विकास ही है नक्सलवाद की समस्या का समाधान

नक्सलवाद एक दंश है, एक नासूर है। सच तो यह है कि ‘लाल आतंक’आज हमारे देश के लिए एक बड़ी चुनौती है। हाल ही में नक्सलियों के हमले में छत्तीसगढ़ के बीजापुर में एक आईईडी ब्लास्ट में डीआरजी(डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड) के 8 जवान शहीद हो गए। इस हमले में ड्राइवर की भी मौत हो गई। यह बहुत ही दुखद घटना है और नक्सलियों की यह बहुत ही कायराना हरकत है। नए साल पर नक्सलियों ने बड़ा खूनी खेल खेला। मीडिया के हवाले से खबरें आई हैं कि पुलिस की एक टीम छत्तीसगढ़ के नारायणपुर से एक सर्च ऑपरेशन के बाद वापिस लौट रही थी और इस दौरान एक पुलिस वाहन को नक्सलियों ने उड़ा दिया। साल.2025 की शुरुआत में यह नक्सलियों का एक बड़ा हमला है। 
हमारे देश के केंद्रीय गृहमंत्री ने पिछले साल ही यह दावा किया था कि मार्च 2026 तक देश से नक्सलवाद का सफाया हो जाएगा, लेकिन इसी बीच नक्सलियों का यह बड़ा हमला होना दर्शाता है कि नक्सलवाद आज भी एक बड़ी व गंभीर चुनौती है। जानकारी के अनुसार नक्सलवाद की शुरुआत पश्चिम बंगाल के दार्जलिंग जिले के नक्सलबाड़ी गांव से हुई थी। जानकारी मिलती है कि किसानों के शोषण के विरोध में शुरू हुए एक आंदोलन ने ही नक्सलवाद की नींव रखी थी। ज़िमींदारों द्वारा छोटे किसानों पर किये जा रहे के अत्याचार/उत्पीड़न पर अंकुश लगाने के लिये भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के चारू मजूमदार, कानू सान्याल और कन्हाई चटर्जी जैसे कुछ नेता सामने आये थे। कुछ लोगों द्वारा गुरिल्ला युद्ध के ज़रिये राज्य को अस्थिर करने के लिये हिंसा का इस्तेमाल किया जाता है, इसे ही नक्सलवाद कहा जाता है। उल्लेखनीय है कि भारत में ज़्यादातर नक्सलवाद माओवादी विचारधारा पर आधारित रहा है। 
यहां यह भी एक तथ्य है कि भारत में जहां वामपंथी आंदोलन पूर्व सोवियत संघ से प्रभावित था, वहीं आज का माओवाद पड़ोसी चीन से प्रभावित है। यह मौजूदा माओवाद हिंसा और ताकत के बल पर समानांतर सरकार बनाने का पक्षधर रहा है। इसके अलावा अपने उद्देश्य के लिये ये किसी भी प्रकार की हिंसा को उचित मानते हैं। बहरहाल, यह विडम्बना ही है कि आज नक्सलवाद ने देश के कई हिस्सों को अपनी जद में ले लिया है और नक्सली समय-समय पर हमले करके देश के सुरक्षा बलों, नेताओं व आमजन को नुकसान पहुंचा रहे हैं।  वर्ष 1967 से शुरू हुए नक्सलवाद ने अब तक कई हमले किए हैं, जिनमें अनेक लोग मारे जा चुके हैं। वास्तव में नक्सलवाद का सबसे वीभत्स/खतरनाक रूप तब सामने आया था जब 1 अक्तूबर, 2003 को नक्सलियों ने आंध्र प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू के एक काफिले पर हमला किया था और इसके बाद आंध्र सरकार ने राज्य में नक्सलियों के खिलाफ  एक बड़ा अभियान छेड़ा था। जानकारी मिलती है कि उसी साल आंध्र प्रदेश में 246 नक्सलियों की मौत हुई थी। 
