चुनाव तक विपक्ष के खिलाफ कार्रवाई पर रोक लगनी चाहिए

19 अप्रैल को लोकसभा चुनाव के पहले चरण की शुरुआत में कुछ दिन ही बचे हैं, लेकिन अब भी समय है कि सुप्रीम कोर्ट को विपक्षी दलों व नेताओं के खिलाफ कार्रवाई पर रोक लगाकर विपक्ष के लिए समान अवसर सुनिश्चित करने के लिए हस्तक्षेप करना चाहिए। वर्तमान में ईडी, सीबीआई और आयकर विभाग जैसी केंद्रीय एजेंसियों द्वारा विपक्षी दलों और उनके नेताओं के खिलाफ कथित राजनीति से प्रेरित छापे मारे जा रहे हैं।
लोकसभा चुनाव की मतदान प्रक्रिया एक जून तक चलेगी। सात चरणों में मतदान पूरा होने में अभी छह हफ्ते बाकी हैं। अब तक सत्तारूढ़ भाजपा ने न केवल विपक्षी दलों, विशेषकर मुख्य प्रतिद्वंद्वी पार्टी कांग्रेस के वित्तीय संसाधनों को कमज़ोर करने के लिए अपनी तीन केंद्रीय एजंसियों का उपयोग किया है, बल्कि इसके द्वारा प्रमुख विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ के नेताओं के चुनाव प्रचार अभियान को भी उन्हें ईडी, सीबीआई आदि केन्द्रीय एजंसियों द्वारा सम्मन जारी कर बाधित किया जा रहा है। विशेषकर ईडी विपक्ष से भाजपा के पक्ष में दल-बदल कराने के लिए सत्तारूढ़ दल के मुख्य हथियार के रूप में काम कर रही है।
इससे पहले किसी भी लोकसभा चुनाव से पहले ऐसी स्थिति उत्पन्न नहीं हुई थी। सर्वोच्च न्यायालय को 18वीं लोकसभा चुनावों की पवित्रता व निष्पक्षता को सुनिश्चित करने के लिए तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए और आदेश देना चाहिए कि विपक्ष के खिलाफ केंद्रीय एजंसियों की ऐसी सभी गतिविधियां चुनाव के आखिरी दिन 1 जून तक निलम्बित की जाएं ताकि चुनाव मैदान में समान अवसर को सुनिश्चित किया जा सके। एजंसियां अपने कार्यों की निगरानी करना जारी रख सकती हैं लेकिन विपक्षी दलों और नेताओं के खिलाफ कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं की जा सकती है।
सर्वोच्च न्यायालय ने पहले ही कुछ निर्देश दिये हैं। कोर्ट ने फैसला सुनाया है कि चुनाव खत्म होने तक टीएमसी नेता अभिषेक बनर्जी को ईडी समन नहीं कर सकती। इसी तरह कोर्ट के कहने पर आईटी विभाग ने बकाया और जुर्माने की मांग को लेकर लोकसभा चुनाव के अंत तक कांग्रेस पार्टी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करने का आश्वासन दिया। ये विशिष्ट हस्तक्षेप हैं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट को अब सामान्य हस्तक्षेप करना चाहिए, ताकि ईडी या आईटी विभाग निचली अदालतों की मदद से अपने कार्यों को अंजाम न दे सके।
11 अप्रैल को 87 सेवानिवृत्त उच्चाधिकारियों के एक समूह जिन्होंने राज्य और केंद्र दोनों सरकारों में सेवा की, ने आम चुनाव से पहले समान अवसर की चुनौतियों के बारे में चिंता व्यक्त करने के लिए भारत के चुनाव आयोग (ईसीआई) को एक पत्र लिखा। हस्ताक्षरकर्ताओं में पूर्व आईएएस, आईपीएस, आईएफ एस अधिकारी शामिल हैं। यद्यपि यह पत्र चुनाव आयोग के लिए है, यह शीर्ष न्यायालय द्वारा विचार किये जाने के लिए अधिक प्रासंगिक है क्योंकि यह संविधान को प्रभावित करने वाले व्यापक क्षेत्रों से संबंधित है।
