विश्व-प्रसिद्ध है ब्रज की लट्ठमार होली

यूं तो सम्पूर्ण भारत में बड़े उत्साह, धूमधाम व समारोहपूर्वक होली का त्यौहार मनाया जाता है, परन्तु उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले के नंदगांव और बरसाना कस्बों में होली का यह त्योहार पृथक रूप से और अजीबोगरीब प्रकार से मनाया जाता है, जिसे लट्ठमार (लठामार) होली की संज्ञा से नवाज़ा गया है। लठमार का अर्थ है लाठी से मारना अथवा लाठी से मारने वाला। बरसाना की लट्ठमार होली सर्वाधिक प्रसिद्ध है। होली का प्रसंग छिड़ते ही मन में बरबस ब्रज का नाम आ जाता है। होली सप्ताह आरम्भ होते ही सबसे पहले ब्रज रंगों में डूब जाता है। लट्ठमार होली फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को बड़ी धूमधाम व हर्षोल्लासपूर्वक मनाई जाती है। इस विशेष अवसर पर कई मंदिरों की पूजा करने के बाद नंदगाँव के पुरुष बरसाना होली खेलने जाते हैं और बरसाना की महिलाएं नन्दगांव होली खेलने आती हैं। श्रीकृष्ण नंदगांव के थे और राधा बरसाने की थीं। राधा की जन्म स्थली बरसाना में यह होली शेष भारत में खेली जाने वाली होली से कुछ दिनों पहले ही शुरू हो जाती है। इस दिन महिलाओं के हाथ में लट्ठ रहता है, और नन्दगाँव के पुरुष अर्थात गोप राधा के मन्दिर लाडलीजी पर झंडा फहराने की कोशिश करते हुए महिलाओं के लट्ठ से बचने की कोशिश करते हैं। मान्यता है कि इस दिन सभी महिलाओं में राधा की आत्मा बसती है, और पुरुष भी हँस-हँस कर लाठियाँ खाते हैं। आपसी वार्तालाप के लिए श्रीकृष्ण और राधा के बीच वार्तालाप पर आधारित होरी गाई जाती है। यह होली उत्सव करीब सात दिनों तक चलता है। वृन्दावन की होली भी उल्लास भरी होली होती है, जहाँ बाँके बिहारी मंदिर की होली और गुलाल कुंद की होली बहुत महत्त्वपूर्ण है।
विश्व प्रसिद्ध ब्रज की लठमार होली के सम्बन्ध में पौराणिक व निबन्ध ग्रन्थों में अनेक कथाएं अंकित हैं। मान्यता है कि ब्रज में स्वयं भगवान ने होलिकोत्सव मनाया था। यही कारण है कि देश-विदेश से लोग ब्रज की गलियों में इस पृथक प्रकार की होली के दर्शन के लिए आते हैं।  मान्यता है कि ऐसा करके भगवान श्रीकृष्ण के द्वारा द्वापर युग में की जाने वाली लीलाओं की पुनरावृत्ति की जाती है। और विगत साढ़े पांच हजार से भी अधिक वर्षों से मनाया जाने वाला यह वार्षिक आयोजन उत्साह और ऐतिहासिक गौरव आज भी मनाया जाता है। 
पौराणिक कथा के अनुसार नंदगाँव निवासी भगवान श्रीकृष्ण होली के समय राधा के निवास स्थल बरसाना गए थे। गोपियों के साथ मित्रता के लिए भी प्रसिद्ध श्रीकृष्ण के द्वारा बरसाना प्रवास के इस दिन राधा के चेहरे पर रंग लगा दिए जाने से क्षुब्ध राधा की सखियां और वहाँ की महिलाओं ने श्रीकृष्ण को बंदी बना लिया और उन पर बांस और डंडे की बौछार कर उन्हें बरसाना से निकाल दिया था। होली के अवसर पर प्रतिवर्ष भगवान श्रीकृष्ण के जीवन की इस घटना के स्मरण स्वरूप फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनोरंजन के रूप में लठमार होली मनाई जाती है। प्रतिवर्ष नंदगाँव के पुरुष बरसाना शहर में जाते हैं और वहाँ की महिलाएँ उनको उसी तरह लाठी और रंगों से खेलते हुए बाहर निकालती हैं। न पुरुषों को हुरियारे कहा जाता है। एक सप्ताह तक चलने वाली बरसाने की इस होली में पुरुष और महिलाएँ रंगों, गीतों, नृत्यों और लठमार खेल में लिप्त रहते हैं। नंदगाँव से बरसाना आने वाले पुरुष महिलाओं को गाने गाकर उन्हें और उकसाते हैं। महिलाएँ गोपियों का काम करती हैं और मस्ती की धुन में पुरुषों पर लाठी बरसाती हैं। बरसाना की महिलाओं के हाथों लाठी खाने वाले पुरुषों को महिलाओं के कपड़े पहनना और सार्वजनिक रूप से नृत्य करना होता है। चोट लगने से बचने के लिए पुरुष सुरक्षात्मक कवच पहने हुए आते हैं। रंग सभी लोगों के उत्साह को और बढ़ाता है। इस खेल में शामिल होने वाले लोग श्रीकृष्ण और राधा को श्री कृष्ण और श्रीराधे बोलते हुए स्मरण करते हैं। बरसाना की होली के बाद अगले दिन दशमी को बरसाना की महिलाएं नंदगाँव आती हैं और यह उत्सव जारी रहता है।  (सुमन सागर)