 नक्सलियों का उभार किस कदर है इसका अंदाज़ा मात्र इस बात से ही लगाया जा सकता है कि नक्सलवाद के कारण अकेले ओडिशा में वर्ष 2005 से लेकर वर्ष 2008 के बीच 700 लोगों की हत्या हुई थी। 12 जुलाई, 2009 को राजनांदगांव के मानपुर थाना में नक्सली हमले में एक पुलिस अधीक्षक समेत 29 पुलिसकर्मी शहीद हुए थे। इसी तरह छह अप्रैल, 2010 को बस्तर के ताड़मेटला में सीआरपीएफ  के जवान गश्त के लिए निकले थे, जहां नक्सलियों की बिछाई गई बारूदी सुरंग में हुए एक विस्फोट में 76 जवान शहीद हो गए थे। इसके अलावा भी अनेक हमलों में सरक्षों बलों के जवान शहीद हो चुके हैं।
बहरहाल, यहां प्रश्न यह उठता है कि आखिर नक्सलवाद के कारण क्या हैं? इस संबंध में नक्सलियों का यह कहना है कि वे उन आदिवासियों और गरीबों के लिये लड़ रहे हैं जिनकी सरकार ने दशकों से अनदेखी की है। वे ज़मीन के अधिकार एवं संसाधनों के वितरण के संघर्ष में स्थानीय सरोकारों का प्रतिनिधित्व करते हैं। जानकारी मिलती है कि माओवादी प्रभावित अधिकतर वे इलाके हैं, जहां सड़कें, पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोज़गार की बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। इन इलाकों में अधिकांशतया आदिवासी बहुल लोग रहते हैं। विभिन्न सार्वजनिक और निजी कम्पनियों ने इन इलाकों में प्राकृतिक संपदा का जमकर दोहन किया है। इतना ही नहीं, विभिन्न आर्थिक कारणों से भी नक्सलवाद उभरा है। यह भी एक तथ्य है कि अशिक्षा और विभिन्न विकास कार्यों की उपेक्षा ने स्थानीय लोगों एवं नक्सलियों के बीच गठबंधन को मज़बूत बनाया है।  सामाजिक विषमता ने भी संघर्ष को जन्म दिया है। सरकार द्वारा बनाई जाने वाली विभिन्न योजनाओं के क्रियान्वयन में गंभीरता, निष्ठा व पारदर्शिता का अभाव भी नक्सलवाद के एक कारण के रूप में उभर कर सामने आया है। 
ऐसा नहीं है कि सरकार ने नक्सलवाद को खत्म करने के लिए प्रयास नहीं किए हैं। सच तो यह है कि नक्सलवाद को खत्म करने के लिए समय-समय पर केंद्र सरकार और राज्य सरकारों ने कई बड़े ऑपरेशन चलाए हैं और नक्सलियों को मुख्यधारा में लाने के लिए भी कई अभियान भी चलाए हैं। इस संबंध में ऑपरेशन ‘समाधान’ भारत में नक्सली समस्या को हल करने के लिये गृह मंत्रालय द्वारा शुरू की गई एक पहल है। 
वास्तव नक्सलवाद की बड़ी वजह आर्थिक और सामाजिक विषमता रही है। यह विडम्बना ही है कि आज विभिन्न सियासी दल नक्सलवाद को एक चुनावी तवे की तरह इस्तेमाल करते हैं और मौका मिलते ही इस पर अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने की कोशिशें करते हैं। ऐसे राजनीतिक दलों को यह चाहिए कि वे अपने स्वार्थ से बाहर निकल कर देश हित में काम करें। सच तो यह है कि नक्सलवाद की समस्या किसी व्यक्ति विशेष, सरकार विशेष की समस्या नहीं है, अपितु यह पूरे देश की समस्या है। इससे निजात पाने के लिए सभी को एकजुट होकर आगे आना होगा। विकास ही नक्सलवाद को खत्म कर सकता है। (युवराज)

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