भारत-कनाडा संबंधों को सुधारने की ज़रूरत

भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी एवं कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के मध्य लाओस की राजधानी वियनतियाने में भेंटवार्ता हुई, जहां दोनों देशों के राष्ट्र-प्रमुख आसियन शिखर सम्मेलन में भाग लेने गये थे। उम्मीद थी कि इस भेंटवार्ता से दोनों देशों के रिश्तों में सकारात्मक सुधार होगा, परन्तु हुआ इसके विपरीत, क्योंकि इस भेंटवार्ता के बाद जस्टिन ट्रूडो ने यह बयान दिया है कि उन्होंने भारत के प्रधानमंत्री से अपने देश के नागरिकों की सुरक्षा एवं कानून के शासन संबंधी बातचीत की है। उनका अभिप्राय यह था कि उन्होंने भारतीय प्रधानमंत्री के समक्ष हरदीप सिंह निज्जर की हत्या का मुद्दा उठाया है, जबकि भारत के विदेश मंत्रालय ने यह कहा है कि इस भेंटवार्ता के दौरान उपरोक्त मुद्दों एवं अन्य मामलों संबंधी कोई खास बातचीत नहीं हुई। इससे पहले प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी एवं जस्टिन ट्रूडो की जी-7 शिखर सम्मेलन के दौरान इटली में भी संक्षिप्त भेंट हुई थी। उस समय भी दोनों देशों के संबंधों के बीच जमी हुई बर्फ पिघल नहीं सकी थी।
भारत एवं कनाडा के संबंधों में पैदा हुआ बिगाड़ दोनों देशों के लोगों की समस्याओं में अनेक पक्षों से वृद्धि कर रहा है। खास तौर पर भारत से कनाडा में शिक्षा हासिल करने के उपरांत वहां बसने की इच्छा रखने वाले लाखों भारतीय विद्यार्थियों के सपने टूट गए हैं। दोनों देशों के आर्थिक संबंध भी बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं। विगत वर्ष 18 जून, 2023 को सरी में खालिस्तानी नेता हरदीप सिंह निज्जर की कुछ अज्ञात लोगों द्वारा हत्या किये जाने के बाद दोनों देशों के संबंधों में तनाव पैदा होना शुरू हो गया था, क्योंकि कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने कनाडा की संसद में दिए गये एक बयान द्वारा इस हत्या के लिए भारतीय एजेंसियों को ज़िम्मेदार ठहराया था, चाहे भारत की ओर से इन आरोपों का बार-बार खंडन भी किया गया था। इस मामले का बातचीत द्वारा कोई हल निकालने के स्थान पर दोनों देशों के नेता एक-दूसरे के विरुद्ध लगातार बयानबाज़ी करते रहे, जिस कारण संबंध और बिगड़ते गए। भारत की ओर से यह भी आरोप लगाये गये कि खालिस्तानी एवं अन्य भारत विरोधी संगठन निरन्तर कनाडा में स्थित भारतीय दूतावास के कर्मचारियों को धमकियां देते रहते हैं तथा हमला करने तक भी जाते हैं, परन्तु कनाडा सरकार उनकी गतिविधियों को रोकने के लिए कोई भी प्रभावी कदम नहीं उठाती। कनाडा के इस व्यवहार के दृष्टिगत भारत सरकार ने कनाडा से भारत आने वाले कैनेडियन नागरिकों के लिए कुछ समय तक वीज़ा की सेवाएं भी रोक दी थीं तथा भारत ने कैनेडियन दूतावास एवं कौंसिलखानों का भारत में स्टाफ कम करने के लिए भी कनाडा को विवश कर दिया था। इसकी प्रतिक्रिया-स्वरूप कनाडा ने भी भारत के कुछ कूटनीतिज्ञों को देश छोड़ने के लिए कह दिया था।
लगातार चलती आ रही इस तनातनी का सबसे अधिक शिकार कनाडा जाने वाले भारतीय विद्यार्थी हुए हैं। कनाडा ने भारत से कनाडा आने वाले विद्यार्थियों के वीज़ा में कटौती कर दी है तथा अन्य श्रेणियों के वीज़ा भी भारत से कम कर दिये हैं, चाहे इन बातों का संबंध कुछ सीमा तक कनाडा की आंतरिक स्थितियों से भी है। भिन्न-भिन्न श्रेणियों के तहत, जिन भारतीय नागरिकों ने वीज़ा अप्लाई किए हुए हैं, उनकी फाइलों पर काम भी बहुत धीमा कर दिया गया है। कनाडा सरकार कहती है कि उसके पास भारत में अब पूरा स्टाफ नहीं है, इस कारण ऐसा हो रहा है। कनाडा में शिक्षा हासिल कर रहे लाखों विद्यार्थियों के वर्क परमिटों के नवीकरण एवं शिक्षा पूरी करने वाले विद्यार्थियों को पी.आर. देने संबंधी भी सरकार ने हाथ बंद कर लिया है, जिस कारण कनाडा में भारतीय विद्यार्थियों का भविष्य असुरक्षित हो गया है और ब्रैम्पटन में इस कारण भारतीय विद्यार्थियों ने धरना भी लगा रखा है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि जिस समय हरदीप सिंह निज्जर की हत्या होने के बाद दोनों देशों के संबंधों में तनाव पैदा हुआ था, उस समय दोनों देशों के बीच मुक्त व्यापार समझौते के लिए बातचीत चल रही थी, वह प्रक्रिया भी वहीं ठप्प हो कर रह गई है। कनाडा भारत में विकास की अनेक परियोजनाएं चला रहा था और भारत में कैनेडियन कम्पनियां अधिक निवेश भी कर रही थीं। इस पर भी खराब संबंधों का बड़ा प्रभाव पड़ा है। 
इस संदर्भ में हमारा यह स्पष्ट मत है कि दोनों देशों तथा दोनों देशों के लोगों के हितों के दृष्टिगत अपने सभी मतभेद रचनात्मक माहौल में बातचीत के ज़रिये दूर करने चाहिएं और सभी द्विपक्षीय मामलों का तर्क-संगत समाधान ढूंढना चाहिए। भारत को देश-विदेश में कनाडा के हितों का ध्यान रखना चाहिए और इसी प्रकार कनाडा सरकार को कनाडा में तथा बाहर भारतीय हितों का पूरा-पूरा ध्यान रखना चाहिए। कनाडा की धरती का इस्तेमाल भारत विरोधी शक्तियों को करने की अनुमति हरगिज़ नहीं दी जानी चाहिए। ऐसी बुद्धिमानी से ही दोनों देशों के संबंधों में सकारात्मक सुधार आ सकता है। 

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