फसली विभिन्नता हेतु प्रयास सफल क्यों नहीं हो रहे ?
गत शताब्दी के 8वें दशक के मध्य से फसली-विभिन्नता के लिए प्रयास किए जा रहे हैं परन्तु सफलता नहीं मिली। प्रयासों का फोकस धान की काश्त के अधीन रकबा कम करना तो रहा है और इसके स्थान पर विशेषज्ञों द्वारा दिए गए सुझाव पर 12 लाख हैक्टेयर रकबे पर दूसरी वैकल्पिक फसलों की काश्त के अधीन रकबा लाने पर ज़ोर दिया जाता रहा है। इसके बावजूद धान की काश्त के अधीन प्रत्येक वर्ष रकबे में वृद्धि हो रही है। अब तो बल्कि चिन्ता यह पैदा हो गई है कि धान की काश्त के अधीन रकबा बढ़ रहा है और नरमा-कपास (जो फसल पंजाब का सफेद सोना मानी जाती थी) की काश्त के अधीन रकबे में कमी आई है। वर्ष 2011-12 में धान की काश्त 28.18 लाख हैक्टेयर रकबे पर की गई थी और नरमा की 5.15 लाख हैक्टेयर रकबे पर, परन्तु आज इस वर्ष धान की काश्त के अधीन 32.23 लाख हैक्टेयर रकबा है और कपास-नरमा की काश्त के अधीन सिर्फ 99700 हैक्टेयर रकबा रह गया। न्यूनतम समर्थन मूल्य होने के कारण धान की फसल दूसरी फसलों के मुकाबले किसानों के लिए अधिक लाभदायक है जबकि नरमा की फसल पर चिट्टी मक्खी तथा गुलाबी सुन्डी के हमले होने के कारण उसका उत्पादन कम हो गया है, खर्च बढ़ गया है। मंडी में थी कई वर्ष किसानों को उचित कीमत नहीं मिली।
सरकार की ओर से धान के स्थान पर मुख्य तौर पर मक्की, गन्ना तथा नरमा की काश्त बढ़ाने पर ज़ोर दिया जा रहा है। परन्तु मक्की के अधीन भी कोई खास रकबा नहीं बढ़ा, चाहे गत वर्ष के 94000 हैक्टेयर के मुकाबले थोड़े-से रकबे में वृद्धि होकर इसकी काश्त इस वर्ष 1.18 लाख हैक्टेयर रकबे पर हो गई है। खरीफ के मौसम में मक्की की काश्त किसानों ने अधिकतर चारा व इसका आचार बनाने के लिए की है। मक्की की काश्त बढ़ाने के लिए सरकार द्वारा कई प्रोत्साहन भी दिए गए जिनमें बीज पर सब्सिडी शामिल है। मक्की की काश्त 2011-12 में 1.26 लाख हैक्टेयर रकबे पर की गई थी। सब्ज़ इन्कलाब के बाद इसकी काश्त के अधीन वर्ष 1970-71 में रकबा बढ़ कर 5.55 लाख हैक्टेयर तक हो गया था। केन्द्र सरकार की मक्की संबंधी नीति किसान-हित में नहीं। केन्द्र ने हाल ही में 4.98 लाख टन मक्की नैफेड के माध्यम से आयात की है। मुर्गी पालन एसोसिएशन तथा फीड मैन्युफैक्चर्स एसोसिएशन ने सरकार से मांग की है कि मक्की पर जो 15 प्रतिशत आयात कर लगाया हुआ, उसे शून्य प्रतिशत कर दिया जाए और नैफेड के अतिरिक्त अन्य निजी फीड तैयार करने वालों तथा व्यापारियों को भी इसके सीधे आयात की अनुमति दी जाए। इसकी केन्द्र के डेयरी, पशु पालन तथा मछली पालन मंत्रालय ने सिफारिश की है। यदि केन्द्र की ओर से मक्की का आयात खुला कर दिया जाता है, जो किसानों के हित में नहीं, तो मक्की की काश्त के अधीन रकबा और कम हो जाने की सम्भावना है।
गन्ना की काश्त भी सिर्फ 94,558 हैक्टेयर रकबे पर हुई है। इसकी काश्त के अधीन वर्ष 1995-96 में 1.36 लाख हैक्टेयर रकबा था। सिर्फ एक बासमती की काश्त के अधीन रकबे में वृद्धि हुई है जिसकी गत वर्ष (2023 में) 5.96 लाख हैक्टेयर रकबे पर बिजाई की गई थी और अब इस वर्ष इसकी काश्त के अधीन गत सप्ताह के शुरू तक 6.40 लाख हैक्टेयर रकबा आ गया। इसके 7 लाख हैक्टेयर रकबे तक छू जाने का अनुमान है। कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के निदेशक डा. जसवंत सिंह के अनुसार सरकार का लक्ष्य 10 लाख हैक्टेयर तक रकबा बासमती की काश्त के अधीन लाने का है। आई.सी.ए.आर.-इंडियन एग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्टीच्यूट के पूर्व डायरैक्टर एवं उपकुलपित डा. अशोक कुमार सिंह कहते हैं कि पंजाब में 9 लाख हैक्टेयर रकबा आसानी से बासमती की काश्त के अधीन लाने की गुंजाइश है। इस वर्ष बासमती का लाभदायक 4500-5500 तक मूल्य किसानों को मिला है। विशेषज्ञों के अनुसार बासमती की काश्त का भविष्य उज्जवल है।
वर्ष 2012-13 में तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने धान की काश्त के अधीन 12 लाख हैक्टेयर रकबा कम करने की योजना बनाई थी जिसकी प्रसिद्ध कृषि अर्थ-अर्थशास्त्री डा. सरदारा सिंह जौहल द्वारा पुष्टि की गई थी, परन्तु इसमें सफलता नहीं मिली। गत वर्ष सीधी बिजाई के लिए किसानों को 20.33 करोड़ रुपये सब्सिडी के रूप में दिए गए थे और 1.72 लाख एकड़ पर सीधी बिजाई हुई थी इस वर्ष यह रकबा बढ़ कर 2.48 लाख एकड़ हो गया, परन्तु सरकार द्वारा किए गए ये सभी प्रयास धान की काश्त के अधीन रकबा कम करने हेतु विफल रहे हैं।
फलों व सब्ज़ियों की काश्त के अधीन भी रकबा बढ़ाने की गुंजाइश है। फलों की काश्त के अधीन 97 हज़ार हैक्टेयर से रकबा बढ़ाया जा सकता है और सब्ज़ियों की काश्त के अधीन रकबा बढ़ाने के लिए मंडीकरण में सुधार लाने की ज़रूरत है। इस समय सब्ज़ियों के उपभोक्ताओं द्वारा दी जा रही कीमत का बहुत कम हिस्सा ही किसानों को मिल रहा है।