किसानों को बासमती का मिल रहा है कम दाम
गत वर्ष के ऊंचे दाम के दृष्टिगत तथा पानी की बचत के लिए फसली-विभिन्नता लाने के पक्ष से धान की काश्त के अधीन रकबा कम करके किसानों ने इस वर्ष बढ़-चढ़ कर बासमती किस्मों की काश्त की। अब वे मायूस हैं क्योंकि बासमती के दाम पंजाब तथा हरियाणा की मंडियों में बहुत गिर गए हैं। पूसा बासमती-1509 किस्म करनाल, तरौड़ी, नरेला तथा पंजाब के माझा क्षेत्र की मंडियों में 2200 से 2500 रुपये प्रति क्ंिवटल बिक रही है जबकि गत वर्ष किसानों ने यह किस्म 4000 रुपये प्रति क्ंिवटल तक बेची थी। हरियाणा की मंडियों में इस किस्म की फसल अधिकतर उत्तर प्रदेश से आकर बिक रही है, जहां किसान इस किस्म को अगेती लगा कर अगस्त में ही काटना शुरू कर देते हैं जबकि इसमें कुछ नमी रह जाती है। पंजाब में इस किस्म की बासमती की फसल अभी कुछेक स्थानों पर ही बिकने के लिए मंडी में आई है। पंजाब में इस वर्ष लगभग 7 लाख हैक्टेयर रकबा बासमती किस्मों की काश्त के अधीन है जबकि गत वर्ष 5.96 लाख हैक्टेयर रकबा था और कृषि एवं किसान कल्याण विभाग ने 10 लाख हैक्टेयर तक रकबा काश्त के अधीन ले जाने का लक्ष्य रखा था। इस रकबे में से लगभग 80 प्रतिशत रकबा इसी पूसा बासमती-1509 तथा कम समय में पकने वाली दूसरी किस्म पूसा बासमती-1692 (चाहे जिसकी पंजाब के लिए केन्द्र की फसलों की किस्मों तथा स्तर स्वीकार करने वाली समिति ने मान्यता नहीं दी) की काश्त के अधीन है। इन किस्मों की फसल ही अब कुछ स्थानों पर मंडियों में बिकने के लिए आ रही है। दूसरी किस्मों जिनमें सबसे अधिक पसंद की जाने वाली लम्बे चावल वाली बढ़िया पूसा बासमती-1121 किस्म शामिल है, की फसल अभी अगले माह अक्तूबर में बिकने के लिए आएगी। यह किस्म गत वर्ष 5000 रुपये प्रति क्ंिवटल तक भी बिकी थी। इस वर्ष भी वर्तमान स्थिति के दृष्टिगत इस किस्म के 3200 रुपये प्रति क्ंिवटल तक की कीमत पर बिकने की सम्भावना है।
गत वर्ष 2023-24 में भारत ने 52 लाख, 40 हज़ार टन बासमती निर्यात की थी, जो एक रिकार्ड है जबकि गैर-बासमती चावल के निर्यात से 63,000 करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा 175 लाख टन चावल निर्यात करके प्राप्त हुई। बासमती से 48,379 करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा भारत को प्राप्त हुई थी। पंजाब बासमती के जी.आई. ज़ोन में है और निर्यात में इसका 40 प्रतिशत तक का योगदान है। गत वर्ष की स्थिति से ऐसे प्रतीत होता था कि भविष्य में फसली-विभिन्नता के क्षेत्र में बासमती अहम भूमिका निभाएगी। इस वर्ष अब तक जो दाम मंडियों में उत्पादकों को मिला है, उससे इन सभी उम्मीदों पर पानी फिर गया प्रतीत होता है। उत्पादक कहते हैं कि धान लगा कर वे इससे 32-35 क्ंिवटल उत्पादन लेकर 70-75 हज़ार रुपये कमा सकते हैं जबकि बासमती से 22-25 क्ंिवटल का उत्पादन लेकर 60-62 हज़ार रुपये की आमदन ही प्राप्त होगी। आगामी वर्ष उनका झुकाव बासमती की बजाय धान की काश्त की ओर होना सुनिश्चित है।
बासमती निर्यात करने के लिए न्यूनतम निर्यात मूल्य (एम.ई.पी.) भारत सरकार द्वारा 950 डालर प्रति टन निर्धारित किया गया है। इस समय दूसरे देशों जैसे खाड़ी के देशों जिन्हें बासमती निर्यात की जाती है, वहां बासमती का दाम 750 डालर प्रति टन के लगभग है। पाकिस्तान उन देशों को बासमती तेज़ी से निर्यात करेगा, क्योंकि पाकिस्तान 700-750 डालर पर बासमती सप्लाई करने के योग्य है। इस लिए भारत सरकार द्वारा बासमती का न्यूनतम निर्यात मूल्य कम करने की आवश्यकता है। इसके लिए बासमती के प्रसिद्ध निर्यातक तथा आल इंडिया राइस एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष विजय सेतिया ने बताया कि भारत सरकार को न्यूनतम निर्यात मूल्य कम करने के लिए विनती की हुई है, जिसके लिए कई तरफ से सरकार पर दबाव डाला जा रहा है। यदि न्यूनतम निर्यात मूल्य 950 डालर से कम कर दिया जाता है तो बासमती का भविष्य उज्ज्वल हो सकता है।
व्यापारियों में बासमती की मांग बढ़ेगी और मंडी में बासमती का दाम भी बढ़ कर किसान पक्षीय हो जाएगा। इस समय व्यापारियों के पास ऊंचे दाम पर खरीदे बासमती के स्टाक पड़े हैं और वे घाटे में जा रहे हैं। बासमती का न्यूनतम निर्यात मूल्य कम करने पर फैसला इस संबंधी बनाए गए ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्स की टीम ने करना है जिसके प्रमुख गृह मंत्री हैं। सेतिया के अनुसार यदि बासमती का न्यूनतम निर्यात मूल्य कम नहीं किया जाता तो इससे पाकिस्तान लाभ उठा कर बासमती के निर्यात क्षेत्र में भारत के मुकाबले ऊपर आ जाएगा।