प्रधानमंत्री मोदी का चुनावी राज्यों पर है खास ध्यान

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने मंत्रिपरिषद के गठन में उन राज्यों का खास ध्यान रखा है, जहां इस साल और अगले साल विधानसभा के चुनाव होने हैं। इस साल महाराष्ट्र, हरियाणा, झारखंड और जम्मू-कश्मीर में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं और अगले साल दिल्ली व बिहार में चुनाव हैं। लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद इन राज्यों को लेकर भाजपा आलाकमान की चिंता बढ़ी है, क्योंकि महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड में उसे सीटों का भारी नुकसान हुआ है। इसीलिए इन राज्यों के नेताओं केंद्रीय मंत्रिपरिषद में ज्यादा जगह मिली है। हरियाणा से पिछली बार दो मंत्री थे, लेकिन इस बार सामाजिक समीकरण साधते हुए मोदी ने तीन गैर- जाट मंत्री बनाए हैं। झारखंड से अन्नपूर्णा देवी और संजय सेठ मंत्री बनाए गए हैं। गौरतलब है कि राज्य में आदिवासियों के लिए आरक्षित सभी पांच सीटों पर भाजपा हार गई है। इसलिए उसने यादव और वैश्य मंत्री बनाया है और उसे उम्मीद है कि बाबूलाल मरांडी के पार्टी अध्यक्ष होने से विधानसभा चुनाव में आदिवासी वोट मिलेगा। महाराष्ट्र से नितिन गडकरी और पीयूष गोयल सहित छह मंत्री बनाए गए हैं, जिसमें मराठा, ब्राह्मण, पिछड़ा और वैश्य चारों का संतुलन भाजपा ने बनाया है। इसी तरह बिहार से भी इस बार आठ मंत्री बनाए गए हैं। इससे पहले 2019 में छह और 2014 में सात मंत्री बनाए गए थे। अलबत्ता दिल्ली से सिर्फ एक ही मंत्री बनाया गया है।
कैबिनेट में पूर्व मुख्यमंत्रियों की भरमार 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपनी तीसरी सरकार में ज़्यादातर उन्हीं मंत्रियों से काम चलाना पड़ेगा, जिन्होंने पिछली सरकारों में रहते हुए अपनी अयोग्यता और भ्रष्टाचार की वजह से बदनामी बटोरी और जिनकी वजह से इस बार भाजपा को चुनाव में भारी नुकसान उठाना पड़ा। ऐसे मंत्रियों के अलावा कई पूर्व मुख्यमंत्रियों को भी इस बार नरेंद्र मोदी ने अपनी सरकार में शामिल किया है। मोदी की पिछली सरकार में चार पूर्व मुख्यमंत्री—राजनाथ सिंह, नारायण राणे, सर्बानंद सोनोवाल और अर्जुन मुंडा शामिल थे, लेकिन इस बार पूर्व मुख्यमंत्रियों की संख्या में बढ़ौतरी हो गई है। पिछली सरकार में मंत्री रहे राजनाथ सिंह और सर्बानंद सोनोवाल इस बार भी मंत्री बनाए गए हैं। इनके अलावा मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे शिवराज सिंह चौहान को भी मंत्री पद मिला है। त्रिपुरा के मुख्यमंत्री रहे बिप्लब देब को भी प्रधानमंत्री मोदी ने इस बार सरकार में शामिल किया है। हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे मनोहर लाल खट्टर भी सरकार में शामिल हुए हैं। सहयोगी पार्टी की ओर से जनता दल (एस) के नेता कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री एच.डी. कुमार स्वामी को मंत्री बनाया गया है। इनके अलावा बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी को भी केंद्र सरकार में मंत्री बनाया गया है। वह अपनी पार्टी के इकलौते सांसद है और दलित समुदाय से आते हैं। इस तरह कुल मिला कर सात पूर्व मुख्यमंत्रियों को केंद्र में मंत्री बनाया गया है।
चुनाव आयोग ने इतनी जल्दबाजी क्यों दिखाई?
