इस्लामिक कट्टरपंथ से दहल गया क्रेमलिन

व्लादिमीर पुतिन को अब से पहले हाल के दशकों में कभी इतना हैरान, इतना उद्विग्न और इतने सन्नाटे में नहीं देखा गया था, जितना हैरान, परेशान और गुस्से में उन्हें 25 मार्च, 2024 को तब देखा गया, जब समूचा रूस मास्को के कांसर्ट हॉल में हुए आतंकी हमले में मारे गये देशवासियों को सामूहिक रूप से श्रद्धांजलि अर्पित कर रहा था। 25 मार्च, 2024 को रूस में जगह-जगह लोगों ने मरने वालों की फोटो के नीचे फूल रखकर और मोमबत्तियां जलाकर उन्हें श्रद्धांजलि दी। ऐसी सभी जगहों पर बड़ी-बड़ी स्क्रीनें लगी हुई थीं, जिनमें मोटे-मोटे अक्षरों से एक ही शब्द लिखा गया था ‘स्कोर्बिम’ यानी हम शोक में हैं। यह शोक स्वाभाविक था, क्योंकि जिस वहशी अंदाज में 22 मार्च 2024 को मास्को के कांसर्ट हॉल में 4 आत्मघाती इस्लामिक आतंकवादियों ने घुसकर वहां मौजूद पुरुषों, महिलाओं और छोटे बच्चों तक को गोलियों से भूना और फिर ज्यादा बड़ी त्रासदी हो, इसके लिए हॉल के उस हिस्से में आग लगा दी, जिस पर उन्होंने एकाएक हथियारों के बल पर कब्ज़ा कर लिया था। इससे मासूम बच्चों से लेकर बूढ़े तक मारे गए।
आतंकियों ने हाल में घुसकर पहले स्टेनगन से अंधाधुंध फायरिंग की, फिर हॉल के एक हिस्से में आग लगा दी। इससे इन पंक्तियों के लिखे जाने तक मास्को कांसर्ट हॉल में मरने वाले लोगों की संख्या 137 हो चुकी थी। जबकि अभी भी 50 से ज्यादा लोग जिंदगी और मौत से जूझ रहे हैं, साथ ही 150 से ज्यादा लोग घायल भी हैं। हैरानी की बात ये है कि इस आशंकित हमले की खुफिया जानकारी अमरीका ने रूस की खुफिया एजेंसी को गुजरे 7 मार्च, 2024 को ही दे दी थी और यहां तक कहा था कि मास्को में आम लोग किसी पब्लिक गैदरिंग में हिस्सा न लें, क्योंकि किसी पब्लिक गैदरिंग में ही, विशेषकर मास्को कांसर्ट हॉल में ही हमले की आशंका जतायी गई थी। बावजूद इसके रूस ने दुश्मन देश की इस चेतावनी को गंभीरता से नहीं लिया। उसे लग रहा था कहीं अमरीका उसे बरगलाने के लिए न ऐसा कह रहा हो और ऐसा होता भी है। 
आमतौर पर जब दो देश आपस में खुफिया जानकारियों को साझा करते हैं, तो वे हमेशा सिर्फ जानकारियां ही नहीं होतीं बल्कि उनके पीछे कूटनीतिक रणनीतियां भी होती हैं। कई बार हमदर्द बनने की आड़ में कई देश एक-दूसरे को बेमतलब उलझाने में भी पीछे नहीं रहते। इसलिए अगर रूस ने अमरीकी एजेंसियों की खबर को भरोसे में नहीं लिया, तो यह असंभव बात नहीं है। लेकिन क्या जो आशंका अमरीका की खुफिया एजेंसियां रूस में चोरी छुपे सूंघ रही थीं, आखिर उस साजिश को रूसी खुफिया एजेंसियां क्यों नहीं सूंघ पायीं? कहीं ऐसा तो नहीं है रूस को ठिकाने लगाने के लिए जिस तरह पिछली सदी में अमरीका ने उसे अफगानिस्तान में मुजाहिदिनों के साथ भिड़ा दिया था और रूस की लाल सेना अफगानिस्तान के रेत के दलदल में फंसकर रह गई थी। वैसा ही कुछ आईएसआईएस के जरिये अमरीका उसे उसके ही घर में फंसाने की कोशिश तो नहीं कर रहा। कम से कम जिस तरह से रूस ने अमरीकी एजेंसियों की खुफिया सूचना को गंभीरता से नहीं लिया, उससे तो यही लग रहा है। 
