भयावह युद्ध-बढ़ता मानवीय दुखांत

इज़रायल तथा हमास में छिड़े युद्ध को सात माह हो चुके हैं। विगत वर्ष 7 अक्तूबर को हमास की ओर से इज़रायल पर किये गये हमले में जहां हज़ार से अधिक नागरिकों को मार दिया गया था, वहीं सैकड़ों ही लोगों को बंधक बना कर हमास के लड़ाके गाज़ा पट्टी ले गये थे। छोटी-सी गाज़ा पट्टी में लगभग 23 लाख फिलिस्तीनी रह रहे हैं। चाहे इस पट्टी को इज़रायल ने घेरा हुआ है परन्तु मिस्र के साथ भी इसकी सीमा लगती है। 7 अक्तूबर के बाद इज़रायली सैनिकों ने पहले हवाई हमलों तथा फिर ज़मीनी हमलों में गाज़ा के उत्तरी भाग का लगभग विनाश ही कर दिया था, जहां से जान बचा कर लाखों ही फिलिस्तीनी मिस्र की सीमा के साथ लगते ऱाफाह शहर में आ गये थे।
गाज़ा के उत्तरी तथा केन्द्रीय भाग पर इज़रायली सैनिकों का कब्ज़ा है। इन स्थानों से शरणार्थियों को दक्षिणी भाग की ओर धकेल दिया गया था, जो ऱाफाह में इकट्ठा होकर बेहद दयनीय जीवन व्यतीत कर रहे हैं। चाहे संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियों द्वारा किसी न किसी ढंग से इन लाखों शरणार्थियों को खाद्य वस्तुएं आदि पहुंचाने का यत्न किया जाता रहा है परन्तु ज्यादातर बार इस इलाके की घेराबंदी करके इज़रायली सैनिक राहत सामग्री को गाज़ा पट्टी में भेजने से रोकते रहे हैं, जिससे यहां हालात भुखमरी वाले बन गये हैं। विश्व भर के देशों ने इज़रायल को भेजी जाती राहत सामग्री के लिए सीमाएं खोलने की अपीलें की हैं परन्तु अभी तक भी ये 20 लाख से अधिक लोग इज़रायल की दया के पात्र बन घिरे बैठे हैं। मुस्लिम संगठन हमास जो लगातार इज़रायल के विरुद्ध लड़ाई लड़ता रहा है, ने इतना विनाश होने के बावजूद भी हथियार नहीं डाले। अब तक 40,000 से अधिक फिलिस्तीनी मारे जा चुके हैं परन्तु हमास ने इस युद्ध को जारी रखा हुआ है तथा इज़रायल के बंधकों को छोड़ने से इन्कार किया हुआ है। दोनों का समझौता करवाने के लिए कतर तथा मिस्र लगातार यत्न कर रहे हैं। कतर में हमास के प्रतिनिधि भी इन यत्नों में शामिल हैं। पिछले कुछ दिनों से हमास ने युद्धबंदी के लिए अपने कुछ सुझाव रखे थे परन्तु इज़रायल ने उन्हें मानने से इन्कार कर दिया है तथा अब उसने ऱाफाह पर हमले की तैयारी कर ली है, जिससे व्यापक स्तर पर मानवीय विनाश होने की सम्भावना बन गई है। चाहे इज़रायल का सबसे बड़ा मददगार अमरीका भी उस पर यह दबाव बना रहा है कि वह ऱाफाह पर हमला न करे परन्तु आपसी बातचीत सफल होती दिखाई नहीं देती।
इज़रायल के सैनिकों ने राफाह की सीमा को घेरा  डाल दिया है, जहां इराक द्वारा संयुक्त राष्ट्र की राहत सामग्री भेजी जाती रही है। उत्तरी गाज़ा में तो लोग भूखे मरने शुरू हो गए हैं। इज़रायल के प्रधानमंत्री बैंजामिन नेतन्याहू ने इस घेराबंदी को बेहद ज़रूरी बताते हुए कहा है कि इसी ढंग से ही हमास की सैनिक तथा प्रशासनिक शक्ति को नष्ट किया जा सकेगा। अब इस बात का  स्पष्ट ़खतरा दिखाई देने लगा है कि यदि आखिरी पड़ाव पर पहुंची बातचीत सफल न हुई तो इज़रायल अपनी पूरी शक्ति से ऱाफाह पर हमला कर सकता है, जिससे व्यापक स्तर पर मानवीय विनाश होने की प्रबल सम्भावनाएं  हैं। दुखद बात यह है कि पिछले 7 दशकों में इस बेहद गम्भीर मामले का हल नहीं निकाला जा सका। संयुक्त राष्ट्र के बड़े यत्न भी विफल रहे हैं। अब इस बात की सम्भावना स्पष्ट दिखाई देने लगी है कि यदि इज़रायल ऐसे हमले से बाज़ नहीं आता तो यह लड़ाई किसी बड़े युद्ध में बदल सकती है। इसके अतिरिक्त पिछले दो वर्ष से चल रहे रूस-यूक्रेन युद्ध भी बेहद नाज़ुक दौर में पहुंच चुका है। एक तरफ अमरीका तथा पश्चिम के  नाटो गठबंधन के साथ जुड़े दर्जनों ही देश हैं, जो इस समय में लगातार प्रत्येक पक्ष से यूक्रेन के साथ खड़े रहे हैं, दूसरी तरफ पिछले 25 वर्ष से रूस पर प्रशासन चला रहे व्लादीमिर पुतिन हैं। उन्होंने भी विनाशक परमाणु हथियारों के इस्तेमाल संबंधी धमकी दे दी है, जिससे इस धरती का भारी विनाश होने की आशंका बनी दिखाई देती है। आज संयुक्त राष्ट्र तथा विश्व भर के अन्य देशों की ओर से एकजुट होकर छिड़े इन भयावह युद्धों को रुकवाने के लिए आगे आना ज़रूरी हो गया है।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द