नया मंत्रिमंडल

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में बने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की तीसरी बार बनी सरकार ने देश की बागडोर पुन: सम्भाल ली है। इस प्रसंग में 9 जून तथा 10 जून के दिन बेहद महत्त्वपूर्ण रहे हैं। 9 जून की सायं को देश की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की ओर से प्रधानमंत्री सहित 72 सदस्यीय मंत्रिमंडल को राष्ट्रपति भवन के प्रांगण में एक प्रभावशाली समारोह के दौरान शपथ ग्रहण करवाई गई थी तथा 10 जून को प्रधानमंत्री ने सभी मंत्रियों को उनके विभागों की ज़िम्मेदारी सौंप दी थी। मंत्रिमंडल के गठन से पहले राजनीतिक तथा पत्रकारिता गलियारों में तरह-तरह की चर्चा हो रही थी। यह कहा जा रहा था कि इस बार भाजपा को अपने दम पर बहुमत नहीं मिला, इसलिए उसकी अपने गठबंधन के भागीदारों, खास तौर पर तेलुगू देशम पार्टी के प्रमुख चन्द्रबाबू नायडू तथा जनता दल (यू) के नेता नितीश कुमार पर अधिक निर्भरता रहेगी। इसका लाभ उठाते हुए भाजपा के भागीदारों की ओर से अधिक महत्त्वपूर्ण मंत्रालय मांगे जाएंगे। यह भी कहा जा रहा था कि अहम विभाग भाजपा अपने पास ही रखने का यत्न करेगी तथा इस तरह भाजपा तथा उसके भागीदारों के मध्य मतभेद उभर कर सामने आएंगे, परन्तु प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने मंत्रिमंडल का गठन तथा मंत्रियों को विभागों की बांट दोनों काम बड़ी सफलता से पूर्ण कर लिए हैं तथा शिवसेना (शिंदे) और नैशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी (अजित पवार) के अतिरिक्त और किसी पक्ष की ज्यादा नाराज़गी सामने नहीं आई।
नैशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी (अजित पवार) ने इस कारण मंत्रिमंडल में शामिल होना स्वीकार नहीं किया, क्योंकि वह लोकसभा की एक सीट जीतने के बावजूद अपनी पार्टी के लिए कैबिनेट पद की मांग करती थी। दूसरी तरफ शिवसेना (शिंदे) में इस कारण नाराज़गी पाई जा रही है कि उसे दो राज्य मंत्रियों के पद तो दिये गये हैं परन्तु कोई भी कैबिनेट मंत्री का पद नहीं दिया गया, परन्तु उपरोक्त दोनों पार्टियों की नाराज़गी नव-निर्वाचित सरकार पर कोई ज्यादा प्रभाव डालने वाली नहीं है। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की समूचे मंत्रिमंडल पर पूरी पकड़ नज़र आ रही है। उन्होंने अहम मंत्रालय भाजपा के लिए ही आरक्षित रखे हैं तथा कम महत्त्व वाले मंत्रालय ही अपने भागीदारों के साथ सांझे किए हैं। इस सन्दर्भ में वह अपने भागीदारों को मनाने में सफल हुये हैं। अधिक अहम मंत्रालय भी पुराने कैबिनेट मंत्रियों को ही दिये गये हैं, ताकि सरकार के कामकाज में निरन्तरता बनी रहे तथा सरकार को महत्त्वपूर्ण फैसले लेने में कोई बड़ी चुनौती का सामना भी न करना पड़े। इसलिए फिर से गृह मंत्री (अमित शाह), रक्षा मंत्री (राजनाथ सिंह), वित्त मंत्री (निर्मला सीतारमण) तथा विदेश मंत्री (एस. जयशंकर) को ही बनाया गया है। ये चारों मंत्रालय ही देश की उच्चाधिकारों वाली सुरक्षा संबंधी समिति का हिस्सा होते हैं तथा इस कारण ये मंत्रालय भाजपा की ओर से अपने पास ही रखे गये हैं। समूचे तौर पर 30 कैबिनेट मंत्री बनाये गये हैं तथा इनमें से पांच कैबिनेट मंत्री ही प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की ओर से अपनी भागीदार पार्टियों के बनाये गये हैं। 
