असुरक्षित होता जा रहा रेल का स़फर
रेल मार्ग क्यों बन रहे हैं यात्रियों के लिए कब्रगाह? गत लगभग तीन वर्षों में 131 रेल हादसों को देखकर प्रतीत होता है कि रेल विभाग यात्रियों की सुरक्षा को लेकर गम्भीर नहीं है। यात्रियों की कतई परवाह नहीं है उन्हें। हादसा होते ही शासन-प्रशासन द्वारा जांच-पड़ताल का हवाला देकर मामला एकाध महीने में शांत करवा दिया जाता है। हताहत होने वालों के परिजनों को मरहम-हमदर्दी के रूप में केंद्र या राज्य सरकारें मुआवज़ा देकर चुप करा देती है।
इस क्रम में उत्तर प्रदेश के गोंडा में हुआ चंडीगढ़-डिब्रूगढ़ एक्सप्रेस हादसा हमारे सामने है। इस हादसे में भी पूर्ववर्ती जैसे नाकाफी कदम उठाए जाएंगे, शोर को शांत कराने के लिए तमाम तरकीबें अपनाई जाएंगी। वरना, ऐसा तो है नहीं कि जैसे लाल बहादुर शास्त्री की तरह कोई नैतिकता के आधार पर ज़िम्मेदारी लेकर अपने पद से त्यागपत्र दे देगा। निश्चित रूप से चंडीगढ़-डिब्रूगढ़ एक्सप्रेस रेल हादसे की जांच होगी। वह चाहे कागज़ों में हो या धरातल पर, लेकिन परिणाम क्या निकलेगा, ये बात हर कोई बता देगा। हादसे का कारण विभाग के किसी न किसी अधिकारी के सिर मढ़ा दिया जाएगा। दो-चार निलम्बित किए जाएंगे, कुछ महीनों के लिए। बाद में हिदायत देकर फिर से कमान दे दी जाएगी। जांच की फाइलें अधिकारियों के मेज़ों पर कुछ महीने घूमेंगी, फिर क्लोज़र रिपोर्ट देकर मामला हमेशा के लिए खत्म कर दिया जाएगा।
रेलवे में खामियों की लम्बी फेहरिस्त है। जहां चंडीगढ़-डिब्रूगढ़ एक्सप्रेस दुर्घटनाग्रस्त हुई उसके अढ़ाई सौ किमी मीटर दूर पीलीभीत ज़िले में अभी कुछ माह पूर्व ही नया रेल ट्रैक बिछाया गया जो बारिश में बह चुका है जबकि उसके आगे अंग्रेज़ों के वक्त की बनी रेल पटरियां सुरक्षित हैं। इन खामियों को देखकर भी रेल विभाग यात्रियों की जान को जोखि में डाल रहा है।
दुर्घटना कहां-कहां हो सकती है, उन क्षेत्रों से भी रेल विभाग वाकिफ होता है। ऐसे प्वाइंट को चिन्हित करके बकायदा पहले रेल ट्रैक का निरीक्षण-परीक्षण किया जाना चाहिए। स्थानीय डीएमआर को स्वंय जांच-पड़ताल करनी चाहिए, परन्तु दुर्भाग्य वह बारिश के मौसम में अपने कमरों से बाहर निकलना तक मुनासिब नहीं समझते। ऐसी सभी ज़िम्मेदारियां रेल के चतुर्थ कर्मचारियों रेल बेलदार, पटरी चेकर और टेक्नीशियन पर छोड़ दी जाती हैं। ये कर्मचारी जब पटरियों से संबंधित खामियों की शिकायत उच्चाधिकारियों से करते भी होंगे तो हो सकता है कि वे गौर नहीं फरमाते होंगे।
बारिश के मौसम में रेल पटरियों की आधुनिक तरीकों से जांच करने के बाद ही रेल संचालन की इजाज़त देनी चाहिए। पूरी संतुष्टि होने पर ही रेलगाड़ियों को पटरियों पर चलाना चाहिए। रेल मंत्रालय की दिसम्बर-2020 की एक रिपोर्ट पर गौर फरमाएं तो देश में बहुत-सी रेल पटरियां जर्जर हालत में हैं जिनमें सामान्य रेलें जिनकी स्पीड मात्र सौ-अस्सी किलोमीटर प्रति घंटा से भी कम हैं, उनकी भी रफतार झेंलने के योग्य नहीं होती, लेकिन रेल विभाग कमाल का है कि उन्हीं ट्रैक पर हाई स्पीड रेलगाड़ियां दौड़ाने की बात करता है। मानसून के दौरान भारत में मूसलाधार बारिश होती है जिसमें पुल, हाईवे, सड़कें क्षतिग्रस्त हो जाती हैं। ऐसे में यक्ष प्रश्न यही है कि भला रेल पटरियां कैसे सुरक्षित रह पाएंगी? बिना जांच किए उन पर गाड़ियां दौड़ाना उचित नहीं माना जा सकता। रेल हादसों में रेल मंत्री और उच्चाधिकारियों पर आंच नहीं आती, वे बच निकलते हैं जबकि पहली ज़िम्मेदारी उन्हीं की होती है।
भारत में रेल हादसों की कोई न कोई खबर सुनने को मिलती रहती है। सवाल यह है कि ऐसे रेल हादसों का क्रम कभी टूटेगा भी या नहीं? पिछले तीन वर्षों में विभिन्न रेल हादसों में एक हज़ार से भी अधिक यात्रियों की मौत हुई है। इन हादसों में 60 करोड़ का मुआवज़ा बंटा और 230 करोड़ रुपये की सरकारी सम्पत्ति का नुकसान हुआ।
आम आदमी के जीवन में रेल का महत्व कितना बड़ा है, यह बताने की जरूरत नहीं। रेल आम हिन्दुस्तानियों का सुगम और सस्ता साधान माना जाता है। रेलवे आर्थिक विस्तार और विकास को प्रोत्साहित करता है। रेल यातायात पहुंच बढ़ाने और क्षेत्रीय एकीकरण को आसान बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। ट्रेनों का परिवहन सभी के जीवन का मुख्य हिस्सा है, जैसे कि कम कीमत पर लम्बी दूरी तय करना। रेल से आम लोगों का विश्वास न टूटे, इसलिए रेल विभाग को और रेल सिस्टम को दुरुस्त करने की दरकार है। रेल पटरियों और रेल संचालन में आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल करना होगा। रेल विभाग में लाखों पद खाली हैं, उन्हें भरकर कर्मचारियों की कमी को भी पूरा किया जाना चाहिए। यात्रियों की सुरक्षा के लिए रेल विभाग को सभी आवश्यक कदम उठने चाहिएं। (अदिति)