किसानों को कृषि से जोड़े रखना गम्भीर चुनौती

भारत एक कृषि प्रधान देश रहा है लेकिन देश में कृषि की तुलना में उद्योग और सेवा आदि क्षेत्रों का तेज़ी से विस्तार होने के कारण इस मौलिक व्यवसाय का योगदान जीडीपी में जिस तेजी से कम हो रहा है, उससे कृषि व्यवसाय में लगे लोगों का एक स्थान से दूसरे स्थान में प्रवासन के कारण किसानों को कृषि में प्रवृत्त रखना एक गम्भीर चुनौती है। यह दोधारी चुनौती एक बड़ी आबादी को आजीविका के अवसर प्रदान करने के साथ ही जनसंख्या की आवश्यकतानुसार देश का अन्न उत्पादन बनाये रखने की भी है। हर रोज़ किसानों द्वारा की जाती आत्महत्या की समस्या भी इसी चुनौती से जुड़ी हुई है।
खाद्य एवं कृषि संगठन (एफ एओ) के एक आंकलन के अनुसार भूख, गरीबी और जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले मौसमी बदलाव की वजह से लगभग 76.3 करोड़ लोग अपने ही देश में कृषि छोड़कर बेहतर आजीविका अवसरों की तलाश में प्रवास कर जाते हैं। भारत की लगभग एक तिहाई आबादी यानी 30 करोड़ से अधिक लोग प्रवासी हैं। जनगणना रिपोर्ट 2011 के अनुसार लगभग 84 प्रतिशत लोग अपने राज्य के भीतर ही प्रवास करते हैं और लगभग 2 प्रतिशत लोग एक राज्य से दूसरे राज्य में चले जाते हैं। पूर्वी और उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों से बड़ी तादाद में लोग काम और बेहतर रोज़गार की तलाश में भारत के विभिन्न हिस्सों में चले जाते हैं। इनमें से ज्यादातर लोग अल्पकालीन प्रवासी हैं जो थोड़े समय के लिए मज़दूरी करते हैं और इसके बाद अपने मूल राज्य में लौट कर अपनी छोटी जोतों पर काम करते हैं। एनसीआरबी द्वारा दिसम्बर 2023 में जारी क्राइम स्टेटिस्टिक्स के अनुसार वर्ष 2022 में देश में 11,290 किसानों ने आत्महत्या की जिनमें 6083 कृषि मज़दूर थे।
प्रवासन दुनिया भर में कई गरीब लोगों के लिए जीवन जीने का एक तरीका है और सहस्राब्दियों से रहा है, लेकिन कृषि कर्म से जुड़े लोगों के लिए प्रवासन एक मजबूरी है जो कि बढ़ती जा रही है। अपर्याप्त कृषि भूमि, विकास की कमी और खराब पारिवारिक अर्थव्यवस्था के कारण मज़दूरों को अपना क्षेत्र छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ता है। भारत की अर्थव्यवस्था सदैव कृषि आधारित रही है। कृषि उत्पादन में मुख्य घटक कृषि क्षेत्र के मजदूर हैं। एक अनुमान के अनुसार ग्रामीण भारत में 35 प्रतिशत श्रम शक्ति की अधिकता है जबकि वहां उतनी श्रम शक्ति के लिये पर्याप्त रोज़गार उपलब्ध नहीं हो पाता जिस कारण लोगों को एक प्रदेश छोड़ कर दूसरे कृषि प्रधान प्रदेश में सीजनल प्रवासन करना पड़ता है। इससे श्रम की आपूर्ति और मांग में असंतुलन पैदा हो जाता है। 
कृषि क्षेत्र के लिये चिन्ता का विषय यह है कि राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में कृषि की हिस्सेदारी घट रही है। लोकसभा में 19 दिसम्बर, 2023 को कृषि मंत्री द्वारा दी गयी जानकारी के अनुसार औद्योगिक और सेवा क्षेत्र में तेजी से वृद्धि के कारण भारत की जीडीपी में कृषि की हिस्सेदारी 1990-91 में 35 प्रतिशत से घट कर 2022-23 में 15 प्रतिशत रह गई। फिर भी कृषि क्षेत्र भारत के लगभग आधे कार्यबल को रोज़गार देता है और भारतीय सकल घरेलू उत्पाद में अधिकांश अस्थिरता के लिए ज़िम्मेदार है।
भारत की अर्थव्यवस्था में कृषि की हिस्सेदारी घटते जाने का यह मतलब कतई नहीं कि इस आधारभूत क्षेत्र का महत्व ही घट गया है। भारत के आर्थिक और सामाजिक ढांचे में इस क्षेत्र का महत्व इस सूचक से कहीं अधिक है क्योंकि भारत के लगभग तीन-चौथाई परिवार ग्रामीण आय पर निर्भर हैं। कृषक समुदाय के समक्ष पारम्परिक पेशे से जुड़े रहने में एक नहीं बल्कि अनेक चुनौतियां हैं। कई किसान बाज़ार की कीमतों में उतार-चढ़ाव, मौसम की अनिश्चितता और बढ़ती लागत जैसे विभिन्न कारकों के कारण कम और अस्थिर आय से जूझते हैं। यह आर्थिक अस्थिरता उनके लिए केवल कृषि के माध्यम से अपना गुजारा करना कठिन बना देती है। पारम्परिक कृषि पद्धतियों में अक्सर आधुनिक कृषि पद्धतियों की तुलना में दक्षता और उत्पादकता की कमी होती है। आधुनिक उपकरणों, मशीनरी और प्रौद्योगिकियों तक सीमित पहुंच उत्पादकता और प्रतिस्पर्धात्मकता को बाधित करती है, जिससे युवा पीढ़ी कृषि पेशे में प्रवेश करने या जारी रखने से हतोत्साहित हो रही है। विरासत कानूनों और जनसंख्या वृद्धि के कारण पीढ़ियों से कृषि भूमि छोटे-छोटे भू-खंडों में विखंडित हो रही है। छोटी और बिखरी जोत कृषि को आर्थिक रूप से कम व्यवहार्य बनाती है और मशीनीकरण और आधुनिक कृषि पद्धतियों को अपनाने में बाधा डालती है।
राष्ट्रीय कृषक आयोग की सिफारिशों को मानते हुए 2007 में संसद ने राष्ट्रीय कृषि नीति को अपनाया गया था। इसमें कृषि में युवाओं की संलिप्तता बढ़ाने पर ज़ोर दिया गया। नीति आयोग का भी प्रयास है कि कृषि संबंधी सहयोगी उद्योगों के जरिए युवाओं को खेती में संलग्न किया जाए। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने ‘ष्आर्या’ यानी अट्रैक्टिंग एंड रिटेनिंग यूथ इन एग्रीकल्चरए की शुरूआत की। इसका उद्देश्य सतत आय का ज़रिया प्रदान करके ग्रामीण क्षेत्रों में युवाओं के लिए अवसर पैदा करना। ‘आर्या’ की शुरूआत के समय प्रोफेसर एम.एस. स्वामीनाथन ने कहा था ‘जब तक कृषि को आकर्षक और फायदेमंद नहीं बनाया जाएगा, तब तक युवाओं को इस क्षेत्र में कायम रखने में कठनाई होगी।’ (युवराज)