पराली जलाने का मामला-सर्वोच्च् न्यायालय हुआ सख्त
खऱीफ की मुख्य फसल धान की कटाई के बाद पराली को खेतों में जलाये जाने का सिलसिला शुरू हो गया है। अभी धान के मंडीकरण में कई रुकावटें दरपेश हैं। ये रुकावटें हैरान-परेशान करने वाली हैं। चाहे सरकार ने एक अक्तूबर से मंडियों में धान खरीद करने की घोषणा तो की हुई है परन्तु अनेक कठिनाइयों के दृष्टिगत फसल अभी मंडियों में तो ज्यादा नहीं आई परन्तु कटाई के साथ-साथ खेतों में पराली को जलाने का सिलसिला शुरू हो गया है। 4 अक्तूबर तक इसके लगभग 200 मामले सामने आ चुके हैं, जिस कारण पर्यावरण प्रदूषित होना शुरू हो गया है। इस बार पराली जलाने के मामले पहले से भी अधिक बढ़ते दिखाई दे रहे हैं। पिछले वर्ष की तुलना में सितम्बर मास में इस वर्ष 12 गुणा अधिक ऐसे मामले रिकार्ड किए गए हैं। इसके साथ ही दीवाली कात्यौहार भी नज़दीक है। यदि आग लगाने का यह सिलसिला तब तक भी जारी रहा तो इसमें व्यापक स्तर पर की जाने वाली आतिशबाज़ी और पटाखों का धुआं भी शामिल हो जाएगा जो प्रदूषण की स्थिति को और भी खराब कर देगा।
पंजाब में इस वर्ष लगभग 32 लाख एकड़ में 180 लाख से 200 लाख टन धान पैदा होने की सम्भावना है। इसलिए व्यापक स्तर पर पराली भी पैदा होगी। यदि पराली को आग लगाने का सिलसिला ऐसे ही जारी रहा तो हालात बद से बदतर हो जाएंगे। पिछले दशक भर से कृषि वैज्ञानिक लगातार इस मामले पर लोगों को जागरूक करने का यत्न करते रहे हैं। उनके अनुसार धुएं के प्रदूषण से बढ़ने वाली सांस की बीमारी के साथ-साथ कई अन्य बीमारियां भी लगती हैं। ज़मीन की उपजाऊ शक्ति भी कम होती है तथा इसके सूक्ष्म जीव भी मर जाते हैं। इसके साथ ही पशुओं एवं पक्षियों का भी व्यापक स्तर पर नुकसान होता है। एक अनुमान के अनुसार एक एकड़ पराली जलाने से 33 प्रतिशत नाइट्रोजन, 14 किलोग्राम से अधिक फास्फोरस, 150 किलोग्राम पोटाशियम एवं 7 किलोग्राम के लगभग ज़िंक आदि नष्ट हो जाते हैं, परन्तु अनेक यत्नों के बावजूद इस घटनाक्रम को कम नहीं किया जा सका। इस बार भी कहा जा रहा है कि पराली के प्रबन्धन के लिए 500 करोड़ रुपए खर्च किए जा रहे हैं। मुख्य रूप में ये फंड संबंधित मशीनें खरीदने के लिए सब्सिडी के तौर पर दिए जाएंगे। एक अनुमान के अनुसार इस बार 14000 किसानों को ऐसी मशीनें उपलब्ध करवाई जाएंगी।
इसी समय सर्वोच्च न्यायालय की ओर से इस संबंध में की गई कड़ी टिप्पणियों ने सभी का ध्यान इस ओर आकर्षित किया है। सर्वोच्च न्यायालय ने इस संबंध में पंजाब एवं हरियाणा की सरकारों को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा है कि वे इस संबंध में आवश्यक कड़ी कार्रवाई नहीं कर रहीं तथा वायु की गुणवत्ता के प्रबन्धन संबंधी आयोग भी इस काम में विफल क्यों रहा है? यह भी कि दोनों ही सरकारें इस समस्या को खत्म करने संबंधी गम्भीर क्यों नहीं हैं? इस सब कुछ के बावजूद इन राज्यों से पराली को जलाने के समाचार लगातार आने शुरू हो गए हैं। अदालत ने यह भी कहा कि इन दोनों राज्यों में इस बार वर्ष 2022 की तुलना से ऐसी घटनाओं में वृद्धि हो रही है तथा इस संबंध में बनाई गई समितियां एवं किए गए प्रबन्ध पूरी तरह विफल साबित हुए हैं।
नि:संदेह पिछले कई दशकों से यह समस्या जारी है तथा ऐसी घटनाओं के बढ़ते जाने के बावजूद संबंधित प्रशासन सुस्त दिखाई देते हैं। इस चुनौती के प्रति गम्भीर होकर सभी संबंधित पक्षों को अपनी-अपनी ज़िम्मेदारी गम्भीरता से निभानी चाहिए तथा समाज को इसके प्रति सुचेत करते हुए इसमें हर हाल में अनुशासन लाने की ज़रूरत होगी, जो इस समय की बड़ी ज़रूरत कही जा सकती है।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द