भारत-जर्मनी के प्रगाढ़ हो रहे सम्बन्धों के वैश्विक निहितार्थ
भारत और जर्मनी के द्विपक्षीय सम्बन्ध वैसे नहीं हैं जैसे भारत और फ्रांस के हैं, भारत और इज़रायल के हैं, भारत और जापान के हैं या फिर भारत और ऑस्ट्रेलिया के हैं। यही नहीं भारत और जर्मनी के आपसी सम्बन्ध भारत और अमरीका या भारत और इंग्लैंड जैसे भी नहीं हैं। इसलिए भारत और जर्मनी के द्विपक्षीय रिश्तों को मजबूत बनाना दोनों देशों के नेतृत्व के लिए बहुत जरूरी है। जर्मनी में भारत और भारतीयों की दिलचस्पी स्वाभाविक है। जर्मनी से भारत के प्रगाढ़ रिश्ते इसलिए भी ज़रूरी हैं ताकि पारस्परिक कारोबार बढ़े और वैश्विक मंचों पर भारत को एक और मित्र का साथ मिले, उसी तरह से जैसे कि फ्रांस देता आया है।
हालांकि पिछले दिनों भारत के दौरे पर आए जर्मनी के चांसलर ओलाफ शोल्ज और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच जो रणनीतिक बातचीत हुई है, उससे इस बात के संकेत मिल रहे हैं कि जर्मनी का नेतृत्व भी वैश्विक नज़ाकत और ज़रूरत को देखते हुए भारत के प्रति अपने पुराने रुख में बदलाव ला रहा है जिससे दोनों देशों को फायदा होगा। वास्तव में फोकस ऑन इंडिया और लेबर स्ट्रैटिजी नाम से जारी दो जर्मन रिपोर्ट्स में इस बात का ज़िक्र किया जा चुका है कि जर्मनी में भारतीय मूल के अढ़ाई लाख लोग हैं जिनमें छात्र और स्किल्ड प्रोफेशनल्स शामिल हैं। हालिया वर्षों में यह संख्या दुगुनी हुई है। जर्मनी के चांसलर ओलाफ शोल्ज ने इसे समझा है और भारत के दौरे के क्रम में कहा भी है कि दुनिया में हमें मित्रों और सहयोगियों की आवश्यकता है। जैसे भारत और जर्मनी हैं। जर्मनी में भारत से नजदीकी सम्बन्धों पर पार्टी लाइन से अलग सामूहिक राजनीतिक सोच सामने आई है क्योंकि दोनों देशों के बीच माइग्रेशन रिश्तों की अहम कड़ी बनकर उभरा है। इसलिए दोनों देशों के बदलते और नव प्रगाढ़ हो रहे द्विपक्षीय सम्बन्धों के अंतर्राष्ट्रीय निहितार्थ को समझने की ज़रूरत है।
पहला, भारत और जर्मनी के बीच 18 दस्तावेज़ों पर साझा सहमति बनी है। जिसमें म्युचुअल लीगल असिस्टेंट इन क्रिमिनल मैटर्स, क्लासिफाइड इन्फॉर्मेशन, ग्रीन हाइड्रोजन रोड मैप, टेक्नोलॉजी और इनोवेशन पर रोड मैप, श्रम और रोज़गार, अडवांस मटीरियल्स में रिसर्च एंड डिवेल्पमेंट को लेकर सहयोग, ग्रीन अर्बन मोबिलिटी पार्टनरशिप के साथ स्किल डिवेल्पमेंट और वोकेशनल एडुकेशन एंड ट्रेनिंग में सहयोग सहमति बनी है जिससे न सिर्फ दोनों देश लाभान्वित होंगे बल्कि समकालीन विश्व के देशों को भी इससे फायदा पहुंचेगा क्योंकि भारत हमेशा तीसरी दुनिया के देशों यानी ग्लोबल साउथ की बात करता आया है।
वहीं भारत दौरे पर आए जर्मनी के चांसलर और नरेंद्र मोदी ने एक साझा प्रेस कान्फ्रैंस में जिस तरह से यूक्रेन और पश्चिम एशिया में जारी संघर्ष को द्विपक्षीय चिंता का विषय बताया और वैश्विक संघर्षों से निपटने के लिए अंतर्राष्ट्रीय कानूनों पर आधारित राजनीतिक समाधान की वकालत की, उसका अपना कूटनीतिक महत्व है। वहीं, उनका यह कहना कि 20वीं सदी में स्थापित वैश्विक मंच 21वीं सदी की चुनौतियों से निपटने में सक्षम नहीं हैं। इसलिए सुरक्षा परिषद सहित विभिन्न बहुपक्षीय संस्थानों में सुधार की आवश्यकता है।
एक बात और, समसामयिक दुनिया जिस तरह से तनाव, संघर्ष और अनिश्चितता के दौर से गुजर रही है, उसके दृष्टिगत भी हिन्द प्रशांत क्षेत्र में कानून के शासन और नौवहन की स्वतंत्रता को लेकर गम्भीर चिंताएं हैं। ऐसे समय मे भारत और जर्मनी के बीच रणनीतिक साझेदारी मजबूत सहारे के रूप में उभरी है। वहीं, प्रधानमंत्री मोदी ने जर्मनी से घोषित ‘फोकस ऑन इंडिया’ रणनीति का स्वागत करते हुए कहा है किए ‘मुझे खुशी है कि अपनी साझेदारी को विस्तार देने और बढ़ाने के लिए हम कई नई और महत्वपूर्ण पहल कर रहे हैं। क्रिटिकल और इमर्जिंग टेक्नॉलजी, स्किल डिवेल्पमेंट और इनोवेशन पर सरकार की अप्रोच को लेकर सहमति बनी है। इससे एआई, सेमीकंडक्टर और क्लीन एनर्जी जैसे क्षेत्रों में सहयोग को बल मिलेगा। वहीं, रक्षा क्षेत्रों में बढ़ता सहयोग गहरे आपसी विश्वास का प्रतीक है।
बहरहाल, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जर्मनी की कम्पनियों को देश में आमंत्रित करते हुए ठीक ही कहा कि निवेश के लिए भारत से बेहतर कोई जगह नहीं है और देश की विकास गाथा का हिस्सा बनने का यह सही समय है। उन्होंने ‘एशिया पैसिफिक कॉन्फ्रैंस ऑफ जर्मन बिजनेस’ के 18वें सम्मेलन में कहा कि विदेशी निवेशकों के लिए भारत की विकास गाथा का हिस्सा बननाए ‘मेक इन इंडिया’ और ‘मेक फार द वर्ल्ड’ पहल में शामिल होने का यह सही समय है। जर्मनी ने भारत के कुशल कार्य बल में जो विश्वास जताया है, वह अद्भुत है। इस यूरोपीय देश ने कुशल भारतीय कार्य बल के लिए वीजा की संख्या 20,000 से बढ़ाकर 90,000 करने का निर्णय लिया है।
मोदी ने आगे यह भी कहा कि भारत वैश्विक व्यापार और मैन्युफैक्चरिंग का केंद्र बन रहा है। यह आज डेमोक्रेसी, डेमोग्राफी, डिमांड और डेटा के मजबूत स्तंभों पर खड़ा है। भारत सड़कों और बंदरगाहों में रेकॉर्ड निवेश कर रहा है। साथ ही हिंद-प्रशांत क्षेत्र और दुनिया के भविष्य के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। उन्होंने यह भी कहा कि जर्मन प्रतिनिधिमंडल को भारत की संस्कृतिए भोजन और खरीदारी का भी आनंद लेना चाहिए ताकि दोनों देश और उसके लोग एक दूसरे से भावनात्मक रूप से जुड़ सकें।
बकौल मोदी, भारत और जर्मनी के बीच वर्तमान में द्विपक्षीय व्यापार 30 अरब डॉलर से अधिक है। जर्मनी की कई कम्पनियां भारत में काम कर रही हैं जबकि भारतीय कम्पनियां भी जर्मनी में अपनी उपस्थिति बढ़ा रही हैं। वहीं, चांसलर शोल्ज ने प्रधानमंत्री मोदी की मौजूदगी में कहा कि हमारी सरकार भारत और 27 देशों के यूरोपीय संघ के बीच प्रस्तावित मुक्त व्यापार समझौते की बातचीत में तेज़ी लाने की कोशिश कर रही है। अगर मिलकर काम करें तो यह काम महीनों में पूरा हो सकता है। हमारी सरकार ने हाल में कुशल भारतीय कर्मचारियों को जर्मनी बुलाने की रणनीति पर सहमति जताई है। इससे स्पष्ट है कि कारोबारी समझौते पर तेज़ी लाने की कोशिश में जर्मनी है, जो सराहनीय कहा जा सकता है। यह भारत के दूरगामी हित में है। यदि जर्मनी से हमारे सम्बन्ध फ्रांस की भांति प्रगाढ़ होते हैं तो इससे यूरोपीय संघ के साथ भारत के रिश्ते को जीवंतता मिलेगी और चीन व अरब देशों पर मनोवैज्ञानिक दबाव भी पड़ेगा। (अदिति)