दान, ध्यान और स्नान का पर्व है मकर संक्रांति
आज मकर संक्रांति पर विशेष
भारत में प्रत्येक पर्व और त्योहार का अपना सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्त्व होता है। ऐसा ही एक पर्व मकर संक्रांति है जो लोक मंगल को समर्पित है। हिन्दू तीज-त्योहारों में मकर संक्रांति का विशेष महत्व है। मकर संक्रांति का त्योहार धार्मिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है। लोकमंगल के त्योहार देश की सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक बुनियाद को मज़बूत बनाने और समाज को जोड़ने का काम करते हैं। यह त्योहार न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसका वैज्ञानिक महत्व भी है। मकर संक्रांति सूर्य, पृथ्वी और ऋतुओं के बीच के संबंध को दर्शाने वाला पर्व है। इस वर्ष मकर संक्रांति 14 जनवरी, 2025 को मनाई जाएगी। पंचांग के अनुसार, मकर संक्रांति पुण्य काल का समय सुबह 9 बजकर 3 मिनट से लेकर शाम 5 बजकर 46 मिनट तक रहेगा और महापुण्य काल का समय सुबह 9 बजकर 3 मिनट से लेकर सुबह 10 बजकर 48 मिनट तक रहेगा।
मकर संक्रांति पर्व पूरे भारत और नेपाल में किसी न किसी रूप में मनाया जाता है। मकर संक्रांति भारत में मनाए जाने वाले प्रमुख त्यौहारों में से एक है, जिसे विभिन्न राज्यों में अलग-अलग नाम से जाना जाता है। उत्तर भारत में इसे संक्रांति, गुजरात और महाराष्ट्र में उत्तरायण, तमिलनाडु में पोंगल और असम में माघ बिहू कहा जाता है। हिन्दी भाषी क्षेत्रों में इस त्यौहार को मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है। यह त्यौहार सूर्य देव के मकर राशि में प्रवेश करने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है।
धार्मिक विश्वास के अनुसार मकर संक्रांति पर किये गये दान के कार्य अन्य दिनों के अपेक्षा सौ गुना अधिक पुण्य प्राप्त होता। इस दिन गरीबों और ज़रूरतमंदों को दान देना बेहद पुण्यकारी माना जाता है। यह त्योहार देश में पतंजबाजी के लिए भी काफी प्रसिद्ध है। इस अवसर पर महिला और पुरुष सुबह से शाम होने तक अपनी-अपनी छतों पर वो काटा की करतल ध्वनि के साथ पतंगबाजी का आनंद उठाते है। इस दिन तिल का हर जगह किसी ना किसी रूप में प्रयोग होता ही है। पौराणिक मान्यता के अनुसार ऐसा माना जाता है कि अगर मकर संक्रांति के दिन तिल का दान या सेवन किया जाए तो इससे शनि देव प्रसन्न होते हैं। जिससे ऐसे व्यक्ति जिस पर शनि देव का कुप्रभाव है वह भी कम हो जाता है। इसलिए इस दिन काले तिल को दान करने की मान्यता है। तिल स्वास्थ्य के लिए भी बेहद फायदेमंद है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिए मकर संक्रांति के दिन का ही चयन किया था। मकर संक्रांति के दिन गंगा जी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर सागर में जा मिलीं। इसीलिए आज के दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व है। मकर संक्रांति के अवसर पर गंगास्नान एवं गंगातट पर दान को अत्यन्त शुभ माना गया है। इस पर्व पर तीर्थराज प्रयाग एवं गंगासागर में स्नान को महास्नान की संज्ञा दी गयी है। मकर संक्रांति को मौसम में बदलाव का सूचक भी माना जाता है।
भारत में मकर संक्रांति विभिन्न रूपों में मनाया जाता है। बंगाल में इस पर्व पर गंगासागर पर बहुत बड़े मेले का आयोजन होता है। यहां इस पर्व के दिन स्नान करने के बाद तिल दान करने की प्रथा है। कहा जाता है कि इसी दिन यशोदा जी ने श्रीकृष्ण की प्राप्ति के लिए व्रत रखा था। इसी दिन गंगा भगीरथ के पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होते हुए गंगा सागर में जा मिली थीं। यही वजह है कि हर साल मकर संक्रांति के दिन गंगा सागर में भारी भीड़ होती है। इस साल महाकुंभ मेले में दूसरा शाही स्नान भी मकर संक्रांति 2025 के पावन पर्व पर आयोजित हो रहा है। यह महाकुंभ प्रयागराज में हो रहा है। मकर संक्रांति 2025 विशेष रूप से स्नान और दान का पर्व है। इस दिन गंगास्नान करना बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है।
बिहार में भी मकर संक्रांति को खिचड़ी के ही नाम से जानते हैं। यहां भी उड़द की दाल, चावल, तिल, खटाई और ऊनी वस्त्र दान करने की परंपरा है। इसके अलावा असम में इसे ‘माघ-बिहू और’ भोगाली-बिहू के नाम से जानते हैं। तमिलनाडू में इस पर्व को चार दिनों तक मनाते हैं। यहां पहला दिन भोगी पोंगल दूसरा दिन सूर्य पोंगल, तीसरा दिन मट्टू पोंगल और चौथा दिन कन्या पोंगल के रूप में मनाते हैं। पूजा और अर्चना की जाती है। राजस्थान में इस दिन बहुएं अपनी सास को मिठाईयां और फल देकर उनसे आशीर्वाद लेती हैं। इसके अलावा वहां किसी भी सौभाग्य की वस्तू को 14 की संख्या में दान करने का अलग ही महत्व बताया गया है। महाराष्ट्र में इस दिन गूल नामक हलवे को बांटने की प्रथा है। तो इस तरह पूरे भारत में इस पर्व को अलग-अलग तरह की परंपराओं के साथ मनाया जाता है।