रोज़गारोन्मुख विकास पर ध्यान केन्द्रित करे मोदी सरकार

मोदी सरकार का तीसरा कार्यकाल शुरू हो चुका है। पिछले दो कार्यकालों में मोदी सरकार द्वारा सबसे ज्यादा उपेक्षा महंगाई और बेरोज़गारी की गई, जिसका परिणाम यह रहा कि भाजपा को पूर्ण बहुमत नहीं मिला। यह अलग बात है कि भाजपा इसके लिए हिन्दु समुदाय को कोस रही हो, लेकिन इसके ठीक इतर वह इस बात से अनजान नहीं है कि देश की आधी आबादी को वह स्वंय नि:शुल्क राशन उपलब्ध करवा कर यह सिद्ध कर रही है कि देश की आधी आबादी दो जून की रोटी के लिए मोहताज है, ऐसे में उसका विश्व की बड़ी आर्थिक शक्ति, विकास के नए आयाम गढ़ने और तरह-तरह के दावे नि:शुल्क अन्न वितरण के सामने बौने लगते है।
 प्रतियोगी परीक्षाओं में होने वाली धांधली, पर्चा लीक होने तथा सरकारी सेवाओं में आउटसोर्सिंग के मायाजल ने युवा वर्ग को भाजपा से दूर करना शुरू कर दिया है। ठेका प्रणाली वाली नौकरियों से सरकारी संस्थानों की विश्वसनीयता कम हो रही है। भ्रष्टाचार बढ़ रहा है। गैर जिम्मेदारी बढ़ रही है। सरकार अगर इससे अनजान बनी रहेगी तो इसके बहुत गम्भीर परिणाम सामने आएगें। महंगाई चरम सीमा पर है। खुदरा बाज़ार सरकारों के नियंत्रण से बाहर हो चुका है। ऐसे में अगर गठबंधन का नेतृत्व कर रही भाजपा ने तीसरे कार्यकाल में महंगाई और बेरोज़गारी पर ध्यान नहीं किया तो अगले कुछ समय में होने वाले कई राज्यों के विधानसभा चुनावों में उसे इसका खमियाजा भुगतना पड़ सकता है। 
 मतदाताओं ने केंद्र में गठबंधन सरकार को चुना है। ऐसा लगता है कि मतदाताओं  द्वारा मनमाने ढंग से सरकार चलाने से प्रभावित नहीं हुए। पार्टी के शीर्ष नेता लोगों की समस्याओं जैसे डेढ़ साल से अधिक समय तक चले किसान आंदोलन, महिला पहलवानों द्वारा महीनों तक विरोध प्रदर्शन, बेरोज़गारी और महंगाई के प्रति पूरी तरह से असंवदेनशील रहे। पार्टी नेतृत्व का अहंकार सभी को दिखाई दे रहा है जिसमें उनके अपने कार्यकर्ता भी शामिल हैं। मौजूदा राजग सरकार के सामने कई चुनौतियां हैं। इसका मुख्य कारण यह है कि पार्टी का शीर्ष नेतृत्व गठबंधन की प्रथाओं का आदी नहीं है। वह हमेशा एकतरफा नेतृत्व में विश्वास करता रहा है जिसमें सहमति और संवेदनशील राजनीति के लिए कोई जगह नहीं है। इसलिए सत्तारूढ़ दल के लिए सामूहिक नेतृत्व प्रदान करना बड़ी चुनौती होगी। जो गठबंधन सरकार के लिए एक शर्त है।  गठबंधन का एक धर्म होता है। इस धर्म को जब तक निभाया जाता है तब तक तो गठबंधन की सरकार ठीक चलती रहती है। जैसे ही गठबंधन के दल इसका पालन करना बंद कर देते हैं, समस्याएं पैदा होना शुरू हो जाती हैं। गठबंधन की सरकारों में बड़़े दल को बड़़े भाई जैसी भूमिका निभानी पड़़ती है और हर पल छोटे दलों के सम्मान का ख्याल रखना पड़़ता है। कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) की सरकार इसलिए जन-कल्याण के बड़़े फैसले ले सकी थी क्योंकि उसने हमेशा गठबंधन धर्म का पालन किया। पुराने उदाहरण हमारे सामने हैं जब-जब भी दलों ने गठबंधन सरकार को छोड़़ा है या दलों ने समर्थन वापिस लिया है, उन्होंने यही आरोप लगाया है  कि गठबंधन धर्म नहीं निभाया गया। 
इस बार गठबंधन सरकार बनने से राजनीति के जानकार यह भी कहने लगे हैं कि अब गठबंधन का दौर शुरू हो गया है और एक दल को बहुमत वाली सरकारों के दिन फिर से लद गए हैं। इस बार यह भी अच्छा रहा है कि राजग और ‘इंड़िया’ दोनों गठबंधन के सांसदों की लोक सभा में संख्या अच्छी है। पिछली दो सरकारों का अनुभव अच्छा नहीं रहा था। विपक्ष की संख्या कम होने की वजह से सरकार ने विपक्ष को कभी विश्वास में नहीं लिया। 
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में राजग सरकार का गठन होने के बाद यह आवश्यक है कि जिन कारणों से भाजपा को बहुमत से कम सीटें हासिल हुईं, उन पर गंभीरता से विचार किया जाए और भविष्य की नीतियां तय की जाएं। प्रधानमंत्री मोदी अपने तीसरे कार्यकाल में तेलुगू देशम पार्टी और जनता दल-यू के सहयोग से गठबंधन सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं। फिलहाल सरकार के स्थायित्व को लेकर कोई खतरा नहीं है और आशा है कि यह सरकार पहले की तरह मज़बूती के साथ काम करती रहेगी और सहयोगी दल दलगत हितों अथवा अपने-अपने राज्य के हितों के बजाय राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देंगे। दस साल पहले के मुकाबले आज देश विकास के कहीं ज्यादा ऊंचे मुकाम पर खड़ा है। 11वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था से देश पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है। डीजीपी के आकार के हिसाब से पिछले साल ब्रिटेन को पीछे छोड़ा और 2026 तक जापान तो 2027 तक जर्मनी को पीछे छोड़ने की उम्मीद की जा रही है। इन लक्ष्यों की ओर तेज़ी से कदम बढ़ाना नई सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए। इस राह पर दो बड़ी चुनौतियां में बेरोज़गारी और आर्थिक असमानता शामिल है। इंटरनैशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन की इंडिया एम्प्लॉयमेंट रिपोर्ट के मुताबिक देश में 80 प्रतिश्त बेरोज़गार युवा हैं। जहां तक असमानता की बात है तो उसे अक्सर तेज़ विकास के आगे ज्यादा तवज्जो नहीं मिलती, लेकिन याद रखने की बात है कि तेज विकास को अगर स्थायी बनाना हो तो असमानता को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। मौजूदा जनादेश की सबसे उपयुक्त व्याख्या यही हो सकती है कि कथित तौर पर बांटने वाले राजनीतिक मुद्दों से दूरी बना कर रखते हुए सरकार विकास के एजेंडे पर पूरा ध्यान केंद्रित करे।