किसी भी राजनीतिक दल के साथ अपनी गैर-संबद्धता और ‘भारत के संविधान में निहित आदर्शों’ के प्रति अपनी प्रतिबद्धता का उल्लेख करते हुए हस्ताक्षरकर्ताओं ने दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी (आप) के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी के समय पर सवाल उठाना शुरू किया। दिल्ली शराब नीति मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) उनकी गिरफ्तारी तब की जब आदर्श आचार संहिता लागू थी। पूर्व उच्चाधिकारियों ने आम चुनाव के दौरान विपक्षी दलों और विपक्षी राजनेताओं के उत्पीड़न और उन्हें परेशान करने वाले पैटर्न पर भी चिंता जतायी और कहा कि यह एजंसियों की प्रेरणा पर सवाल उठाता है। उन्होंने आम चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस के खिलाफ आयकर विभाग की पुनर्मूल्यांकन कार्यवाई और विपक्षी नेताओं को नोटिस के बारे में भी आपत्ति व्यक्त की।
यह हैरान करने वाली बात है कि आयकर विभाग को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ-साथ अन्य विपक्षी दलों के पुराने आकलन को फिर से क्यों खोलना चाहिए, वह भी आम चुनाव निकट होने पर। पत्र में कहा गया है कि इस समय लोकसभा चुनाव में उम्मीदवार और तृणमूल कांग्रेस की नेता महुआ मोइत्रा से संबंधित परिसरों की तलाशी लेना और अन्य विपक्षी उम्मीदवारों को नोटिस जारी करना भी समझ से परे है।
सूत्रों की मानें तो तीन सदस्यीय चुनाव आयोग ने भारतीय नेताओं द्वारा भाजपा सरकार पर केंद्रीय एजंसियों के दुरुपयोग के लगाये गये आरोपों की सत्यता पर चर्चा की। चुनाव आयोग का नवीनतम विचार यह है कि आयोग के पास किसी भी चल रही जांच में हस्तक्षेप करने की कोई शक्ति नहीं है। केंद्रीय एजंसियों को एडवाइज़री जारी करने की बात हुई थी, लेकिन वह विचार भी छोड़ दिया गया। इसलिए विपक्षी दल चुनाव आयोग से किसी प्रभावी हस्तक्षेप की उम्मीद नहीं कर सकते हैं, बल्कि केवल सर्वोच्च न्यायालय ही संविधान के नाम पर केंद्रीय एजंसियों को कोई सलाह जारी कर सकता है।
इससे पहले भी सर्वोच्च न्यायलय ने मणिपुर में जातीय दंगों के दौरान और प्रवासी श्रमिकों की सुरक्षा के लिए कोविड काल के दौरान की स्थिति पर स्वत: संज्ञान लेते हुए कार्रवाई की थी। अप्रैल 2024 में सर्वोच्च न्यायालय ने तीन केंद्रीय एजंसियों को कार्रवाई से दूर रहने के लिए कड़े निर्देश जारी करने में हस्तक्षेप करके अपनी संवैधानिक ज़िम्मेदारी पूरी करने का दावा कर सकता है। इस साल 15 फरवरी को 2017 चुनावी बॉन्ड अधिनियम को असंवैधानिक घोषित करके मुख्य चुनाव आयुक्त डॉ. डी.वाई. चंद्रचूड़ ने भारतीय लोकतंत्र में समान अवसर प्रदान करने की बड़ा प्रयास किया। इसी भावना से चुनाव आयोग तीन केंद्रीय एजेंसियों की कार्रवाइयों में नवीनतम का आकलन कर सकते हैं और अपने निष्कर्ष पर पहुंच सकते हैं। 
(संवाद)