साइबर सैलों में कम्प्यूटर विशेषज्ञों का अभाव

देश में पिछले दो दशक से कम्प्यूटर शिक्षा के क्षेत्र में व्यापक बढ़ोत्तरी हुई है। एमबीबीएस और बीटेक, एमटेक की शिक्षा के बाद कम्प्यूटर शिक्षा का ग्राफ  तेजी से बढ़ा है। बीटेक, एमटेक के बाद रोज़गार की तलाश में घूमती बेरोज़गारों की फौज को देखकर नई पीढ़ी के युवाओं ने यह सोचकर कि सरकारें तेजी से हाईटेक हो रही है, ब्लाक स्तर तक कम्प्यूटरीकरण हो रहा है, तो इस क्षेत्र में रोज़गार के अवसर अत्याधिक आएगे। लेकिन एक लम्बे अरसे से देखा जा रहा है कि इन्टर और गेजुएट, पोस्ट गेजुएट डिग्री के साथ ट्रिपल सी, ओ लेबल, ए लेबल, बीसीए, एमसीए करने के बाद भी इन विशेष शिक्षा के नाम पर किसी सरकार ने कोई ऐसी पोस्टें नहीं निकाली जिससे यह महसूस किया जाता कि सरकारों को कम्प्यूटर विशेषज्ञों की ज़रूरत है जबकि वास्तविकता यह है कि लगभग हर विभाग में अब कम्प्यूटर विशेषज्ञों की आवश्यकता है। खासतौर से सेना, सचिवालय और पुलिस के साइबर सेलों में इन कम्प्यूटर विशेषज्ञों की ज़रूरत को तो नकारा नहीं जा सकता। ऐसे में अगर पिछले दस से बीस वर्षों में निकाली गई पोस्टों पर ध्यान दिया जाए तो उनकी अर्हता में वही पुराना ढर्रा ही अपनाया जा रहा है। ऐसा भी नहीं है कि अर्हता के साथ अगर प्रतिभागी या आवेदक के पास कम्प्यूटर की अतिरिक्त डिग्री या डिप्लोमा हो तो उसे कोई अतिरिक्त लाभ दिये जाने का प्राविधान नहीं है जबकि डिजीटल इंडिया शायद प्रधानमंत्री, वित्त मंत्री, मुख्यमंत्रियों का नजरिया और बयान बहुत ही विस्तारित रहा है। 
जबकि  कम्प्यूटर शिक्षा का महत्व आज के आधुनिक युग में किसी से छिपा नहीं है। जैसे-जैसे तकनीक तेजी से उन्नति कर रही है, वैसे-वैसे कम्प्यूटर का उपयोग हर क्षेत्र में बढ़ता जा रहा है। शिक्षा का क्षेत्र भी इससे अछूता नहीं है। वास्तव में, कम्प्यूटर शिक्षा अब न केवल एक आवश्यकता बन गई है, बल्कि यह हमारे बच्चों के भविष्य की नींव भी है। वैसे तो कम्प्यूटर शिक्षा का इतिहास 20वीं सदी के मध्य से प्रारंभ होता है। 1950 और 1960 के दशक में, कम्प्यूटर बड़े और महंगे उपकरण हुआ करते थे, जो मुख्य रूप से वैज्ञानिक अनुसंधान और सैन्य उद्देश्यों के लिए उपयोग किए जाते थे। उस समय, कम्प्यूटर विज्ञान और प्रोग्रामिंग की शिक्षा केवल कुछ चुनिंदा विश्वविद्यालयों में ही उपलब्ध थी। छात्रों को प्रोग्रामिंग भाषाओं जैसे कि फॉर्ट्रान और कोबोल सिखाई जाती थी। 1970 के दशक में माइक्रोप्रोसेसरों के आविष्कार के साथ, कम्प्यूटर छोटे, सस्ते और अधिक सुलभ हो गए। इस अवधि में, कम्प्यूटर शिक्षा का दायरा बढ़ा और यह स्कूलों और कॉलेजों में पहुंच गई। 1980 के दशक में, व्यक्तिगत कम्प्यूटरों की शुरुआत हुई, जिसने कम्प्यूटर शिक्षा को और भी व्यापक बना दिया। 