वक्फ बोर्ड की बेहिसाब ताकत पर अब अंकुश लगा सकेगी सरकार

केंद्र की एनडीए सरकार वक्फ बोर्ड अधिनियम में बड़े संशोधन करने के लिए तैयार है। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने अधिनियम में लगभग 40 संशोधनों को मंजूरी दे दी है, जिन्हें वक्फ बोर्ड की शक्तियों को फिर से परिभाषित करने की दिशा में अहम कदम माना जा रहा है। कहा जा रहा है कि केंद्र सरकार वक्फ बोर्ड की किसी भी संपत्ति को ‘वक्फ संपत्ति’ बनाने की शक्तियों पर अंकुश लगाना चाहती है। 40 प्रस्तावित संशोधनों के अनुसार वक्फ बोर्डों द्वारा संपत्तियों पर किए गए दावों का अनिवार्य रूप से सत्यापन किया जाएगा। सरकार के इस कदम का मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने विरोध किया है और कहा है कि वक्फ बोर्ड की कानूनी स्थिति और शक्तियों में किसी भी तरह का हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।  
दरअसल बीते कुछ सालों में वक्फ बोर्ड के विरुद्ध शिकायतों की बाढ़ सी आ गई थी। मामला सोशल मीडिया के गलियारों से निकल लोकतंत्र के मंदिर यानी संसद की चौखट पर पहुंच गया। हर सिक्के के दो पहलू होते हैं। एक ओर वक्फ बोर्ड की मनमानियों के चर्चे हैं, दूसरी ओर इसके पैरोकार संशोधन होने पर आर-पार की चेतावनी दे रहे हैं। कुछ कट्टरपंथी तो इतना भड़के हैं कि मानो ईंट से ईंट बजा देने की धमकी देने लगे हैं। ऐसे में यह जानना ज़रुरी है कि वक्फ प्रॉपर्टी क्या होती है, और सरकार अपने बिल में ऐसा क्या संशोधन करने जा रही है कि बवाल मचा है। 
एक रिपोर्ट के मुताबिक अगर ‘वक्फ  बोर्ड’ किसी प्रॉपर्टी पर दावा करता है तो उसका अनिवार्य तौर पर वेरिफिकेशन होगा। वहीं अगर किसी प्रॉपर्टी को लेकर वक्फ बोर्ड व किसी व्यक्ति या संस्था के बीच विवाद चल रहा है तो उसका भी वेरीफिकेशन कराया जाएगा। पूरे देश में वक्फ एक्ट के विरोध की वजह उसकी वो धारा है जिसे लोग संविधान विरोधी बता रहे हैं। दरअसल वक्फ एक्ट का सेक्शन 85 कहता है कि इसके फैसले को हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में भी चुनौती नहीं दी जा सकती। 
वक्फ की बात करें तो यह अरबी भाषा का शब्द है। कोई भी मुसलमान अपनी जमीन, मकान या कोई भी कीमती चीज वक्फ को दान कर सकता है। यही वक्फ प्रापर्टी बन जाती है। आगे वक्फ प्रॉपर्टी की देखभाल और मेंटिनेंस की जिम्मेदारी स्थानीय स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक वक्फ बोर्ड से जुड़े लोगों की होती है। देश के पहले प्रधानमंत्री नेहरू ने 1954 में वक्फ एक्ट बनाया था। 1995 में नए कानून से हर राज्य में वक्फ बोर्ड बनाने की अनुमति मिली थी। दरअसल वक्फ बोर्ड को अभी अधिकार प्राप्त है कि अगर वह किसी संपत्ति पर दावा कर दे तो उसे पलटना मुश्किल हो जाता है। इस प्रस्तावित संशोधन का प्रमुख उद्देश्य वक्फ बोर्ड की शक्तियों और उसके द्वारा संपत्तियों के वर्गीकरण को नियंत्रित करना है। सरकार का कहना है कि संशोधन के बाद बोर्ड किसी भी जमीन पर गलत दावा नहीं कर पाएगा। कुछ मौलाना इसलिए  विरोध कर रहे हैं कि उनके धार्मिक मसलों में दखल देने का हक किसी को नहीं है। मुस्लिमों की रहनुमाई का दावा करने वाले असदुद्दीन ओवैसी व कुछ मौलानाओं के साथ-साथ मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के लोग भी वक्फ बोर्ड एक्ट में संशोधन की खबर सुनकर खफा हैं। उनका कहना है कि यह संशोधन उनके दीनी मामलों में दखल की कोशिश है।  
