गर्मी की दस्तक

पंजाब सहित उत्तर भारत में गर्मी ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया है। विगत 10-15 दिनों से प्रदेश के अलग-अलग हिस्सों में भीषण तीव्र गर्मी पड़ रही है। इस कारण राजस्थान में 23 और पंजाब में 4 मौतें भी हो गई हैं। बठिंडा में 28 मई को तापमान 49.3 डिग्री सैल्सियस तक जा पहुंचा था। 1981 में इस शहर का तापमान 47 डिग्री सैल्सियस तक ही पहुंचा था। बठिंडा के अलावा पंजाब के अन्य बहुत सारे शहरों में भी 28 मई को तापमान 45 डिग्री सैल्सियस से ऊपर चला गया था। अमृतसर में 45.4, फिरोजपुर में 46.9, लुधियाना में 46.2, फरीदकोट में 46.0 व मोहाली में 44.9 डिग्री सैल्सियस दर्ज किया गया है। हमें यह भी याद रखना चाहिए कि तापमान 60 डिग्री तक पहुंच जाए तो मानवीय जीवन खतरे में पड़ जाता है।
पंजाब में भीषण गर्मी पड़ने से बिजली की खपत भी 12 हज़ार मैगावाट तक पहुंच गई है। राज्य में भीषण  गर्मी पड़ने के कारण लोगों ने बाहर निकलना भी कम कर दिया है। सिर्फ ज़रूरी कार्यों के लिए ही लोग घरों से बाहर निकल रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में बिजली के लम्बे-लम्बे कट भी लगने शुरू हो गये हैं। चाहे पंजाब सरकार यह दावा कर रही है कि प्रदेश में बिजली का कोई संकट नहीं है तथा सभी उपभोक्ताओं को निरन्तर बिजली दी जा रही है परन्तु इसके बावजूद ग्रामीण क्षेत्रों से लम्बे कट लगने के समाचार प्राप्त हो रहे हैं। पॉवरकाम के ज्यादातर सभी कर्मचारियों की चुनावों में ड्यूटियां लगी होने के कारण बिजली आपूर्ति बाधित होने और शिकायतों का भी समय पर समाधान नहीं हो रहा। आलमी स्तर पर धरती की तपश लगातार बढ़ने के कारण पंजाब भी हर साल पहले वर्ष से अधिक गरम होता जा रहा है। इसी तरह गर्मियों की ऋतु में पंजाब के भिन्न-भिन्न शहरों का तापमान भी पहले से लगातार बढ़ता जा रहा है। यह बेहद चिन्ताजनक बात है। उधर विगत दिवस से हमने देखा है कि प्रदेश में किसानों ने व्यापक स्तर पर गेहूं की नाड़ को आग भी लगाई हैं, जिनसे सड़कों के किनारे  पर लगे वृक्ष ही नहीं, अपितु अनेक स्थानों पर घोंसले बनाये बैठे पक्षी तथा उनके बच्चे भी झुलस गये हैं। किसानों का यह रवैया जहां वृक्षों एवं पशु-प्राणियों को नुकसान पहुंचाता है, वहीं इस कारण प्रदेश में अब तक चार के लगभग मौतें भी हो चुकी हैं। इस संबंध में हम पहले भी अपना विचार प्रकट कर चुके हैं कि पंजाब को खुशहाल रखने के लिए जहां अन्य वस्तुओं की ज़रूरत है, वहीं वातावरण का संतुलन बनाये रखना भी बेहद ज़रूरी है। धरती की बढ़ रही तपश चाहे आलमी घटनाक्रम है, परन्तु पंजाब में यदि हमने इस घटनाक्रम का सामना करना है तो हमारे लिए यह बेहद ज़रूरी है कि यहां वातावरण सन्तुलन बना कर रखें। वर्ष में दो बार धान की पराली तथा गेहूं के नाड़ को आग लगाने का सिलसिला दृढ़ता तथा प्रतिबद्धता से बंद होना चाहिए। इसके लिए समूचे पंजाबी समाज के भीतर से आवाज़ उठनी चाहिए। इसके साथ ही सड़कों, नहरों तथा अन्य खाली पड़े सांझे स्थानों पर अधिक से अधिक वृक्ष लगाये जाने चाहिएं। वृक्ष धरती की तपश को कम करने में सबसे अधिक सहायक होते हैं।
इसके साथ ही हमें यह भी देखना चाहिए कि पानी तथा बिजली जैसे स्रोतों का अधिक से अधिक कुशलता से उपयोग हो। प्रदेश में बिजली चाहे मुफ्त की हो, तो भी इसका संयम से ही उपयोग होना चाहिए। यह चाहे थर्मल प्लांटों द्वारा पैदा हो या हाइड्रो प्रोजैक्टों द्वारा, इसे पैदा करने पर वित्तीय साधन लगते हैं तथा मानवीय शक्ति खर्च होती है। सरकार की ओर से भिन्न-भिन्न वर्गों को दी जा रही मुफ्त बिजली के कारण पंजाब ऋणी भी होता जा रहा है। इसलिए बिना ज़रूरत इसका अधिक उपयोग नहीं किया जाना चाहिए। यदि मुफ्त की बिजली समझ कर ट्यूबवैलों को भी ज़रूरत से अधिक चलाया जाता है तो उससे भी गांवों तथा शहरों में पानी की अधिक बर्बादी होती है। पंजाब में भूमिगत पानी का स्तर पहले ही नीचे से और नीचे गिरता जा रहा है। राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय एजेंसियों की ओर यह भी रिपोर्टें दी जा रही हैं, कि यदि प्रदेश में इस ढंग से पानी का दुरुपयोग होता रहा तो आगामी 15-20 वर्ष में पंजाब के निवासियों को पीने के लिए भी पानी उपलब्ध नहीं होगा। इसलिए पानी तथा ऊर्जा के अन्य स्रोतों का बेहद संयम से उपयोग किया जाना चाहिए।
जागरूकता तथा सांझे यत्नों से ही हम पंजाब में वातावरण के संतुलन को बना कर रख सकते हैं तथा पंजाब के निवासियों को सुरक्षित रख सकते हैं। लोगों में ऐसी चेतना पैदा करने के लिए सरकार के साथ-साथ सामाजिक संगठनों, बुद्धिजीवियों तथा मीडिया को भी अपनी प्रभावशाली भूमिका अदा करनी चाहिए।