नीट के बाद नेट : किसे ठहराया जाए दोषी ?%

अभी यूजीसी-नीट का बिखरा रायता समेटा भी नहीं जा सका है कि 18 जून, 2024 को आयोजित यूजीसी-नेट परीक्षा का रायता भी बिखर गया। यह वाकई बेहद डरावना है। केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने देश भर के विश्वविद्यालयों और डिग्री कॉलेजों में विभिन्न विषयों के असिस्टेंट प्रोफेसरों की नियुक्ति, पीएचडी में दाखिले की पात्रता आदि के निर्धारण के लिए होने वाली, इस विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (नेट) को रद्द कर दिया है। यही नहीं परीक्षा में हुई गड़बड़ी की शक के चलते केंद्र ने इसकी जांच सीबीआई को सौंप दी है। लेकिन इस आनन फानन में की गयी कार्यवाही के बाद भी केंद्र सरकार की सियासी फजीहत होने से नहीं बची। यूजीसी-नेट परीक्षा के रद्द होते ही कांग्रेस ने मोदी सरकार को ‘पेपर लीक सरकार’ करार दिया और पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने मेडिकल प्रवेश परीक्षा नीट में कथित अनियमितताओं को लेकर भी सरकार पर हमला बोला। उन्होंने कहा कि आखिर प्रधानमंत्री ‘नीट परीक्षा पे चर्चा’ कब करेंगे? खड़गे ही नहीं कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वाड्रा ने भी शिक्षा मंत्रालय द्वारा यूजीसी-नेट परीक्षा रद्द किये जाने के आदेश के बाद सरकार की आलोचना करते हुए कहा, ‘केंद्रीय शिक्षा मंत्री पहले कह रहे थे कि नीट में पेपर लीक नहीं हुआ, लेकिन जब बिहार, गुजरात और हरियाणा में शिक्षा माफिया की गिरफ्तारी हुई, तो मंत्री स्वीकार करते हैं कि कुछ घोटाला तो हुआ है, ‘सवाल है अब नीट कब रद्द होगी? क्या शिक्षा मंत्री अब इस ढिलाई की ज़िम्मेदारी लेंगे?’
इस पर भाजपा नेता अमित मालवीय ने इंटरनेट मीडिया के प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर जारी अपनी एक पोस्ट में कहा, ‘यूजीसी नेट में धांधली की भनक लगते ही सरकार ने छात्रों के हित में नेट की परीक्षा को रद्द कर दिया है। वह किसी भी सूरत में उनके कॅरियर से खिलवाड़ नहीं होने देगी।’ गौरतलब है कि 83 विषयों वाली यह परीक्षा 18 जून, 2024 को एक ही दिन में दो अलग-अलग शिफ्टों में हुई थी। पहली शिफ्ट सुबह 9 बजकर 30 मिनट से दोपहर 12 बजकर 30 मिनट तक थी और दूसरी शिफ्ट दोपहर 3 बजे से शाम 6 बजे तक की थी। यूजीसी के अध्यक्ष प्रोफेसर मामिडाला जगदीश कुमार के मुताबिक देश के 317 शहरों में हुई इस दो शिफ्टों की परीक्षा में 11.21 लाख से अधिक से पंजीकृत छात्रों में से तकरीबन 81 प्रतिशत उपस्थित हुए थे। ओएमआर यानी पैन और पेपर मोड में आयोजित इस परीक्षा के संबंध में 19 जून, 2024 को यूजीसी को गृहमंत्रालय के इंडियन साइबर क्राइम कॉर्डिनेशन सेंटर से परीक्षा में गड़बड़ी के कुछ इनपुट्स मिले। शिक्षा मंत्रालय के मुताबिक इन इनपुट्स से प्रथमदृष्टया यह संकेत मिल रहे थे कि मानो परीक्षा कराने में ईमानदारी नहीं बरती गई, जिस कारण केंद्र सरकार ने आनन फानन में परीक्षा रद्द करने का निर्णय लिया। 