आरोप है कि वक्फ बोर्ड गलत तरीकों से दूसरे की संपत्ति पर दावा जता देता है। ऐसे में जमीन के असली मालिक से सिर के ऊपर से छत हट जाती है और वो बेघर हो जाता है। संशोधन की बात इसलिए क्योंकि वक्फ को लेकर बने कुछ कानून भी अब सवालिया घेरे में हैं। 1954 में पहला वक्फ आया और 1995 में संशोधन हुआ। भारत सरकार ने वक्फ बोर्ड अधिनियम 1954 के तहत भारत से पाकिस्तान गए मुसलमानों की जमीन वक्फ बोर्ड को दे दी। 1991 में बाबरी विध्वंस की भरपाई के लिए 1995 में पीवी नरसिम्हा राव के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने वक्फ बोर्ड अधिनियम में बदलाव करके वक्फ बोर्ड को जमीन अधिग्रहण के असीमित अधिकार दे दिए। इसके बाद 2013 में संशोधन हुआ जो सबसे अहम था। अप्रभावी होने के कारण इसकी कटु आलोचना भी हुई। इसकी वजह से अतिक्रमण, कुप्रबंधन, स्वामित्व से जुड़े विवाद और पंजीकरण एवं सर्वेक्षण में देरी जैसी गंभीर समस्याएं सामने आईं। कांग्रेस सरकार ने मार्च 2014 में लोकसभा से ठीक पहले राष्ट्रीय राजधानी में 123 प्रमुख संपत्तियों को दिल्ली वक्फ बोर्ड को उपहार में दे दिया। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 2014 में राष्ट्रीय वक्फ विकास निगम लिमिटेड के शुभारंभ के दौरान कहा था कि वक्फ बोर्ड के तहत संपत्तियों का उपयोग मुस्लिम समुदाय के सामाजिक-आर्थिक विकास और लाभ के लिए किया जा सकता है।
कहा गया कि संप्रग सरकार में किए गए संशोधनों की वजह से वक्फ बोर्ड हाल के दिनों में भू-माफिया की तरह व्यवहार करने लगा था और निजी संपत्ति से लेकर सरकारी भूमि तक और मंदिर की भूमि से लेकर गुरुद्वारों तक की संपत्ति पर कब्ज़ा करने लगा था। मूल रूप से वक्फ के पास पूरे भारत में लगभग 52,000 संपत्तियां थीं। 2009 तक 4 लाख एकड़ में फैली 300,000 पंजीकृत वक्फ संपत्तियां थीं। पिछले 15 साल में यह दोगुनी हो गई हैं। वर्तमान में वक्फ बोर्डों के पास करीब 9 लाख 40 हजार एकड़ में फैली करीब 8 लाख 72 हजार 321 अचल संपत्तियां हैं। चल संपत्तियां 16,713 हैं जिनकी अनुमानित कीमत 12 लाख करोड़ रुपये बताई जा रही है। ये संपत्तियां विभिन्न राज्य वक्फ बोर्डों द्वारा प्रबंधित और नियंत्रित की जाती हैं और इनका विवरण वक्फ एसेट्स मैनेजमेंट सिस्टम ऑफ इंडिया में दर्ज किया गया है। वक्फ बोर्ड सशस्त्र बलों और भारतीय रेलवे के बाद भारत में तीसरा सबसे बड़ा भूस्वामी है। यूपी में सबसे ज्यादा वक्फ संपत्ति है। यूपी में सुन्नी बोर्ड के पास कुल 2 लाख 10 हजार 239 संपत्तियां हैं, जबकि शिया बोर्ड के पास 15,386 संपत्तियां हैं। हर साल हजारों व्यक्तियों द्वारा बोर्ड को वक्फ के रूप में संपत्ति दी जाती है, जिससे इसकी दौलत में इजाफा होता रहता है।
 2022 में, एक आरटीआई जवाब से पता चला कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की ‘आप’ सरकार ने 2015 में सत्ता में आने के बाद से दिल्ली वक्फ बोर्ड को 101 करोड़ रुपये से अधिक सार्वजनिक धन दिया और अकेले 2021 में ही 62.57 करोड़ रुपये दिए गए। आज देश में 30 वक्फ बोर्ड हैं, जिन्होंने अब तक अनेक संपत्तियों और मंदिर की जमीनों पर कानून का उल्लंघन करके कब्ज़ा किया है। तमिलनाडु में वक्फ बोर्ड ने हाल ही में एक पूरे गांव पर स्वामित्व का दावा किया है, जिससे गांव वाले हैरान हैं। गांव में 1500 साल पुराना हिंदू मंदिर भी था। 
हरियाणा के यमुनानगर ज़िले के जठलाना गांव में वक्फ की ताकत तब देखने को मिली, जब एक गुरुद्वारा वाली जमीन वक्फ को हस्तांतरित कर दी गई। इस जमीन पर किसी मुस्लिम बस्ती या मस्जिद के होने का कोई इतिहास नहीं है। नवम्बर 2021 में मुगलीसरा में सूरत नगर निगम मुख्यालय को वक्फ संपत्ति घोषित किया गया था। तर्क यह दिया गया कि शाहजहां के शासनकाल के दौरान, संपत्ति को सम्राट ने अपनी बेटी को वक्फ संपत्ति के रूप में दान कर दिया था और इसलिए आज लगभग 400 साल बाद भी इस दावे को उचित ठहराया जा सकता है। 2018 में सुन्नी वक्फ बोर्ड ने सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष कहा कि ताजमहल का स्वामित्व सर्वशक्तिमान के पास है और व्यावहारिक उद्देश्यों के लिए इसे सुन्नी वक्फ बोर्ड की संपत्ति के रूप में सूचीबद्ध किया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट द्वारा शाहजहां से हस्ताक्षरित दस्तावेज़ प्रस्तुत करने के लिए कहे जाने पर इस निकाय ने दावा किया कि स्मारक सर्वशक्तिमान का है और उनके पास कोई हस्ताक्षरित दस्तावेज़ नहीं है लेकिन उन्हें संपत्ति का अधिकार दिया जाना चाहिए।

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