हरियाणा की राजनीति में हुड्डा की ज़ोरदार वापिसी

हाल ही में सम्पन्न हुए देश की 18वीं लोकसभा के चुनाव-परिणाम के दृष्टिगत, हरियाणा में भाजपा के लिए यह एक जागरण की बेला है, खासकर आगामी अक्तूबर मास में प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनावों के दृष्टिगत। नि:संदेह लोकसभा के चुनाव परिणाम भाजपा के लिए इस प्रदेश में एक बड़ा झटका हैं जहां मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के नेतृत्व में भाजपा नीत सरकार निरन्तर दो बार सत्तारूढ़ रही है। इस झटके का ही परिणाम है कि प्रदेश में वर्ष 2019 के चुनावों की तुलना में इस बार भाजपा का मत-प्रतिशत 58 प्रतिशत से न्यून होकर 46.1 प्रतिशत रह गया है। भाजपा का यह मत प्रतिशत कांग्रेस और आम आदमी पार्टी को संयुक्त रूप से प्राप्त 47.6 प्रतिशत से भी कम है। इन दोनों दलों ने इंडियन नैशनल डिवैल्पमैंटल इन्क्लूसिव अलायंस के नेतृत्व में मिल कर चुनाव लड़ा था।
2019 के लोकसभा चुनावों में जहां पूरे प्रदेश पर भगवा ध्वाज लहराया था, वहीं भाजपा ने 58 प्रतिशत मत भी हासिल किये थे जबकि इस बार के चुनावों में भाजपा का मत प्रतिशत 46.1 प्रतिशत रह गया है। इसके विपरीत 2019 में कांग्रेस का मत प्रतिशत 28.4 प्रतिशत से बढ़ कर इस बार 43.7 प्रतिशत हो गया है। इस अन्तर से कांग्रेस ने पांच लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज की है जबकि 2019 में उसे हरियाणा में एक भी सीट हासिल नहीं हुई थी।
नि:संदेह हरियाणा में भाजपा के इस अवसान और कांग्रेस के पुनरोदय का सम्पूर्ण श्रेय कांग्रेस नेता एवं पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा को जाता है जिन्होंने प्रदेश में एक प्रमुख जाट नेता के तौर पर अपनी स्थिति को और मज़बूत किया है। इस विजय के साथ बेशक भूपेन्द्र सिंह हुड्डा ने राजनीतिक धरातल पर अपने विरोधी जाट नेताओं—इंडियन नैशनल लोकदल यानि इनेलो की ओर से अभय चौटाला और जननायक जनता पार्टी के दुष्यन्त चौटाला—की ओर चुनाव में मैदान में उतारे गये सभी उम्मीदवारों की ज़मानत ज़ब्त करा कर उनको कड़ी शिकस्त दी है। इस प्रकार उनके प्रयासों ने भाजपा की टिकट पर पूर्व केन्द्रीय मंत्री बीरेन्द्र सिंह की वापिसी में भी मदद की। उनके प्रयासों से ही प्रदेश के निर्दलीय जाट नेता कांग्रेस की ओर आकर्षित हुए। हरियाणा में कांग्रेस की ओर से ‘आप’ के साथ मिल कर चुनाव लड़ने की योजना भी भूपेन्द्र हुड्डा की ही थी ताकि भाजपा-विरोधी बंटें नहीं। सोने पे सुहागा यह भी, कि उनके पुत्र दीपेन्द्र हुड्डा ने अपनी पारिवारिक विरासत रोहतक सीट को 3,45,000 से अधिक मतों के बहुमत के साथ अपने पाले में बनाये रखा।
भूपेन्द्र हुड्डा की राजनीति और रणनीति ने ही प्रदेश की जाट बिरादरियों का आकर्षण भाजपा के प्रति कम करने में मदद की जबकि प्रदेश की कुल मत-शक्ति में जाट 22 प्रतिशत से भी अधिक हैं। इस रणनीति की शुरुआत वर्ष 2014 में भाजपा आलाकमान की पहल पर प्रदेश में गैर-जाट नेता मनोहर लाल खट्टर के दो पारी के शासन की स्थापना के दौरान ही हो गई थी, और वर्ष 2016 के आरक्षण आन्दोलन और बाद में प्रदेश के पहलवानों के आन्दोलन ने इसमें घी डालने का काम किया। यही कारण रहा कि कांग्रेस ने जाट आधिपत्य वाले हिसार, रोहतक, सिरसा और सोनीपत की चारों लोकसभा सीटों पर शानदार तरीके से जीत दर्ज की।
इस समय स्थिति यह है कि प्रदेश के जाट समुदाय पर हुड्डा बाप-बेटे की पूरी पकड़ है। कांग्रेस ने इन दोनों नेताओं के नेतृत्व में दलित और सिख मतों को भी अपने पाले में डाला है। तथापि, भाजपा कभी भी पराजित मनोवस्था में तो नहीं रही। भाजपा की ़गैर-जाट और अन्य पिछड़ा वर्ग तथा राजपूत, बनिया, पंजाबी और अन्य सवर्ण जाति मतदाताओं में बहुत गहरी पैठ है जोकि कुल मतदाताओं का 21 प्रतिशत है। इन्हीं के बल पर भाजपा प्रदेश की पांच लोकसभा सीटों पर अपना वर्चस्व जताने में कामयाब रही है। नि:संदेह भाजपा को आगामी विधानसभा चुनावों हेतु हुड्डा परिवार के इन्द्र-धनुषीय रंगों की मौजूदगी के समक्ष स्वयं की सत्ता को सिद्ध करने हेतु काफी यत्न करने होंगे। कांग्रेस इस समय सचमुच लोकसभा चुनावों में स्पष्ट विजय के बाद पांच घोड़ों वाले रथ पर सवार है। वह नायब सिंह सैनी की सरकार को सत्ता-च्युत करने का हर सम्भव यत्न अवश्य करेगी।
-अजीत ब्यूरो