लड़खड़ाती हुई नाव

जैसे-जैसे लोकसभा के चुनाव नज़दीक आ रहे हैं, पंजाब की राजनीतिक बिसात पर बहुत कुछ ऐसा घटित होने लगा है, जो बेहद आश्चर्यचकित करने वाला है। इसमें से ही विगत दिवस घटित दो घटनाओं ने लोगों के मन में अनेक सवाल खड़े कर दिये हैं। तीन बार सांसद रहे रवनीत सिंह बिट्टू ने जिस तरह अपनी पार्टी कांग्रेस को छोड़ कर भाजपा को अपनाया है, उससे प्रदेश के राजनीतिक माहौल में एक अजीब बेचैनी पैदा हुई है। रवनीत सिंह बिट्टू पूर्व मुख्यमंत्री स. बेअंत सिंह के पौत्र हैं, जिनका लगभग पूरा परिवार आज भी कांग्रेस का दम भरता है। जहां उनके इस फैसले की कड़ी आलोचना हुई है, वहीं प्रदेश की राजनीति ने एक नया रसातल भी छुआ है। दूसरी बड़ी घटना आम आदमी पार्टी के जालन्धर से लोकसभा सांसद सुशील कुमार रिंकू की ओर से पार्टी को अलविदा कह कर भाजपा का दामन थामने की है। इसके साथ ही जालन्धर पश्चिमी क्षेत्र के ‘आप’ के विधायक शीतल अंगुराल ने भी भाजपा का दामन थाम लिया है। जहां तक सुशील कुमार रिंकू का सवाल है, उनका नाम आम आदमी पार्टी की ओर से जालन्धर लोकसभा सीट पर पुन: चुनाव लड़ने संबंधी भी घोषित किया हुआ था। 
दूसरी तरफ विधायक शीतल अंगुराल का कार्यकाल अभी तीन वर्ष का और शेष है। ये दोनों ही आपस में राजनीतिक एवं सामाजिक जीवन में पिछले दो दशकों से एक-दूसरे के कट्टर विरोधी भी रहे हैं। अपने पद छोड़ते हुये जो बातें उन्होंने कही हैं, वे आदमी पार्टी की पोल खोलने के लिए काफी हैं। रिंकू ने कहा है कि जो वायदे पार्टी ने जालन्धर के लोगों के साथ किये थे,  उन्हें पूरा नहीं किया गया। यहां तक कि जालन्धर के डेरा सचखंड बल्लां के लिए घोषित की गई 25 करोड़ रुपये की राशि भी नहीं दी गई। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि इस पार्टी की सरकार के शासन में चिट्टा एवं अन्य नशीले पदार्थ धड़ल्ले से बिक रहे हैं। अमन एवं कानून की हालत पहले से भी बदतर हो गई है। विधायक शीतल अंगुराल ने अपनी ही पार्टी ‘आप’ पर आरोप लगाया है कि वह एक कार्पोरेट कम्पनी है। यह पार्टी किसी भी तरह से पंजाब के हित में नहीं है। इसकी विफलताओं के दृष्टिगत मैं इस कम्पनी को पहले ही छोड़ना चाहता था परन्तु मैं इसके विरुद्ध ठोस एवं पुख्ता प्रमाण इकट्ठे कर रहा था।
हम इस समय इन दोनों व्यक्तियों के पहले के किरदार की बात नहीं करना चाहते, जो अक्सर विवादों में घिरे रहे हैं परन्तु इनकी ओर से आम आदमी पार्टी को छोड़ने से एक बात ज़रूर स्पष्ट होती दिखाई दे रही है कि ‘आप’ की नाव पूरी तरह डगमगाने लगी है, जिसमें सवार इसमें से कूदने को अधिमान देने लगे हैं। चाहे इस पार्टी ने आगामी चुनावों के लिए भिन्न-भिन्न सीटों से कुछ उम्मीदवारों के नामों की घोषणा ज़रूर कर दी है तथा इन नामों की जांच से यह ज़रूर अहसास होता कि इस पार्टी के पास कोई और अच्छे उम्मीदवार नहीं हैं, तभी इसने इस सूची में अपने पहले कैबिनेट मंत्रियों को ही शामिल कर लिया है। दो वर्ष पहले जो पार्टी प्रदेश में 92 विधायकों के साथ सरकार बनाने में सफल हुई थी, आज उसी की बन गई दयनीय हालत के दृष्टिगत प्रदेश के भविष्य संबंधी बड़ी चिन्ता का पैदा होना स्वाभाविक है।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द