1990 के दशक में इंटरनेट का आगमन हुआ। जिसने कम्प्यूटर शिक्षा में क्रांति ला दी। इंटरनेट के माध्यम से जानकारी की पहुंच और संसाधनों की उपलब्धता ने शिक्षण और सीखने के तरीकों को बदल दिया। इस दशक में, मल्टीमीडिया उपकरणों का उपयोग भी बढ़ा, जिससे शिक्षा अधिक इंटरेक्टिव और आकर्षक हो गई। कम्प्यूटर शिक्षा में अब वेब डिजाइनिंग, ग्राफिक डिजाइनिंग, और एनिमेशन जैसे नए विषय शामिल होने लगे। छात्रों को माइक्रोसॉफ्ट ऑफिस, ईमेल, और इंटरनेट ब्राउजिंग जैसे बुनियादी कम्प्यूटर कौशल भी सिखाए जाने लगे। 2010 के दशक में स्मार्टफोन, टैबलेट, और अन्य मोबाइल उपकरणों के आगमन ने कम्प्यूटर शिक्षा को और भी अधिक सुलभ बना दिया। अब शिक्षा केवल कम्प्यूटर लैब तक सीमित नहीं रही, बल्कि यह किसी भी समय और कहीं भी उपलब्ध हो गई। इस अवधि में, ऑनलाइन लर्निंग प्लेटफॉर्म्स, ई-लर्निंग टूल्स, और वर्चुअल क्लासरूम्स ने शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मशीन लर्निंग, और डेटा साइंस जैसे उन्नत विषय कम्प्यूटर शिक्षा का हिस्सा बन गए। 2024 के आते तो मानों कम्प्यूटर शिक्षा जीवन का एक हिस्सा बन गई या फिर यू कहा जाए कि इसके बिना ज्ञान अधूरा लगने लगा।
अब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मशीन लर्निंग, और बिग डेटा जैसी तकनीकों के आगमन से कम्प्यूटर शिक्षा के दायरे में और भी विस्तार हो चुका है। रोबोटिक्स, साइबर सुरक्षा, और इंटरनेट ऑफ  थिंग्स जैसे नए क्षेत्रों में भी कम्प्यूटर शिक्षा का महत्व बढ़ा रहा है । अब फिर वही सवाल समाने आता है कि अगर कम्प्यूटरीकरण का इतना व्यापक स्तर है तो केन्द्र एवं राज्य सरकार के सौ से अधिक विभागों में रिक्त एवं जरूरत के सापेक्ष सृजित पदों पर कम्प्यूटर शिक्षा प्राप्त कर चुके युवाओं के लिए रिक्तियों का अभाव क्यों है। सेना से लेकर पुलिस तक में अब कम्प्यूटर विशेषज्ञों की अति आवश्यकता है। साइबर क्राइम के देश भर में हज़ारों मामले सिर्फ इसीलिए लम्बित है क्योकि साइबर सेलों तक में कम्प्यूटर विशेषज्ञों का अभाव है। केन्द्र और राज्य सरकारों ने कम्प्यूटरीकरण के नाम पर हर विभागों एवं कार्यालयों में थोक भाव में कम्प्यूटर लगा डाले लेकिन विशेषज्ञ अर्हता वाले कर्मचारी न होने के कारण वे कम्प्यूटर या तो टाईपराइटर बन कर रह गए या फिर चादर से ढाक दिये गए। यही नहीं विभागों में कम्प्यटूर सैल बनाए गए, लेकिन उन सैलों के प्रभारी भी कम्प्यूटर शिक्षा से न हो कर अन्य शिक्षा के विशेषज्ञ है। 
कुल मिलाकर देखा जाए तो आने वाले समय में इंजीनियरिंग की तरह देश में कम्प्यूटर विशेषज्ञों की एक बड़ी फौज बेरोज़गारी की कतार में खड़ी होगी और सरकार ज़रूरत होने के बावजूद उनका उपयोग नही कर पाएगी। वैसे वक्त का तकाजा है कि अब केन्द्र और राज्य सरकारों को हर विभाग में प्रतिशत के आधार पर कम्प्यूटर विशेषज्ञों की भर्ती के लिए विशेष अभियान चलाना चाहिए। 

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