क्याेंकि शिक्षा मंत्रालय परीक्षा प्रक्रिया की हर हाल में पारदर्शिता सुनिश्चित करता है। इसलिए तुरंत एनटीए (नेशनल टेस्टिंग एजेंसी) को यह परीक्षा रद्द करके नये सिरे से इसे आयोजित कराने की अनुशंसा की गई। हालांकि अभी तक यह तय नहीं हुआ कि नई परीक्षा कब होगी, लेकिन सरकार ने कहा है कि इस संबंध में जल्द ही जानकारी साझा की जायेगी। दरअसल पहले यह परीक्षा सीबीटी यानी कंप्यूटर बेस्ड टैस्ट होती थी, लेकिन सभी सब्जेक्ट्स और सभी सेंटर्स पर परीक्षा एक ही दिन में आयोजित की जा सके और दूरदराज के सेंटर्स में भी परीक्षा हो सके, इसलिए यह सीबीटी मोड से पैन और पेपर मोड में कर दी गई है। नीट के बाद नेट की परीक्षा का भी अपराधियों के चंगुल में फंस जाना गहरे षड्यंत्र की तरफ इशारा करता है। सवाल है बार-बार इस तरह होने वाले षड्यंत्रों की आखिरकार ज़िम्मेदारी कौन लेगा? यह ज़िम्मेदारी इसलिए भी ज़रूरी है, क्योंकि परीक्षाओं के रद्द होने से न सिर्फ  एक पूरी व्यवस्था ढह जाती है, बल्कि करोड़ों रुपये का आर्थिक नुकसान भी होता है और इससे भी ज्यादा खतरनाक बात यह है कि परीक्षाओं के साथ इस तरह की लगातार गड़बड़ियां होने से इनकी विश्वसनीयता पर से भरोसा उठ जाता है, जो सबसे खतरनाक है।
सवाल है आखिरकार बार-बार जब इस भयानक स्तर की गड़बड़ियां सामने आ रही हैं, तो किसी न किसी को तो इसकी ज़िम्मेदारी लेनी ही होगी? सवाल है क्या एनटीए को इसके लिए ज़िम्मेदार ठहराया जायेगा? तकनीकी ही नहीं व्यवहारिक कारणों से भी देखें तो इन परीक्षाओं के रद्द होने की और इनमें बार बार गड़बड़ियों के सामने आने की ज़िम्मेदारी अगर किसी पर सबसे आसानी से डाली जा सकती है, तो वह एनटीए यानी नेशनल टैस्टिंग एजेंसी ही है। लेकिन अगर गहराई से देखें तो सरकार इस टैस्टिंग एजेंसी पर यह ज़िम्मेदारी इसलिए नहीं डाल सकती, क्योंकि एक तो यह संवैधानिक संस्था नहीं हैं, इसकी संविधान के तहत जवाबदेही नहीं बनती और दूसरी बात यह है कि अखिल भारतीय स्तर की परीक्षाएं आयोजित करने वाली इस एजेंसी के पास इस हेतु अपना कोई पुख्ता इंफ्रास्ट्रक्चर और मैनेजमेंट भी नहीं है। यह हो भी कैसे सकता है, जब इसके लिए इस एजेंसी को सरकार की तरफ से कोई बजट ही न दिया जाता हो। शायद यह बात बहुत ज्यादा लोगों को पता न हो कि एनटीए परीक्षाएं आयोजित करने के लिए परीक्षार्थियों से मिलने वाली फीस पर निर्भर रहती है। 
वास्तव में इस एजेंसी का यह पूरा ढांचा और उसके आर्थिक हालात एक ऐसी कमज़ोर कड़ी हैं, जो न सिर्फ बार-बार इन परीक्षाओं में गड़बड़ियां होने की आशंका पैदा करती हैं, बल्कि इसकी वास्तविकता जानने के बाद तरस आता है कि हमारी केंद्र सरकार किस कदर इतनी बड़ी राष्ट्रीय स्तर की परीक्षाओं के लिए उपर्युक्त बजट की व्यवस्था न करके कितना बड़ा घोटाला कर रही है? हाल के दशकों में बार बार विभिन्न सर्वेक्षणों और अनुसंधान अध्ययनों से यह स्पष्ट हुआ है कि भारत अगर भविष्य में सुपर पावर बन सकता है, तो इसमें सबसे बड़ी भूमिका हमारे सुशिक्षित और कुशलता से दक्ष नई पीढ़ी के जरिये ही बन सकता है। यह तभी संभव है, जब हमारे यहां एजुकेशन और विभिन्न तरह की परीक्षाओं को लेकर बहुत गंभीर रवैया अपनाया जाए। 
सरकार ही नहीं देश के बुद्धिजीवी वर्ग को और सिविल सोसायटी को भविष्य के साथ खिलवाड़ करने वाली इन परीक्षाओं के साथ होने वाली धांधलेबाजी के विरूद्ध कमर कस कर मैदान में आना होगा वरना जिस तरह से अखिल भारतीय परीक्षाओं के लिए बिना किसी ठोस बजट और कानूनी अधिकार दिये एनटीए से इसके बेहद चाकचौबंद व्यवस्था की उम्मीद की जा रही है, वह दिवास्वप्न बनकर रह जायेगा। 

-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर