गेहूं के काश्तकार किसानों की व्यस्तता

अच्छा उत्पादन लेने के लिए पी.ए.यू. द्वारा गेहूं की काश्त के लिए 1 नवम्बर से 15 नवम्बर का समय आदर्शक सिफारिश किया गया है। लम्बे समय में पकने वाली पुरानी रिलीज़ हुईं गेहूं की किस्मों की बिजाई अक्तूबर के आखिर से शुरू किए जाने की सिफारिश की गई है, परन्तु मौसम व वातावरण में बदलाव आ रहा है। आधे नवम्बर के बाद का समय भी पहली किस्मों के मुकाबले पकने को कम समय लेने वाली हाल ही में रिलीज़ की गईं किस्मों के लिए इस वर्ष बहुत उचित रहा है। आजकल धुंध नहीं पड़ रही। धुआं बहुत कम हो गया है और गेहूं की बिजाई के लिए तापमान भी ठीक है। पी.ए.यू. सम्मानित बीज पैदा करने वाला प्रगतिशील किसान बलबीर सिंह जड़िया धर्मगढ़ (अमलोह) अपनी पूरी 400 एकड़ (जिसमें 320 एकड़ दूसरे किसानों की ज़मीन है) पर गेहूं की बिजाई आजकल 22 नवम्बर से 3 दिसम्बर के बीच करेगा। 
स्टेट अवार्डी तथा पंजाब सरकार से कृषि कर्मन पुरस्कार लेने वाले प्रगतिशील किसान राजमोहन सिंह कालेका बिशनपुरा छन्ना कहते हैं कि कम समय में पकने वाली किस्में विकसित होने के बाद तथा मौसम एवं पर्यावरण में परिवर्तन आने से पी.ए.यू. की रबी की फसलों के लिए गेहूं संबंधी सिफारिशों की पैकेज आफ प्रैक्टिसीज़ के बुकलेट में प्रत्येक वर्ष संशोधन करने की ज़रूरत है। जिन किसानों ने अक्तूबर में गेहूं की बिजाई हैपी सीडर या सुपरसीडर से कर ली, उनमें से अधिकतर को सुंडी की समस्या दरपेश आ रही है। पराली को आग न लगाने के कारण उन्होंने धान को एस.एम.एस. कम्बाइन से कटवा कर सुपरसीडर से गेहूं की बिजाई कर ली। उनके ऐसे खेतों में अधिकतर हालतों में गेहूं की जर्मीनेशन भी बहुत कम हुई है। अब कई किसान उसे नष्ट कर दोबारा गेहूं की बिजाई करने के लिए मजबूर हैं। समय पर गेहूं की बिजाई के लिए की गईं सिफारिशों में पी.बी.डब्ल्यू.-826, पी.बी.डब्ल्यू.-869, पी.बी.डब्ल्यू.-766, डी.बी.डब्ल्यू.-222, डी.बी.डब्ल्यू.-370, डी.बी.डब्ल्यू.-371, डी.बी.डब्ल्यू.-372, एच.डी.-3226 तथा उन्नत पी.बी.डब्ल्यू.-343 किस्में शामिल हैं। मौसम में आए बदलाव के कारण इन किस्मों की बिजाई अब भी की जा सकती है। इस वर्ष काफी बड़े रकबा पर दिसम्बर में बिजाई होगी। पिछेती बिजाई के लिए डी.बी.डब्ल्यू-752, पी.बी.डब्ल्यू-771, पी.बी.डब्ल्यू.-751 तथा एच.डी.-3298 जैसी किस्मों में से चुना जा सकता है।
अधिक उत्पादन लेने के लिए किसानों को खाद पी.ए.यू. की सिफारिशों के अनुसार डालने की सलाह दी जाती है। यदि ज़मीन की परख न करवाई हो तो मध्यम ज़मीनों में बिजाई के समय 55 किलो डी.ए.पी. या 155 किलो सुपरफास्फेट या 125 किलो नाइट्रोफास्फेट प्रति एकड़ डाल कर बिजाई करनी चाहिए। फास्फोरस तत्व के लिए सुपरफास्फेट खाद डाली हो तो 20 किलो यूरिया प्रति एकड़ साथ डाल देना चाहिए। गेहूं में बिजाई के बाद यूरिया (निम्नलिप्त) 110 किलो प्रति एकड़ डालने की सिफारिश की गई है, जबकि अधिकतर किसान 200 किलो से भी अधिक डाल रहे हैं। पहले तथा दूसरे पानी के साथ नवम्बर में बोई गई गेहूं को 45 किलो तथा आधे दिसम्बर के बाद बोई गई गेहूं को 35 किलो प्रति एकड़ यूरिया डालना ज़रूरी है। कलराठी ज़मीनों में 25 प्रतिशत अधिक यूरिया डाल देना चाहिए।  
फसल की बिजाई के शीघ्र बाद तथा फिर पकते समय दीमक बड़ा नुकसान करता है। इसके हमले से पौधे सूख जाते हैं। इसकी रोकथाम के लिए कोई भी दवाई जो पी.ए.यू. द्वारा सिफारिश की गई हो, इस्तेमाल कर लेनी चाहिए। गेहूं की फसल में से नदीनों को गायब करना बहुत ज़रूरी होता है। नदीनों की रोकथाम करने के लिए दो गुडाई, पहली गुडाई गेहूं को पहला पानी लगाने से पहले तथा दूसरी गुडाई वत्तर (पानी देने के बाद ज़मीन कृषि योग्य होना) आने पर कर देनी चाहिए या फिर किसी प्रभावशाली नदीन नाशक का इस्तेमाल करके गुल्ली डंडा नदीनों को नाश कर देना चाहिए। गुल्ली डंडा तथा जंगली जोंधर की रोकथाम के लिए नदीन नाशकों का इस्तेमाल करना ज़रूरी है। बिजाई के समय नदीन उगने से पहले सुटोंप, दोस्त जैसे नदीन नाशक इस्तेमाल करने चाहिएं। ये नदीन नाशक इस्तेमाल करने के लिए ज़मीन में काफी वत्तर या नमी का होना बहुत ज़रूरी है। बिजाई के समय नदीन नाशकों के छिड़काव के लिए लक्की सीड ड्रिल इस्तेमाल करने की ज़रूरत है। पहली सिंचाई से पहले (नदीन उगने के बाद), पहली सिंचाई के बाद (नदीन उगने के बाद) पी.ए.यू. द्वारा सिफारिश किए गए नदीन नाशकों में से किसी का भी इस्तेमाल किया जा सकता है। गुल्ली डंडे को काबू करना बहुत ज़रूरी है। यदि इसे काबू न किया जाए तो यह 60 प्रतिशत तक गेहूं का उत्पादन कम कर सकता है।

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