पुन: पटरी पर आए भारत एवं चीन के संबंध
भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की चीन की संक्षिप्त यात्रा से दोनों देशों के रिश्तों में एक और अहम कड़ी जुड़ गई है। वर्ष 1962 में चीन ने सीमा विवाद को लेकर भारत पर हमला किया था। उस समय के बाद दोनों देशों के संबंध बनते एवं टूटते रहे हैं। भारत की तत्कालीन सरकारों ने अपने हालात के दृष्टिगत भारत को चीन का मुकाबला करने के लिए लगातार तैयार किया है। आज भी चाहे चीन की सैनिक शक्ति अनुमान अनुसार भारत से अधिक है परन्तु भारत उसके मुकाबले में दृढ़ता के साथ खड़ा दिखाई दे रहा है।
चीन भारत के उन पड़ोसियों की मदद करता रहा है, जिनके संबंध भारत के साथ सुखद नहीं रहे। दूसरी तरफ स्वयं को एक बड़ी शक्ति बनाये रखने एवं अपनी आर्थिक मज़बूती के लिए आज चीन विश्व भर के देशों से व्यापार कर रहा है। भारत के साथ भी उसके यह संबंध एक अच्छे स्तर पर बने रहे हैं। चीन का क्षेत्रफल भारत से कहीं अधिक है, परन्तु उसकी इस बात को समझना कठिन प्रतीत होता है कि वह अपने पड़ोसी देशों से, खास तौर पर चीन सागर से लगते दर्जन भर देशों से अपने संबंधों के मामले में अपनी विस्तारवादी हवस का प्रकटावा क्यों करता आया है? यदि उसकी ऐसी नीयत नहीं होती तो भारत के साथ भी उसके संबंध सुधर गए होते तथा सीमाओं के लगातार लटकते आ रहे मामले भी हल हो जाते। चीन की ऐसी नीयत के कारण ही अक्सर भारत के साथ उसके संबंध बिगड़ते रहे हैं।
पिछले लगभग पांच वर्षों से पूर्वी लद्दाख में सीमा के मामले पर भारत के साथ टकराव बना रहा है। इसी क्रम में जून 2020 में गलवान घाटी में दोनों देशों के सीमांत सैनिकों में रक्तिम टकराव हुआ था। जिसके बाद दोनों देशों के संबंध एक बार फिर बुरी तरह बिगड़ गए थे। आपसी व्यापार पर भी बड़ा प्रभाव पड़ा था। अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर भी दोनों देश एक-दूसरे के विरुद्ध खड़े दिखाई देते थे, परन्तु इसी वर्ष अक्तूबर मास में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी-जिनपिंग की रूस के कज़ान में ब्रिक्स सम्मेलन के दौरान आपसी बैठक हुई थी, इसके बाद भारत के विदेश मंत्री जयशंकर और चीन के विदेश मंत्री वांग यी की ब्राज़ील में हुई जी-20 सम्मेलन के दौरान भेंटवार्ता ने आपसी संबंधों में और सुधार के संकेत दिए थे। इसके साथ-साथ गलवान के घटनाक्रम के बाद दोनों देशों की सैनिक स्तर पर डेढ़ दर्जन बैठकें हुई थीं, जिससे अंतत: पूर्वी लद्दाख की सीमाओं पर दोनों देशों के सैनिकों की ओर से की जाने वाली गश्त का रास्ता कुछ सीमा तक साफ हो गया था।
अब अजीत डोभाल एवं चीनी विदेश मंत्री वांग यी की पेइचिंग में हुई बैठक के दौरान दोनों देशों के मध्य 6 मामलों पर सहमति बनी है, जिनमें सीमाओं पर शांति स्थापित करने के साथ-साथ आपसी व्यापार बढ़ाना, नाथुला की सीमा से व्यापार पुन: शुरू करना, लगातार दोनों देशों के संबंधों को पुन: पटरी पर लाने के लिए यत्न तेज़ करना तथा कैलाश मानसरोवर की यात्रा को पुन: शुरू करना आदि शामिल हैं। इसके साथ ही दोनों देशों के बीच बहने वाली नदियों को लेकर भी सहयोग बढ़ाने की सहमति बनी है। भारत और चीन एशिया के दो बड़े देश हैं, जिनमें आपसी सहयोग समूचे क्षेत्र को प्रभावित करने की समर्था रखता है। दोनों देशों में शुरू हुए इस नये दौर का स्वागत करना बनता है।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द