हिंडनबर्ग रिपोर्ट : क्या यह खौफनाक कार्पोरेट वार है ?
जैसे कि आशंका थी गुजरे शनिवार 10 अगस्त को तड़के जंगल में आग की तरह फैली हिंडनबर्ग रिपोर्ट की नई किस्त ने, जो कार्पोरेट सनसनी पैदा की थी, उसके चलते शेयर बाज़ार को जोर का झटका लगना ही था। इसलिए जब सोमवार 12 अगस्त को शेयर बाजार खुले तो शुरुआती एक घंटे में ही अडानी ग्रुप के शेयरों में जबरदस्त गिरावट देखने को मिली। सुबह 11 बजे तक ही इस रिपोर्ट के चलते निवेशकों को 53,000 करोड़ रुपये का झटका लग चुका था। अडानी विल्मर में 6 प्रतिशत से अधिक की गिरावट दर्ज की गई थी, जबकि अडानी टोटल गैस का शेयर 7 प्रतिशत से ज्यादा लुढ़क चुका था। अगर कहा जाए कि हिंडनबर्ग की इस दूसरी रिपोर्ट ने अपने शुरुआती असर ने अडानी ग्रुप में भूकम्प ला दिया है, तो अतिश्योक्ति न होगी।
वास्तव में अडानी ग्रुप के खिलाफ पहले भी रिपोर्ट जारी करने वाले अमरीका की शॉर्ट सेलर फंड कंपनी, हिंडनबर्ग ने अपनी नई रिपोर्ट में शेयर बाजार की नियामक संस्था सेबी की अध्यक्ष माधबी पुरी बुच पर आरोप लगाया है कि वह और उनके पति धवल बुच ने उन आफशोर कंपनियों में भारी निवेश किया है, जो अडानी समूह की हैं और जो वित्तीय अनियमितताओं के कारण सवालों के घेरे में रही हैं। जाहिर है इसका मतलब यह निकलता है कि शेयर बाजार को नियंत्रित करने वाली ऑथरिटी सेबी की जब अध्यक्ष और उनके पति भी संदिग्ध कंपनियों में निवेश कर रखा है, तो भला उनकी जांच ईमानदारी से कैसे संभव होगी? हालांकि इस रिपोर्ट के आते ही अडानी ग्रुप ने इसे तुरंत महाबकवास बताया और इसे जानबूझकर भारत के मजबूत हो रहे कार्पोरेट जगत को अस्थिर करने की साजिश कहा।
ठीक इसी तरह रिपोर्ट के सार्वजनिक होते ही सेबी की अध्यक्ष माधबी पुरी बुच ने सार्वजनिक रूप से घोषणा की कि वह किसी भी तरह की जांच के लिए व्यक्तिगत रूप से तैयार हैं और हर वह दस्तावेज उपलब्ध करने की जिम्मेदारी लेती हैं, जो जांच के लिए ज़रूरी हो। मगर बात यह है, जैसा कि देश की विपक्षी राजनीतिक पार्टियां मांग कर रही हैं कि जब तक माधबी पुरी बुच सेबी की अध्यक्ष हैं, तब तक भला सेबी ही उनके खिलाफ एक सघन व पारदर्शी जांच कैसे करेगी? इसलिए उन्हें तुरंत अपने पद से इस्तीफा देना चाहिए। संसद में मुख्य विपक्ष की भूमिका निभाने वाली कांग्रेस पार्टी ने इस सनसनीखेज रिपोर्ट के आते ही पहले की तरह फिर से ज्वाइंट पार्लियामेंट कमेटी (जेपीसी) की मांग दोहरायी है।
यह रिपोर्ट कितनी सही है, कितनी गलत है, इसका निर्णय तो एक विस्तृत और निष्पक्ष जांच ही कर सकती है, लेकिन जैसी आशंका थी कि इस रिपोर्ट के आते ही शेयर बाज़ार धड़ाम बोल गये। हालांकि इन पंक्तियों के लिखे जाने तक शेयर बाज़ार की तूफानी टूटने का अभी ज्यादातर असर सिर्फ अडानी ग्रुप की कंपनियों तक ही सीमित था, लेकिन वित्तीय बाज़ार का स्वभाव जानने वाला हर शख्स इस बात को बेहतर तरीके से जानता है कि यह गिरावट किसी भी कीमत पर सिर्फ किसी समूह विशेष तक सीमित नहीं रहेगी। आखिरकार शेयर बाज़ार किसी एक समूह की साझेदारी से नहीं बनता, शेयर बाज़ार बेहद सेंसटिव बाजार है। इसकी संवेदनशीलता हमेशा समूचे बाजार को प्रभावित करती है। लेकिन इससे भी बड़ी बात यह है कि अगर एक बार निवेशकों को विशेषकर देश के मध्यवर्गीय निवेशकों के दिल में यह बात बैठ गयी कि शेयर बाज़ार में सब कुछ घोटाला और सिर्फ घोटाला है तो जिस तरह से पिछले कुछ सालों में शेयर बाजार की तरफ ऐसे मध्यवर्गीय पांच करोड़ निवेशक आकर्षित हुए हैं, जो अपनी खून पसीने की कमाई बाज़ार में लगा रहे हैं और जो सही मायनों में ठोस और प्राकृतिक निवेशक हैं, उनका भरोसा बाज़ार में भला कितनी देर तक टिकेगा? यह बेहद खतरनाक है।