रूस के तानाशाह नेता पुतिन कभी भी परेशान नज़र नहीं आते, उनके चेहरे में हमेशा एक ठहरी हुई खौफनाक बेखबरी रहती है। जब पुतिन के चेहरे में तनाव झलकने लगे तो समझना चाहिए कि चीजें उनके कंट्रोल से बाहर तक फिसली हैं या वो सचमुच किसी बात से दहशत में आ गये हैं। 25 मार्च, 2024 को रूस के लोगों ने कांसर्ट हॉल में बेगुनाह मारे गये लोगों को श्रद्धांजलि देते हुए जब गुस्से में तमतमाए और दांत भींचते हुए पुतिन को देखा तो कुछ यही महसूस हुआ। ‘हम शोक में हैं’ रूसवासियों ने 25 मार्च को यह सामूहिक रूप से सार्वजनिक घोषणा की है और राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कहा है कि वह उन ताकतों को उखाड़ फेंकेंगे, जिन्होंने रूस पर कायराना हमला किया है।  बावजूद इसके कि आईएसआईएस ने इसकी जिम्मेदारी खुद ले ली थी, लेकिन रूसी राष्ट्रपति ने दो दिन तक कुछ नहीं कहा। 25 मार्च को ज़रूर उन्होंने इस हमले के लिए इस्लामिक कट्टरपंथियों जिम्मेदार ठहराया और साफ किया कि किसी भी हाल में जिहादियों को छोड़ा नहीं जायेगा। उन्होंने रूस को संबोधित करते हुए यह भी कहा कि कांसर्ट हॉल में अटैक करने वाले इस्लामिक कट्टरपंथी ही थे, जो इस घटना को अंजाम देने के बाद यूक्रेन में भागकर घुसने की कोशिश कर रहे थे।
हालांकि बाद में भी सीधे-सीधे आईएसआईएस का नाम पुतिन ने नहीं लिया, लेकिन हमलावरों को इस्लामिक कट्टरपंथी बताया और कहा कि मास्को ऐसे कट्टरपंथियों को किसी भी कीमत पर सबक सिखाये बिना नहीं रहेगा। रूस के प्रधानमंत्री मिखाइल मिशुस्तिन ने भी कहा है कि अपराधियों को हर हाल में दंडित किया जायेगा, वे किसी भी कीमत में दया के पात्र नहीं हैं। मालूम हो कि पश्चिमी मास्को के बाहरी इलाके में स्थित क्रोकस सिटी हॉल पर फिदायीन हमला करके आतंकियों ने 300 से लोगों पर अंधाधुंध गोलियां बरसायी थीं, जिसमें 97 लोग मौके पर ही मारे गये थे और बाकी अस्पताल पहुंचते-पहुंचते दम तोड़ गए। मरने वालों में बड़े पैमाने पर बच्चे और बूढ़े भी थे, जो एक मनोरंजन कार्यक्रम का आनंद लेने के लिए कांसर्ट हॉल आए थे। फिदायीन हमलावरों को पकड़कर मास्को की एक कोर्ट में पेश किया गया है और कोर्ट ने उन्हें दो महीनों की कस्टडी दे दी है। 
अभी तक इन आतंकियों की जो पहचान हुई है, उससे साफ है कि ये आईएसआईएस के खूनी लड़ाके हैं, जो मूलत: सेंट्रल एशिया के देशों के कट्टरपंथी मुस्लिम नवयुवक हैं, जिन्हें कट्टरपंथियों ने बरगलाकर रूस में हमला करने के लिए तैयार किया था। हालांकि किसी देश ने रूस पर हुए इस हमले के लिए कट्टरपंथियों के साथ तो खुद को नहीं खड़ा किया, लेकिन जिस तरह कई देशों ने पुतिन के यूक्रेन पर अंगुली उठाये जाने को लेकर ऊंची आवाज में चिल्ला उठे थे, उससे लगता यही है कि रूस पर हुए इस हमले से कहीं न कहीं पश्चिमी देश खुश हैं। यह बात रूस भी महसूस कर रहा है। इसलिए व्लादिमीर पुतिन गुस्से में जिस तरह खामोश हैं, उससे लगता है कि रूस और इस्लामिक कट्टरपंथ के बीच वैसी ही एक नई जंग शुरु होने वाली है, जैसी जंग में कभी अफगानिस्तान के साथ क्रेमलिन फंस गया था। लेकिन पुतिन फंसेंगे नहीं वो लोकतांत्रिक नहीं, तानाशाह हैं और इस्लामिक कट्टरपंथ को उसी तरह से सबक सिखाने की कोशिश करेंगे, जैसे चीन ने शिनचियान प्रांत के उइगर इस्लामिक कट्टरपंथियों को सिखाया है।
 

-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर