बांग्लादेश में इस्कॉन को लेकर हंगामा है क्यों बरपा ?

बांग्लादेश में चट्टोगांव स्थित कुंडलीधाम आश्रम के दो अन्य सदस्यों आदिनाथ प्रभु व रंगानाथ दास को गिरफ्तार कर लिया गया है, जब वह राजद्रोह के आरोप में पहले से ही जेल में बंद इस्कॉन के पूर्व पुजारी चिन्मॉय कृष्ण दास के लिए भोजन लेकर जा रहे थे। ऐसा आश्रम के प्रवक्ता प्रोफेसर कौशल बरुण चक्रबर्ती का कहना है। लेकिन स्थानीय पुलिस ने आश्रम के इन दोनों सदस्यों की गिरफ्तारी की पुष्टि नहीं की है। गौरतलब है कि 25 नवम्बर, 2024 को जब बांग्लादेश सम्मिलितों सनातनी जागरण जोते (जो अल्पसंख्यक धार्मिक समितियों का अम्ब्रेला संगठन है) के प्रवक्ता चिन्मॉय कृष्ण दास चिट्टागांव जा रहे थे, तो उन्हें ढाका में गिरफ्तार कर लिया गया था। उन पर राजद्रोह का आरोप है कि 25 अक्तूबर 2024 को एक रैली के दौरान उन्होंने राष्ट्रध्वज का तथाकथित अपमान किया। कुंडलीधाम आश्रम के प्रमुख चिन्मॉय कृष्ण दास की गिरफ्तारी का विरोध कर रहे उनके समर्थकों और सुरक्षाबलों के बीच हिंसक झड़पें हुईं, जिनमें एक सरकारी वकील की मौत हो गई। जैसे ही यह अफवाह फैली कि वकील की हत्या पुजारी के समर्थकों ने की है, तो अनेक जगहों पर दंगे भड़क उठे और तीन मंदिरों में तोड़-फोड़ की गई। दंगों और वकील की हत्या के आरोप में 18 से अधिक व्यक्तियों को गिरफ्तार किया गया है। 
नई दिल्ली ने ढाका से कहा है कि वह अल्पसंख्यकों सहित अपने सभी नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करे और ढाका ने इस बात से इंकार किया है कि बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर कहीं भी ‘व्यवस्थित हमले’ हो रहे हैं। बांग्लादेश के विदेशी मामलों के सलाहकार मुहम्मद तौहीद हुसैन ने इस हकीकत को स्वीकार किया है कि 5 अगस्त, 2024 को शेख हसीना को प्रधानमंत्री पद से हटाने के बाद ढाका के नई दिल्ली से संबंधों में परिवर्तन आया है। चिन्मॉय कृष्ण दास की ज़मानत पर 3 दिसम्बर, 2024 को अदालत में सुनवायी होगी। चिन्मॉय कृष्ण दास पुन्दारिक धाम के पूर्व प्रमुख हैं, जोकि चिट्टागांव का धार्मिक केंद्र है और श्री कृष्ण व भगवान जगन्नाथ की पूजा के लिए विख्यात है। पुन्दारिक इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर कृष्ण कांशसनेस (इस्कॉन) का भी केंद्र है और दास इस संगठन से कुछ समय पहले तक जुड़े हुए थे। 
शेख हसीना की सरकार के गिरने के बाद जब अल्पसंख्यक समुदायों और सूफी दरगाहों पर हमले बढ़ने लगे तो इनका विरोध करने के कारण दास सुर्खियों में आ गये। उन्होंने ढाका, चिट्टागांव व रंगपुर में तीन बड़ी रैलियां आयोजित कीं और अल्पसंख्यक अधिकारों के पक्ष में जोशीले भाषण दिये। इससे उनका कद बढ़ गया और अनेक राजनीतिक नेता उनसे मुलाकात करने लगे। उनके खिलाफ केस बीएनपी के पूर्व स्थानीय नेता फिरोज़ खान ने दर्ज कराया, यह आरोप लगाते हुए कि चिट्टागांव की रैली में बांग्लादेश के राष्ट्रीय ध्वज से ऊपर भगवा झंडा फहराया गया, जोकि राष्ट्रध्वज का अपमान है। बांग्लादेश में हिन्दू व बौद्ध जनसंख्या प्राचीन है और हाल के दशकों में ईसाई समुदाय की संख्या में भी इज़ाफा हुआ है। सैन्य शासन वर्षों की पृष्ठभूमि में यह समूह एकजुट हुए। जब 1991 में खालिदा ज़िया प्रधानमंत्री बनीं तो यह अल्पसंख्यक समूह बांग्लादेश हिन्दू बौद्ध ईसाई ओइक्यो परिषद् (बीएचबीसीओपी) के तहत एकजुट हुए। इस संगठन के सार्वजनिक चेहरे मोनिंद्र कुमार नाथ के अनुसार धार्मिक अल्पसंख्यकों के विरुद्ध भेदभाव व अत्याचार की घटनाओं में पिछले कुछ वर्षों के दौरान निरंतर वृद्धि हुई है। लगातार आग्रह के बावजूद न तो हसीना सरकार ने और न ही उससे पहले की सरकारों ने कोई मदद की। इससे अल्पसंख्यकों के युवा सदस्यों में कुंठा उत्पन्न हुई है और दास जैसे नेताओं को उभरने का अवसर मिला है।
