कहीं अमरीका को ही न भारी पड़ जाए ट्रम्प का टैरिफ युद्ध !
अमरीका के राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प ने व्यापार युद्ध छेड़ दिया है। उन्होंने सोशल मीडिया पर अपनी पोस्ट में कहा कि ‘अमेरिकियों को सुरक्षित रखने के लिए’ टैरिफ की आवश्यकता है। अपने ‘युद्ध’ के पहले चरण में ट्रम्प ने अपने ही तीन बड़े व्यापार पार्टनर्स- मैक्सिको, कनाडा व चीन से आयात होने वाली वस्तुओं पर टैरिफ में ज़बरदस्त वृद्धि की है और अनुमान यह है कि वह भारत के पीछे भी पड़ेंगे। इसलिए नई दिल्ली को चाहिए कि अभी से अन्य देशों के साथ व्यापार समझौते करने आरंभ कर दे। ट्रम्प ने संकेत दिया है कि वह अगला वार 27-देशों वाले यूरोपीय संघ पर करेंगे, लेकिन यह नहीं बताया कि कब।
दरअसल, अपने पुराने सहयोगियों पर दबाव डालकर ट्रम्प अन्य देशों को प्रोत्साहित कर रहे हैं कि वह अमरीका को एक किनारे करके व्यापार ब्लॉक बनाना शुरू कर दें। यह सब ऐसे समय हो रहा है जब आर्थिक शक्ति शिफ्ट हो रही है- चीन अब बहुत बड़ा खिलाड़ी है और भारत की हैसियत भी बढ़ती जा रही है। गौरतलब है कि ट्रम्प के जवाब में कनाडा ने भी टैरिफ में इज़ाफा कर दिया है। उसने भी 155 बिलियन डॉलर की अमरीकी गुड्स पर 25 प्रतिशत टैरिफ लगाया है, जिसमें से 30 बिलियन डॉलर की गुड्स पर यह टैरिफ 4 फरवरी 2025 से लागू हो गया है और शेष 125 बिलियन डॉलर की गुड्स पर 21 दिन बाद से लागू होगा। उधर मैक्सिको की राष्ट्रपति क्लौडिया शेनबौम ने अपने वित्तमंत्री को जवाबी कार्यवाही करने के लिए कहा है, जिसके बाद अमरीका ने मैक्सिको पर टैरिफ को एक माह के लिए रोक दिया है।
व्यापार में ट्रम्प को खुश करना कठिन है। साल 2018 में उन्होंने भारत को ‘टैरिफकिंग’ कहा था। जब भारत ने ट्रम्प की प्रिय बाइक्स हार्ले पर आयात ड्यूटी घटाकर 50 प्रतिशत कर दी थी, तब भी उन्होंने कहा था, ‘हमें कुछ नहीं मिलता है, वो (मोदी) 50 प्रतिशत ले जाते हैं और वो सोचते हैं कि जैसे हम पर कोई एहसान कर रहे हैं।’ इसलिए नई दिल्ली ट्रम्प से शुक्रिया की उम्मीद न करे कि उसने अपने 1 फरवरी 2025 के बजट में बाइक्स पर कस्टम ड्यूटी में अतिरिक्त कटौती करते हुए उसे 40 प्रतिशत कर दिया है, खासकर जब ट्रम्प के दाहिने हाथ एलोन मस्क को कुछ नहीं मिला है। हालांकि भारत सरकार ने महंगी आयात कारों पर कस्टम ड्यूटी में इस बार कटौती की है, मसलन, मस्क की टेस्ला पर 70 प्रतिशत कटौती की गई है, लेकिन शैतान तो पृष्ठभूमि में है- 40 प्रतिशत सेस के कारण कुल टैरिफ में कोई परिवर्तन हुआ ही नहीं है। संयोग देखिये, भारत ने जिस दिन आयतित कारों व बाइक्स पर छूट दी उसी दिन ट्रम्प ने अपने तीन टॉप ट्रेडिंग पार्टनर्स- मैक्सिको, कनाडा व चीन के विरुद्ध टैरिफ जंग छेड़ दी, बावजूद इसके कि ऐसा करने से अमरीका में महंगाई का दबाव बढ़ जायेगा।
समीक्षकों का कहना है कि टैरिफ में हर प्रतिशत पॉइंट वृद्धि पर उपभोक्ता गुड्स के दामों में 0.1 प्रतिशत का इज़ाफा हो जायेगा। इसके बावजूद ट्रम्प ने मैक्सिको व कनाडा से आयात होने वाली गुड्स पर 25 प्रतिशत टैरिफ थोपा और चीन की गुड्स पर 10 प्रतिशत टैरिफ लगाया। एक तरह से ट्रम्प महंगाई कम करने के अपने चुनावी वायदे से मुकर रहे हैं। ट्रम्प को जैसे-को-तैसा की भी परवाह नहीं है। यह कोई अक्लमंदी नहीं है कि आप मेज़ पर बैठकर व्यापार समझौतों को फाड़कर कूड़ेदान में फेंकते रहो। ध्यान रहे कि एक बार ट्रम्प ने कहा था, ‘व्यापार युद्ध अच्छे होते हैं और उन्हें आसानी से जीता जा सकता है।’ यह अलग बात है कि जब 2018 में उन्होंने यूरोपीयन स्टील व एल्युमीनियम पर टैरिफ में वृद्धि की थी तो जवाबी कार्यवाही में यूरोपीय संघ ने अमरीका की बाइक्स पर टैरिफ बढ़ा दिया था और मजबूरन हार्ले को अपना उत्पादन थाईलैंड में शुरू करना पड़ा था। अमरीका, दरअसल, व्यापार घाटे से जूझ रहा है, जो 2022 में 951 बिलियन डॉलर था और 2023 में 773 बिलियन डॉलर था। भारत के साथ यह घाटा कुछ खास नहीं है, वित्त वर्ष 2023-24 में मात्र 35 बिलियन डॉलर।
शायद यही कारण है कि 1 फरवरी को ट्रम्प ने भारत के खिलाफ व्यापार युद्ध नहीं छेड़ा। लेकिन ‘भारत बहुत चार्ज करता है’ का रोना रोने के बाद ट्रम्प नई दिल्ली को फ्री पास देने वाले नहीं हैं। सवाल यह है कि भारत ट्रम्प के दबाव में झुक जाये या मुकाबला करे? हालांकि भारत चीन या यूरोपीय संघ की तरह आर्थिक रूप से मज़बूत नहीं है, लेकिन जब मेक्सिको व कनाडा भी ट्रम्प को मुंह तोड़ जवाब दे रहे हैं तो भारत को भी पीछे नहीं रहना चाहिए। हालांकि भारत को इस समय अधिक व्यापार की ज़रूरत है, लेकिन उसे किसी भी सूरत में ट्रम्प के सामने झुकना नहीं चाहिए। समय निकालना अच्छी योजना हो सकती है और इस समय का सदुपयोग अन्य देशों व ब्लॉक से बेहतर व्यापार समझौते करने में किया जाना चाहिए। ट्रम्प के कार्यकाल के पहले वर्ष (2017) से ही यूरोपीय संघ, चीन व अन्य व्यापार समझौते करने की दौड़ में शामिल रहे हैं। भारत ने ऐसा नहीं किया। लेकिन शुरुआत करने के लिए अब भी देरी नहीं हुई है। बहरहाल, ट्रम्प द्वारा ग्लोबल व्यापार युद्ध छेड़ने का नतीजा यह हुआ है कि अनेक देश, जिनमें अमरीका के करीबी सहयोगी भी शामिल हैं, बिना अमरीका के अपने आर्थिक समझौते कर रहे हैं। अगर वाशिंगटन अपने व्यापार के इर्दगिर्द ऊंची दीवार खड़ी कर रहा है, तो बाकी देश अपनी दीवारों को छोटा कर रहे हैं। अपने पुराने साथियों को टैरिफ सज़ा देकर ट्रम्प अन्य देशों को प्रोत्साहित कर रहे हैं कि वह अमरीका के बिना ट्रेडिंग ब्लॉक बनाएं।
ध्यान रहे कि अमरीका ने जो रूस पर पाबंदियां लगाई थीं, उनका भी अनेक देशों ने पालन नहीं किया था और भारत व चीन ने रूस से सस्ता तेल खरीदा। इस सबका यही अर्थ है कि नई विश्व व्यवस्था में अमरीका की दादागीरी कमज़ोर पड़ती जा रही है, वह अलग थलग पड़ रहा है या उसे किया जा रहा है और ट्रम्प के बेतुके फैसले उसे अतिरिक्त अकेला कर रहे हैं। इसलिए यह सोचने की बात है कि ट्रम्प अमरीका को फिर से महान बना रहे हैं या हाशिये पर डाल रहे हैं?
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर