संदेह की दीवार

रानी और राजन दोनों पति-पत्नी सुखी जीवन जी रहे थे। आस-पास के पड़ोसियों ने कभी भी दोनों में तकरार होते नहीं देखी। घर में एक मासूम-सी बेटी भी थी-स्वाति। उनकी अपनी एक छोटी-सी दुनिया थी। राग, द्वेष और कलह से परे।
राजन बिजली विभाग में नौकर करता था। अच्छी-खासी तनख्वाह थी। परंतु आज की दुनिया में कुछ ऐसे भी लोग हैं जो किसी को हंसता-खेलता नहीं देख सकते। मन ही मन दूसरों का सुख देखकर जलते हैं। अधीर ऐसे ही लोगों में से एक था। 
अधीर राजन के साथ काम करता था। अधीर की पत्नी संगीता जरा चिड़चिड़े स्वभाव की थी। तीन बच्चे थे। अधीर मनचली तबीयत का था और उसकी सबसे बुरी लत थी पीने की। जब कभी उसके पास पीने के लिए पैसों का अभाव रहता तो वह दूसरों से उधार मांग लेता, जो फिर कभी देने का नाम नहीं लेता था। पीने-पिलाने की आदत से पूरी की पूरी तनख्वाह हवा होने लगी, जिसकी वजह से रोज-रोज संगीता से उसकी कहा- सुनी हो जाती। मकान मालिक को किराया न दे सकने के कारण उसे अपना मकान भी छोड़ना पड़ा। नया मकान राजन के पड़ोस में आकर किराये पर लिया।
राजन के पड़ोस में आने पर अधीर राजन के परिवार से और भी अधिक घुल मिल गया। रानी अधीर को अपना पड़ोसी और अपने पति का अभिन्न दोस्त समझकर आत्मीय भाव से उसका आदर और सत्कार करती। लेकिन अधीर ने इसका और ही अर्थ समझा। उसने हमेशा यही समझा कि रानी उसकी ओर खिंची चली जा रही है।
एक बार राजन को विभाग के काम से पटना जाना पड़ा। उसकी अनुपस्थिति में अधीर राजन के घर पहुंचा। उस समय रानी स्वाति के लिए फ्राक सी रही थी। अधीर को देखकर वह फुर्ती से उठी और हाथ जोड़कर अधीर का अभिवादन किया। ‘फ्र्राक सिला जा रहा है।’ अधीर ने कुर्सी पर बैठते हुए पूछा।
‘हां, स्वाति के लिए।’
‘राजन जी क्या आज छुट्टी के दिन भी काम पर गये हुए हैं?’ अधीर ने उपेक्षापूर्ण ढंग से पूछा।
‘जी, आज वे विभाग के काम से पटना गये हुए हैं। शायद कल सुबह वापस आयेंगे।’ रानी ने उत्तर दिया।
अधीर ने कुछ देर इधर-उधर अंगड़ाई लेने के बाद रानी की ओर गंदी निगाहों से देखने लगा। उसके मुंह से शराब की बदबू आ रही थी। 
रानी ने कहा- ‘आप इस गरमी में चाय पीना पसंद करेंगे या कुछ ठंडा?’
‘नहीं रानी, मैं तो आज तुमसे एक बात जो बहुत दिनों से दिल में है वह कहने आया हूं....’ अधीर ने कुटिल मुस्कान के साथ उत्तर दिया।
रानी ने उसकी आंखों में वासना की एक झलक तैरती हुई देखी, जिससे वह सिहर उठी। अपने को संभालते हुए बोली- ‘कहिए, क्या कहना चाहते हैं?’
न जाने अपने दिल में तुम मेरे बारे में क्या सोचती होगी लेकिन मेरा मन दिन पर दिन तुम्हारी ओर खिंचता चला जा रहा है। रानी, तुम कितनी सुंदर हो। कई बार सोचा कि दिल की बात तुमसे कहूं, परंतु समय ही नहीं मिल सका और हिम्मत भी नहीं पड़ी। पर आज जी भरकर तुमसे बात करने की सोचकर आया हूं।’ अधीर एक सांस में ही यह सब बक गया।
तभी अंदर कमरे में स्वाति के रोने की आवाज सुनाई पड़ी। फ्राक वहीं पर रखकर रानी ने अधीर से उठते हुए कहा- ‘माफ कीजिए, स्वाति जाग गई है। कहीं बिस्तर न गंदा कर दे और शायद मुझे उसके लिए दूध गर्म करके पिलाने में ज्यादा समय लगे’, और बिना उत्तर की प्रतीक्षा किये वह दूसरे कमरे में चली गई। कुछ देर रुककर हताश होकर अधीर भी वापस चला गया। अधीर के जाने के बाद रानी ने दरवाजा अंदर से बंद कर दिया। लेकिन वह अधीर के दुस्साहस से शंक्ति हो उठी। उसने कल्पना भी नहीं की थी कि उस अधीर को जिसको कि उसके पति अपने सगे भाई से भी बढ़कर मानते और विश्वास करते हैं, आज इस कमीनेपन पर उतारु हो जायेगा।
दूसरे दिन सुबह को जब राजन बाहर से आया तो रानी ने अधीर के बारे में कोई जिक्र नहीं किया। पहले तो उसने सोचा कि सारी बातें बतला दे लेकिन फिर ये सोचकर कि कहीं वे अर्थ का अनर्थ न समझ लें और फिर दोनों में दोस्ती दुश्मनी में न बदल जाए। इसलिए उसने कुछ भी कहना उचित नहीं समझा। सब काम से छुट्टी पाकर राजन ने पहले अधीर से मिलने की सोची। जब वह अधीर के घर पहुंचा तो बाहर से ही उसने अधीर और संगीता के बीच महाभारत के होने की आवाज सुनी- ‘मैं जानती हूं कि तुम क्यों राजन के यहां रोज-रोज जाते हो रात में अधिक देर से घर लौटते हो।’ संगीता अधीर से चिल्लाकर कह रही थी।
‘पता नहीं तुम्हें रानी से इतनी जलन क्यों है। जहां कहीं उसका जिक्र हुआ नहीं कि तुम्हारा पारा गरम हुआ।’ अधीर ने जवाब दिया। (क्रमश:)