लोकसभा चुनाव और चार राज्यों के विधानसभा चुनावों के नतीजे आने के एक हफ्ते के भीतर चुनाव आयोग ने सात राज्यों की 13 विधानसभा सीटों पर उप-चुनाव की घोषणा कर दी। सात राज्यों में 10 जुलाई को उप-चुनाव होंगे। सवाल है कि चुनाव आयोग को इतनी हड़बड़ी क्यों थी कि लोकसभा के नतीजे आते ही उसने उप-चुनाव की घोषणा कर दी। आयोग को पता है कि देश के अनेक राज्यों में विधानसभा के सदस्यों ने लोकसभा का चुनाव लड़ा है और उनमें से बड़ी संख्या में ऐसे विधायक हैं, जो सांसद बन गए हैं। वे अपनी एक सीट से इस्तीफा देंगे और वहां भी उप-चुनाव कराना होगा। यह भी तय है कि अगर कोई विधायक लोकसभा का चुनाव जीत जाता है तो उसे 14 दिन के अंदर किसी एक सीट से इस्तीफा देना होता है। अत: चुनाव आयोग को ज्यादा नहीं सिर्फ 14 दिन इंतज़ार करना था, लेकिन आयोग ने इंतजार नहीं किया। सवाल है कि क्या चुनाव आयोग को पता नहीं है कि अकेले पश्चिम बंगाल में छह विधायक लोकसभा का चुनाव जीते हैं? वहां छह सीटें खाली होने वाली हैं, लेकिन उससे पहले ही चुनाव आयोग ने राज्य की चार सीटों पर उप-चुनाव की घोषणा कर दी। इसे लेकर तृणमूल कांग्रेस ने चुनाव आयोग को चिट्ठी लिखी है कि एक साथ 10 सीटों के उप-चुनाव कराए जाएं। पार्टी ने कहा है कि बार-बार चुनाव कराना ठीक नहीं है। इसी तरह झारखंड में भी चार विधायक इस बार लोकसभा चुनाव जीत कर सांसद हो गए हैं। हालांकि वहां अब उप-चुनाव नहीं होगा क्योंकि दिसम्बर में राज्य में विधानसभा के चुनाव होने हैं, लेकिन पंजाब, बिहार आदि में उप-चुनाव कराने होंगे।
सहयोगियों को थमाया झुनझुना
सहयोगी पार्टियों को एक-एक, दो-दो मंत्री पद देने के बाद अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विभागों के बंटवारे में भी सहयोगियों को झुनझुना थमा दिया है। कई सहयोगी पार्टियां बड़ी जीत के बाद उम्मीद कर रही थीं कि उन्हें अपने राज्य में विकास के काम करने का मौका मिलेगा और उनके नेताओं को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाने का भी मौका मिलेगा। लेकिन उनके विभागों को देखते हुए लग रहा है कि ऐसा कोई मौका उनको नहीं मिलने जा रहा है। बिहार में जनता दल-यू के 12 सांसद जीते हैं और सरकार के गठन में जद-यू का बड़ा योगदान है, लेकिन उसे सिर्फ एक कैबिनेट और एक राज्यमंत्री का पद मिला। उसके कैबिनेट मंत्री बने राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह को पंचायती राज, मछली पालन, पशु पालन और डेयरी मंत्रालय मिला है। कहां तो उनकी पार्टी रेल मंत्रालय मिलने की उम्मीद लगाए हुए थी, लेकिन उनको ऐसा मंत्रालय मिला है, जिसमें उनके पास करने के लिए बहुत कुछ नहीं है। 
चिराग पासवान के पांच सांसद हैं, लेकिन उनको वही खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय मिला है, जो उनके चाचा पशुपति पारस को पिछली सरकार में मिला था। इसी तरह चंद्रबाबू नायडू के बारे में कहा जा रहा था कि उनके पास 16 सांसद हैं और वह मनचाहा मंत्रालय लेंगे, लेकिन उनको भी जद-यू की तरह एक कैबिनेट और एक राज्यमंत्री का पद मिला। फिर कहा जा रहा था कि वह बुनियादी ढांचे से जुड़ा कोई मंत्रालय लेंगे, जिसका बजट बढ़ा होगा, लेकिन मिला नागरिक विमानन मंत्रालय, जिसमें सरकार के हाथ में अब कुछ भी नहीं है। 
सहयोगी पार्टियों की क्या मजबूरी है?
भाजपा की सहयोगी पार्टियों को सरकार में कोई खास महत्व नहीं मिला है। ऐसा लग रहा है कि सभी पार्टियों ने मजबूरी में भाजपा को समर्थन दिया है और बदले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो प्रसाद दे दिया है, उसे ग्रहण करना ही उनका कर्त्तव्य है। सवाल है कि सहयोगी पार्टियों की क्या मजबूरी है? ऐसा लग रहा है कि लोकसभा में संख्या का गणित देख कर उनको लग रहा है कि भाजपा के साथ बने रहने के अलावा उनके पास कोई विकल्प नहीं है। लोकसभा में राजग के सांसदों की संख्या 293 है। जनता दल-यू के 12 और टीडीपी के 16 सांसद हैं। अगर ये 28 सांसद एक साथ समर्थन वापिस लें तो राजग की संख्या घट कर 265 हो जाएगी, लेकिन इन 28 सांसदों के ‘इंडिया’ ब्लॉक से जुड़ने पर भी उनकी संख्या 261 तक पहुंचेगी। 
 प्रदेश का गणित ऐसा है कि अगर टीडीपी के 16 सांसद अलग होते हैं तो तुरंत ही वाईएसआर कांग्रेस के चार सांसद सरकार से जुड़ जाएंगे, जिससे उसकी संख्या 269 हो जाएगी। भाजपा को झटका तब लगेगा, जब चिराग पासवान और एकनाथ शिंदे के 12 सांसद भी टूटें, जिसकी संभावना अभी नहीं दिख रही है। सहयोगी पार्टियों को यह भी लग रहा है कि अगर किसी तरह से जोड़-तोड़ करके ‘इंडिया’ ब्लॉक सरकार बनाए भी तो वह बहुत अस्थिर रहेगी। इसलिए बताया जा रहा है कि सहयोगी पार्टियां सही मौके की तलाश में हैं। वे इस साल के अंत में होने वाले राज्यों के चुनाव का इंतज़ार करेंगी। अगर महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड में भाजपा चुनाव नहीं जीत पाती है तो भाजपा के अंदर से भी नरेंद्र मोदी और अमित शाह को लेकर सवाल उठने लगेंगे और तब सहयोगी पार्टियां अपने तेवर दिखाएंगी।