लोकसभा के स्पीकर तथा डिप्टी-स्पीकर के पद अभी भरे जाने शेष हैं। समाचार आ रहे हैं कि तेलुगू देशम पार्टी तथा जनता दल (यू) की ओर से स्पीकर का पद लेने के लिए यत्न किये जा रहे हैं। भाजपा के उपरोक्त दोनों भागीदार इसमें सफल होते हैं या नहीं, यह आगामी समय में ही पता चलेगा, परन्तु क्योंकि इस बार भाजपा ने वास्तविक रूप में एक गठबंधन सरकार का नेतृत्व करना है, इसलिए ऐसी सरकार में स्पीकर की भूमिका भी अहम हो जाती है। इस कारण भाजपा का यत्न होगा कि यह पद भी अपने पास ही रखा जाए तथा अपने भागीदारों को डिप्टी स्पीकर का पद देकर सन्तुष्ट कर लिया जाये। दूसरी तरफ विपक्षी दलों के इंडिया गठबंधन की ओर से भी ये यत्न किये जाएंगे कि उसे अगर स्पीकर का नहीं तो कम से कम डिप्टी स्पीकर का पद ज़रूर मिले। पुरानी परम्परा के अनुसार डिप्टी स्पीकर का पद विपक्ष को दिया भी जाता रहा है, परन्तु श्री नरेन्द्र मोदी की दूसरी पारी की सरकार में इस पद को भरा ही नहीं गया था। यह देखना होगा कि इस बार क्या होता है।
मंत्रिमंडल के गठन तथा मंत्रिमंडल के सदस्यों को मंत्रालय अलाट करने में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की ओर से केरल तथा तमिलनाडू को भी विशेष महत्त्व दिया गया है। केरल से भाजपा सिर्फ एक सीट जीतने में सफल हुई थी। इसके बावजूद वहां मंत्रिमंडल में दो मंत्री शामिल किये गये हैं। इसी तरह बड़े दक्षिणी राज्य तमिलनाडू जहां से भाजपा एक भी सीट जीतने में सफल नहीं हुई, फिर भी वहां दो मंत्री बनाये गए हैं। उत्तर प्रदेश में भाजपा को इस बार चुनावों में भारी झटका लगा है। इसलिए वहां पुन: स्थिति मज़बूत करने के लिए 11 मंत्री बनाये गये हैं, विशेष रूप से अनुसूचित जातियों, कबीलों तथा पिछड़े वर्ग से अधिक बनाये गये हैं। दक्षिणी राज्यों आंध्र प्रदेश, कर्नाटक तथा तेलंगाना को भी भरपूर प्रतिनिधित्व मिला है, परन्तु इस मंत्रिमंडल की एक विशेष कमी यह सामने आई है कि इसमें देश की लगभग 20 करोड़ जनसंख्या अभिप्राय मुस्लिम समुदाय का कोई भी प्रतिनिधि शामिल नहीं है।
यदि पंजाब की बात करें तो डा. मनमोहन सिंह की सरकार के समय पंजाब को केन्द्रीय मंत्रिमंडल में भरपूर प्रतिनिधित्व मिला था, परन्तु इस बार पंजाब से सिर्फ रवनीत सिंह बिट्टू को राज्य मंत्री बनाया गया है तथा उन्हें फूड प्रोसैसिंग तथा रेल विभाग के साथ जोड़ा गया है, चाहे वह लुधियाना से लोकसभा चुनाव जीतने में सफल नहीं हुये थे। ऐसे कई हारे हुये नेता जिन्हें मंत्रिमंडल में शामिल किया गया है, उन्हें छ: महीने के भीतर राज्यसभा सांसद बनाया जाएगा। क्योंकि इस बार भाजपा के ज्यादातर राज्यसभा सांसद लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं, इसलिए इस संबंध में भाजपा को कोई ज्यादा बड़ी समस्या का सामना नहीं करना पड़ेगा, परन्तु क्योंकि इस बार भाजपा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा को स्वास्थ्य मंत्री के रूप में केन्द्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किया गया है, इस कारण सत्तारूढ़ पार्टी को अपने लिए नया अध्यक्ष भी ढूंढना पड़ेगा। श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली नई राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार के लिए इस वर्ष के अंत में होने वाले महाराष्ट्र, हरियाणा तथा दिल्ली विधानसभा के चुनाव भी एक परीक्षा की तरह होंगे, जिनमें बेहतर कारगुज़ारी दिखाने का दबाव सरकार पर ज़रूर बना रहेगा।