहीं जारी करे। अभिषेक बनर्जी तृणमूल कांग्रेस के महत्वपूर्ण नेता हैं और ममता बनर्जी के भतीजे हैं। इस नाते उन्हें अपने साथ-साथ पार्टी के दूसरे नेताओं का भी चुनाव प्रचार संभालना है। सो, सुप्रीम कोर्ट की ओर से मिली राहत बहुत बड़ी है। कोयले और मवेशी की तस्करी से लेकर शिक्षक भर्ती व राशन घोटाले में पार्टी के कई नेता गिरफ्तार हुए हैं। उनसे पूछताछ के आधार ईडी अभिषेक बनर्जी को घेर रही थी, लेकिन अब चुनाव तक उनको राहत मिल गई है। सवाल है कि क्या इस तरह की राहत दूसरे नेताओं को मिल सकती है?
 आमतौर पर सुप्रीम कोर्ट का आदेश समान रूप से सब पर लागू होता है, लेकिन यहां हो सकता है कि हर नेता को निजी तौर पर ऐसी राहत के लिए सुप्रीम कोर्ट जाना पड़े। यह भी संभव है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश की नजीर बना कर नेता हाईकोर्ट से राहत हासिल कर लें। इस समय दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी के कई नेता जेल में हैं। तृणमूल कांग्रेस नेता महुआ मोइत्रा को भी बार-बार समन जारी हो रहा है। इसके अलावा महाराष्ट्र, बिहार, झारखंड, तमिलनाडु, कर्नाटक, तेलंगाना आदि राज्यों में कई विपक्षी नेताओं केंद्रीय एजेंसियां कभी भी समन जारी करके बुला रही है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश से सबको राहत मिल सकती है।
चुनाव की तैयारियों में अनियमितताएं 
चुनाव आयोग को किसी भी राज्य में विधानसभा चुनाव की तैयारी करते हुए जिन पहलुओं का खासतौर पर ध्यान रखना होता है, उनमें विधानसभा के कार्यकाल से लेकर राज्य में आने वाले त्योहारों या स्कूल-कॉलेज और प्रतियोगी परीक्षाएं आदि मुख्य होते हैं, लेकिन पूरे देश में एक साथ चुनाव कराने का दम भरने वाला चुनाव आयोग पिछले कुछ सालों से चुनाव तैयारियों की समीक्षा करते वक्त इन पहलुओं का ध्यान नहीं रख रहा है। इसीलिए हर चुनाव में उससे कहीं न कहीं कोई ऐसी गलती हो रही है जिसे बाद में ठीक करना पड़ रहा है। 
अभी लोकसभा के साथ चार राज्यों के चुनाव की घोषणा में आयोग की बड़ी लापरवाही सामने आई है। आयोग ने इस पर ध्यान ही नहीं दिया कि अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम विधानसभा का कार्यकाल दो जून को खत्म हो रहा है। उसने इन दोनों राज्यों में भी वोटों की गिनती चार जून को तय कर दी। अगर विधानसभा का कार्यकाल दो जून को खत्म हो रहा है तो कायदे से उससे पहले चुनाव होकर नतीजे आ जाने चाहिए ताकि दो जून या उससे पहले नई विधानसभा का गठन हो जाए। यह बड़ी चूक है जिसे चुनाव की घोषणा के एक दिन बाद दुरुस्त किया गया। उसमें भी आयोग के पास ज्यादा गुंजाइश नहीं थी क्योंकि आखिरी चरण का मतदान एक जून को रखा गया है। इसलिए मजबूरी में इन दोनों राज्यों में दो जून को मतगणना रखी गई। अब उसी दिन नतीजों की घोषणा कर नई विधानसभा के गठन की अधिसूचना भी जारी करनी होगा।
चार जून और ‘चार सौ’ पार का नारा
पिछले लोकसभा चुनाव यानी 2019 में मतगणना 23 मई को हुई थी। उससे पहले यानी 2014 में 13 मई को मतगणना हुई थी। इस बार चुनाव आयोग ने मतगणना की तारीख और आगे बढ़ा कर चार जून कर दी। कायदे से इसे कम किया जाना चाहिए था ताकि अपेक्षाकृत कम गर्मी के समय चुनाव और मतगणना हो जाए। अभी चुनाव आयोग के मौजूदा कार्यक्रम के हिसाब से आधे से ज्यादा राज्यों में चुनाव प्रचार और मतदान के समय लू के थपेड़े चल रहे होंगे, लेकिन चुनाव आयोग ने इस पर ध्यान नहीं दिया। उसने 1952 में हुए पहले चुनाव के बाद सबसे लम्बा चुनावी कार्यक्रम बना दिया। बहरहाल, चार जून की तारीख तय करने का एक कारण चुनाव की घोषणा के बाद हुई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैली में दिखाई दिया। चुनाव की घोषणा के अगले दिन प्रधानमंत्री मोदी ने आंध्र प्रदेश में चुनावी रैली में कहा कि यह संयोग है कि इस बार चार जून को वोटों की गिनती होगी और पूरा देश कह रहा है ‘चार जून को चार सौ पार।’ सवाल है कि यह संयोग है या प्रयोग कि वोटों की गिनती चार जून रखी गई? गौरतलब है कि प्रधानमंत्री ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के लिए चार सौ पार का नारा काफी पहले दिया था। इस लिहाज से चार तारीख को वोटों की गिनती होने पर उसके साथ चार सौ पार का नारा जुड़ जाता है। चुनाव आयोग के बारे में यूं ही नहीं कहा जाता है कि वह चुनाव कार्यक्त्रम प्रधानमंत्री कार्यालय की सलाह से बनाता है। 
राज्यपाल का नया विवाद
तमिलनाडु के राज्यपाल आर.एन. रवि का राज्य की डीएमके सरकार के टकराव का सिलसिला खत्म ही नहीं हो रहा। लोकसभा चुनाव की घोषणा के बाद दोनों के बीच नया विवाद शुरू हो गया जो सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद ही खत्म हुआ। राज्यपाल रवि ने डीएमके विधायक के पोनमुडी को राज्य सरकार मे मंत्री पद की शपथ दिलाने से इन्कार कर दिया था। उनके खिलाफ आय से अधिक सम्पत्ति का मामला चल रहा था जिसमें पिछले साल यानी 2023 में हाईकोर्ट ने उन्हें दोषी ठहरा कर सज़ा सुना दी थी, जिसके बाद उन्हें उच्च शिक्षा मंत्री के पद से इस्तीफा देना पड़ा था। अब सुप्रीम कोर्ट ने उनकी सज़ा पर रोक लगा दी है। राज्य के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने उन्हें फिर से मंत्री बनाने का फैसला किया, लेकिन राज्यपाल रवि ने पोनमुडी को शपथ दिलाने से इन्कार कर दिया। राज्यपाल ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने पोनमुडी की सज़ा पर सिर्फ रोक लगाई है, उनकी सज़ा समाप्त नहीं की है, इसलिए उन्हें शपथ दिलाना संवैधानिक नैतिकता के खिलाफ होगा। सवाल है कि इसमें संवैधानिक नैतिकता कहां से आ गई? अगर कोई व्यक्ति विधायक रहने के योग्य है और विधायक है तो मुख्यमंत्री उसे मंत्री बना सकते है। राज्यपाल उसे रोक नहीं सकते हैं। इसी आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल रवि के रवैये पर चिंता जताते हुए उन्हें निर्देश दिया कि वह अदालत की अवमानना न करें और 24 घंटे के भीतर संवैधानिक प्रावधानों के मुताबिक कार्यवाही करें। 
370 सीटों की हवा बनाने के लिए    
इस बार का लोकसभा चुनाव कई मायने में बहुत दिलचस्प होने वाला है। चुनाव की घोषणा के तुरंत बाद तेलंगाना की राज्यपाल तमिलसाई सौंदर्यराजन ने इस्तीफा दे दिया। उनके पास पुड्डुचेरी के उप-राज्यपाल का प्रभार भी था। अब वे तमिलनाडु में भाजपा की ओर से चुनाव लड़ने जा रही हैं। इस तरह भाजपा ने तमिलनाडु में मजबूती से लड़ने का संदेश बनवाने के लिए एक राज्यपाल का इस्तीफा करा दिया है। इससे पहले यानी चुनाव की घोषणा से पहले कलकत्ता हाईकोर्ट के जज अभिजीत गंगोपाध्याय ने इस्तीफा दिया। इस्तीफा देने के दो दिन बाद ही वह भाजपा में शामिल हो गए। भाजपा उन्हें बंगाल की तामलुक सीट से चुनाव लड़ा सकती है। राजस्थान में भाजपा ने चुरू सीट पर पैरा ओलम्पिक के विजेता देवेंद्र झाझरिया को उतारा है तो भारतीय प्रशासनिक सेवा, विदेश सेवा और पुलिस सेवा के अनेक अधिकारी चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। पश्चिम बंगाल और पंजाब से कुछ नए अधिकारियों को चुनाव लड़ाया जा सकता है। कुल मिला कर भाजपा अपनी पार्टी के नेताओं के साथ-साथ दूसरी पार्टियों से आए नेताओं और गैर-राजनीतिक लोगों को भी चुनाव में उतार रही है ताकि मजबूती से लड़ने का संदेश बने और 370 सीटें जीतने के लक्ष्य की हवा बने।