बांग्लादेश इस्कॉन के महासचिव चारू चंद्र दास ने 28 नवम्बर, 2024 को एक प्रेस कांफ्रैंस में जानकारी दी कि चिन्मॉय कृष्ण दास सहित इस्कॉन के अनेक एक्टिविस्ट पुजारियों को उनके पदों से हटा दिया गया है। ‘यह बात स्पष्ट कर दी गई थी कि उनकी गतिविधियां इस्कॉन का प्रतिनिधित्व नहीं करती हैं।’ चारू ने यह भी कहा कि इस्कॉन से सरकारी वकील की हत्या को जोड़ना ‘गलत’ है। ‘हम स्पष्ट करना चाहते हैं कि इस त्रासदीपूर्ण घटना से बांग्लादेश इस्कॉन का कोई संबंध नहीं है।’ इस्कॉन का बेस पश्चिम बंगाल के मायापुर में है और पश्चिम बंगाल व त्रिपुरा में इसके बड़ी संख्या में समर्थक हैं, जो बांग्लादेश के घटनाक्रम के विरोध में आंदोलन कर रहे हैं; क्योंकि उन्हें लगता है कि बांग्लादेश इस्कॉन को निशाने पर लिया जा रहा है। 
मुहम्मद यूनुस का कहना है कि उनकी अंतरिम सरकार का नेतृत्व साफ सुथरी छवि वाले एक्टिविस्ट व मानवाधिकार के पक्षधर कर रहे हैं, जिनका अल्पसंख्यकों के विरुद्ध भेदभाव करने का कोई इरादा नहीं है। लेकिन ज़मीनी हकीकत यह है कि अल्पसंख्यकों के पूजास्थलों पर हमलों की रिपोर्टें निरंतर प्रकाश में आ रही हैं। यह इस वजह से भी हो रहा है, क्योंकि सरकार कानून व्यवस्था स्थापित नहीं कर सकी है और बहुविध समाज में शांति व भाईचारा कायम करने वाली एजेंसीज को नियंत्रित नहीं कर सकी है। बीएचबीसीओपी ने यूनुस सरकार के इरादों पर चिंता व्यक्त की है, विशेषकर ‘सुधारों’ के संदर्भ में। अंतरिम सरकार ने 2011 के बांग्लादेश संविधान में 15वें संशोधन की वैधता पर प्रश्न उठाये हैं, जिससे ‘धर्मनिरपेक्षता’ व ‘समाजवाद’ शब्द संविधान में फिर से शामिल किये गये, जोकि पहली बार बांग्लादेश के संविधान में 1972 में सम्मलित किये गये थे, लेकिन बाद में निकाल दिये गये थे। अब ‘संवैधानिक सुधार’ के नाम पर अंतरिम सरकार के अटॉर्नी जनरल मुहम्मद असद-उज़-ज़मान का कहना है, ‘समाजवाद व धर्मनिरपेक्षता उस राष्ट्र की वास्तविकता को व्यक्त नहीं करते हैं जिसकी 90 प्रतिशत आबादी मुस्लिम है।’ यह टिप्पणी इस अंदेशे का संकेत है कि अंतरिम सरकार बांग्लादेश के धर्मनिरपेक्ष संविधान को खत्म करना चाहती है। 
इसमें कोई दो राय नहीं हैं कि यूनुस सरकार की वजह से ढाका और नई दिल्ली के रिश्ते वैसे नहीं रहे हैं जैसे कि हसीना सरकार के दौर में थे। ढाका इस बात से नाराज़ है कि भारत ने हसीना को अपने यहां शरण दी हुई है। इधर हसीना ने भी यूनुस सरकार की कड़ी आलोचना की है, जिसका खूब प्रचार किया जा रहा है। हसीना के मौखिक हमले ने भारत में उनकी उपस्थिति को जगज़ाहिर कर दिया, जिस पर नई दिल्ली ध्यानपूर्वक खामोशी इख्तियार किये हुई थी। भारत की औपचारिक नीति दूसरों के मामले में हस्तक्षेप न करने की है और यही उम्मीद वह अपने साथी देशों से भी करता है। लेकिन भारत में रहते हुए हसीना के मुंह खोलने से भारत का डिप्लोमेटिक बोझ बढ़ गया है, जोकि उनके किसी भी एक्शन को न खुलकर समर्थन दे सकता है और न विरोध कर सकता है। ध्यान रहे कि भारत-समर्थित कुछ प्रोजेक्ट्स भी अधर में लटक गये हैं, जिनमें अडानी समूह का पॉवर प्रोजेक्ट भी है।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर

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