इसलिए जितना जल्दी हो हिंडनबर्ग की इस सनसनीखेज दूसरी किस्त के खुलासे पर जांच होनी ही चाहिए और यह जांच बेहद ईमानदार और खुलेपन के साथ होनी चाहिए, तभी भारत दुनिया की अर्थव्यवस्था में अपनी मजबूत साख बनाये रख सकेगा। पिछले कई सालों से लगातार भारतीय अर्थव्यवस्था दुनिया में सबसे ज्यादा या चीन के बाद दूसरे नंबर पर वैश्विक निवेश आकर्षित कर रही है। आखिर दुनियाभर के निवेशक भारत इसी भरोसे पर ही तो आ रहे हैं कि यहां एक पारदर्शी लोकतांत्रिक व्यवस्था है? अगर उन्हें अपने इस भरोसे पर कुछ शक हुआ, तो जिस तरह से हाल के सालों में भारतीय अर्थव्यवस्था ने वैश्विक निवेशकों का आगमन देखा है, उससे कहीं तेज हमें वैश्विक निवेशकों का पालयन देखना पड़ सकता है। इसलिए भारतीय अर्थव्यवस्था और हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए विश्वसनीयता बहुत ज़रूरी है। यह विश्वसनीयता तभी कायम होगी, जब हम विपक्ष को ज्यादा हंगामा किए बिना ही हिंडनबर्ग की इस दूसरी रिपोर्ट पर सार्वजनिक जांच के लिए जेपीसी की घोषणा करें और सेबी की अध्यक्ष महोदया को जांच तक इस्तीफा देकर अपने पद से बाहर रहने के लिए कहें वर्ना वित्तीय बाज़ार की यह शुरुआती लुढ़कन समूचे भारतीय पूंजी बाजार के तूफानी पतन का कारण बन जायेगी।हिंडनबर्ग रिपोर्ट की दूसरी किस्त के आने के बाद यह तय था कि इसका नकारात्मक असर शेयर बाजार को देखना पड़ेगा और वह इस रिपोर्ट के आने के बाद पहली बार खुले शेयर बाजार में पहले एक घंटे में ही देखने को मिल गया। अडानी ग्रुप की 10 कंपनियों का संयुक्त मार्किट कैप 16.7 लाख करोड़ रुपये तक गिर गया। पहले 20 मिनट में ही बीएसई सेंसेक्स 229 अंक फिसल गया और निफ्टी की फिसलन 91 अंकों तक रही। बीएसई की तरह निफ्टी की भी टॉप लूजर कंपनियां अडानी ग्रुप की ही रहीं। अडानी एंटरप्राइजेज 2.65 प्रतिशत की गिरावट के साथ निफ्टी में सबसे ज्यादा गिरावट वाला शेयर रहा। उसके बाद एनटीपीसी में 1.92 और अडानी पोर्ट्स में 1.81 प्रतिशत की गिरावट रही। गौरतलब है कि हिंडनबर्ग की पहली रिपोर्ट में अडानी ग्रुप को जिस तरह से घेरा गया था, उसके कारण एक सप्ताह के भीतर अडानी खुद अर्श से फर्श पर आ गये थे।
इस बार हिंडनबर्ग की दूसरी रिपोर्ट ने शेयर बाजार को कंट्रोल करने वाली इसकी नियामक संस्था सेबी को अपने खुलासे से घेर लिया है। अगर कहा जाए कि पहली रिपोर्ट से हिंडनबर्ग की यह दूसरी रिपोर्ट कहीं ज्यादा खतरनाक है, तो अतिश्योक्ति न होगी। क्योंकि पहली रिपोर्ट जहां एक कारोबारी समूह के भ्रष्टाचार और उसकी कार्पोरेट तिकड़मों का पर्दाफाश कर रही थी, तो इस रिपोर्ट ने उस संस्था को ही घेरे में ले लिया है, जिसे इस तरह के भ्रष्टाचारों और कार्पोरेट तिकड़मों की जांच करनी होती है। -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर