आतंकवाद की बड़ी चुनौती फिर उभरी

एक बार फिर जम्मू-कश्मीर कड़ी परीक्षा में से गुज़रने लगा है। अभी पिछले माह ही इस केन्द्र शासित प्रदेश के चुनाव हुए थे और इससे पहले महीनों तक चुनावों संबंधी गतिविधियां चलती रही थीं। इनमें मुख्य तौर पर इस क्षेत्र की स्थानीय पार्टियां, नैशनल कांफ्रैंस और पीपुल्स डैमोक्रेटिक पार्टी के अलावा कांग्रेस और भाजपा ने भी शमूलियत की थी। कुछ और स्थानीय पार्टियों ने भी इनमें हिस्सा लिया था।
चाहे कि चुनावों के दौरान इस बात का की आशंका बनी रही थी कि आतंकवादी संगठन इनमें खलल डाल सकते हैं और इन आशंकाओं को सच करते हुए इन आतंकवादियों ने अपनी कार्रवाइयां जारी भी रखी थीं, लेकिन उस समय इन कार्रवाइयों का केन्द्र जम्मू के पहाड़ी इलाके थे और घाटी के अन्य क्षेत्रों में चुनावों के दौरान कोई बड़ी गड़बड़ होने की सूचनाएं नहीं मिली थीं। इसके साथ ही जिस प्रकार के उत्साह के साथ बड़ी संख्या में लोगों ने इन चुनावों में हिस्सा लिया था, उससे यह प्रभाव स्पष्ट रूप में मिलता था कि इस क्षेत्र के लोग, लोकतांत्रिक प्रक्रिया को पहल देने के समर्थक हैं और इसके साथ ही वे अपने राज्य का हर पक्ष से विकास चाहते हैं। 
जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनावों के बाद नैशनल कांफ्रैंस और कांग्रेस ने मिल कर सरकार बनाई और उमर अब्दुल्ला को नई सरकार में मुख्यमंत्री बनाया गया। इससे पहले उमर अब्दुल्ला के दादा श़ेख अब्दुल्ला और उसके पिता फारूक अब्दुल्ला भी जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। फारूक अब्दुल्ला के पिता और उमर के दादा श़ेख अब्दुल्ला का देश की आज़ादी से पहले भी और बाद में भी जम्मू-कश्मीर में बड़ा प्रभाव माना जाता था। इसलिए उमर के मुख्यमंत्री बनने से यह अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता था कि वह इस क्षेत्र को अच्छी सरकार देने में कामयाब होंगे। इसके साथ ही यह उम्मीद भी जाग उठी थी कि जल्द ही जम्मू-कश्मीर को दोबारा राज्य का दर्जा मिल जाएगा। उमर अब्दुल्ला ने अब तक राजनीति में अपनी अच्छी सोच और परिपक्वता का सबूत दिया है। पीपुल्स डैमोक्रेटिक पार्टी की प्रमुख महबूबा म़ुफ्ती ने भी 2014 के विधानसभा चुनावों के बाद भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाई थी लेकिन वह बहुत कामयाब नहीं हो सकी थी। वर्ष 2019 में केन्द्र की भाजपा सरकार ने जम्मू-कश्मीर को विशेष अधिकार देने वाली धारा-370 को खत्म करके लद्दाख तथा जम्मू-कश्मीर को दो अलग-अलग केन्द्र-शासित प्रदेश बनाने की घोषणा कर दी थी। 
अब नई सरकार बनने के बाद गाड़ी पटरी पर आने लगी थी। उमर अब्दुल्ला ने मुख्यमंत्री के पद की कुर्सी सम्भालते ही यह बयान दिया था कि वह जम्मू-कश्मीर को पुन: राज्य का दर्जा दिलाने के लिए शीघ्र ही केन्द्र के पास पहुंच करेंगे और उनकी ओर से अपने मंत्रिमंडल से प्रस्ताव पारित करवा कर ऐसा किया भी गया। चुनावों के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तथा केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी जल्द ही इस केन्द्र-शासित क्षेत्र को राज्य में बदलने की घोषणाएं की थीं। इस तरह की स्थिति को देखते हुए ऐसा प्रभाव भी मिल रहा था कि आतंकवादी संगठन घाटी में बेहद सीमित होकर रह गए हैं और पाकिस्तान भी इस मामले में पूरी तरह हांफ चुका है, परन्तु सरकार बनने के एक माह से भी कम समय में पुन: आतंकवादी गतिविधियों का बढ़ना बड़ी चिन्ता का कारण बन रहा है। जम्मू-कश्मीर में 16 अक्तूबर को नई सरकार का गठन हुआ था और 18 अक्तूबर को घाटी के शोपियां ज़िले में एक बिहारी मज़दूर को मार दिया गया था। इसके दूसरे ही दिन कश्मीर घाटी के गंदरबल ज़िले में एक सुरंग बनाने के लिए काम कर रहे एक निजी कम्पनी के कर्मचारियों पर आतंकवादियों द्वारा हमला किया गया, जिसमें एक कश्मीरी डाक्टर सहित 7 व्यक्ति मारे गए। इस घटना के 4 दिन बाद अर्थात 24 अक्तूबर को घाटी के बारामूला ज़िले में आतंकवादियों ने दो सैनिकों को तथा उनके दो सहायकों को गोलियां मार कर शहीद कर दिया था, और उसी दिन तराल क्षेत्र में एक प्रवासी मज़दूर को मार दिया गया था। 
इस माह पहली नवम्बर को बडगाम ज़िले में आतंकवादियों ने दो प्रवासी मज़दूरों को मार दिया था। इस घटना के अगले दिन अनंतनाग तथा श्रीनगर में सुरक्षा बलों का आतंकवादियों से मुकाबला हुआ, जिसमें सुरक्षा बलों के जवानों ने 3 आतंकवादियों को मार गिराया था। अब गत रविवार अर्थात 3 नवम्बर को श्रीनगर के एक व्यस्त क्षेत्र में आतंकवादियों द्वारा फैंके गए ग्रेनेड में 12 लोग घायल हुए हैं। उत्पन्न हुई यह स्थिति जहां उमर सरकार के लिए एक बड़ी समस्या है, वहीं केन्द्र सरकार के लिए भी यह एक बहुत बड़ी चुनौती बन गई है, जिसे दोनों सरकारों को गम्भीरता से लेना चाहिए। केन्द्र सरकार को जम्मू-कश्मीर की नई सरकार को साथ लेकर आतंकवादियों का सख्ती से मुकाबला करना चाहिए, ताकि लोकतांत्रिक ढंग से अस्तित्व में आई नई सरकार निर्विघ्न इस क्षेत्र के विकास हेतु अपने कार्यों को जारी रख सके।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द