ज़रूरी है ज़िम्मेदारी का एहसास

राष्ट्रपति के धन्यवाद प्रस्ताव पर लोकसभा में हो रही बहस में भाग लेते हुए विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने सदन में कुछ ऐसी बातें प्राथमिक रूप में की हैं, जो कई गम्भीर सवाल खड़े करती हैं। इनमें से कुछ ऐसी टिप्पणियां भी हैं जो गम्भीर मामलों पर बेहद हलकी प्रतीत होती हैं। एक राष्ट्रीय पार्टी के नेता की ओर से संसद में कोई भी बात करना बड़ा महत्त्व रखता है। इसमें तथ्यों के आधार पर गम्भीर चिन्तन भी शामिल होना ज़रूरी है। इतने महत्त्वपूर्ण मंच से सम्बोधित करने से पहले किसी भी वरिष्ठ नेता के लिए पूरी तैयारी किए जाने की ज़रूरत होती है। 
यहां जो अहम मामले राहुल गांधी ने उठाये हैं, उनमें अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के शपथ ग्रहण समारोह से पहले भारत के विदेश मंत्री की वाशिंगटन  यात्रा का उल्लेख भी शामिल है। राहुल गांधी के अनुसार यह यात्रा प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी को डोनाल्ड ट्रम्प के शपथ ग्रहण समारोह में भाग लेने के लिए की गई थी। इसलिए कि अमरीकी प्रशासन को प्रेरित किया जाए कि वह इस समारोह में उपस्थित होने के लिए प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी को निमंत्रण पत्र भेजें। विदेश मंत्री जयशंकर ने राहुल गांधी की इस टिप्पणी पर कड़ी आपत्ति प्रकट करते हुए इसे झूठ का पुलिंदा कहा है तथा राजनीति से प्रेरित बताया है। विदेश मंत्री जयशंकर ने यह भी कहा है कि ऐसी हलकी टिप्पणियों से विदेशों में देश का सम्मान कम होता है। उन्होंने इसका विवरण देते हुए कहा कि उनकी पिछले वर्ष 24 दिसम्बर से 29 दिसम्बर तक की अमरीकी यात्रा के दौरान वह वहां के विदेश सचिव तथा कुछ अन्य अधिकारियों से मिले थे जिसका पूर्ण विवरण उन्होंने दिया। इसके साथ ही लोकसभा में सम्बोधित करते हुए राहुल गांधी ने अपने इस आरोप को पुन: दोहराया है कि चीन ने भारत के 4 हज़ार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर कब्ज़ा कर लिया है। इसका अभिप्राय यह है कि इस बात को सरकार छिपा रही है। हम एक बड़ी राष्ट्रीय राजनीतिक पार्टी के वरिष्ठ नेता से ऐसी टिप्पणी की उम्मीद नहीं करते। यदि उनके पास कोई प्रमाण हैं तो ऐसे समय में वे बताने ज़रूरी हैं। बिना प्रमाणों से तथ्य-रहित ऐसी टिप्पणी राष्ट्रीय प्रतिष्ठा को नुक्सान पहुंचाने वाली बात है। जहां तक चीन के भारतीय क्षेत्र पर कब्ज़े का संबंध है, उसका पहले हमला जवाहर लाल नेहरू की कांग्रेस पार्टी की सरकार के समय ही हुआ था। वैसे भी चीन द्वारा भारत की अधिक से अधिक ज़मीन कांग्रेस की सरकारों के समय ही कब्ज़ाई गई थीं। इसके बावजूद उनके पिता तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी सहित समय-समय पर बड़े-छोटे पदों पर बैठे कांग्रेसी नेताओं ने चीन को प्राथमिकता देते हुए वहां के दौरे करने के लिए लाइनें लगाई हुई थीं। हम समझते हैं कि पिछले समय में केन्द्र सरकार ने हर समय तथा हर मुहाज़ पर चीन  के संबंध में कड़ा रवैया अपनाया है तथा किसी भी तरह सरकार ने झुक कर चीन के साथ कोई समझौता नहीं किया। राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ओर से शुरू किए गए कार्यक्रम ‘मेक इन इंडिया’ के भी विफल होने की बात की है।
हम समझते हैं कि हर तरह के उत्पादन के क्षेत्र में नरेन्द्र मोदी की सरकार ने बड़ी सफलताएं प्राप्त की हैं। प्रतीत होता है कि राहुल गांधी महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में हुई पार्टी की हार से अभी तक सम्भले नहीं तथा उन्होंने चुनाव आयोग के विरुद्ध पुन: अनियमितताएं किए जाने के आरोप लगाने शुरू कर दिए हैं, जिनके संबंध में वह कोई तथ्य पेश करने से हमेशा असमर्थ रहे हैं। जिन स्थानों पर कांग्रेस पार्टी जीत प्राप्त करती रही, वहां उनके अनुसार आयोग की कार्रवाई ठीक होती है तथा जहां कांग्रेस हार जाती है, वहां उन्हें चुनाव आयोग की ओर से चुनावों में हेरा-फेरी होती दिखाई देने लगती है।
राहुल गांधी ने चाहे देश में फैली व्यापक स्तर पर बेरोज़गारी के लिए अपनी 10 वर्ष की संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार तथा मोदी सरकार दोनों को आरोपी भी ठहराया है परन्तु इसके लिए भी हम 50 वर्षों तक देश पर शासन करती रही कांग्रेस पार्टी की सरकार को अधिक दोषी समझते हैं। उस समय की शक्तिशाली रही प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी ने ‘़गरीबी हटाओ’ का नारा अपने शासनकाल में लगातार बुलंद किए रखा था परन्तु तथ्यों के अनुसार यह नारा बुरी तरह असफल हुआ दिखाई देता रहा है। जहां तक ़गरीबी एवं बेरोज़गारी का संबंध है, देश में इन बड़ी समस्याओं के हल के लिए अभी बहुत कुछ करना शेष है, परन्तु साथ ही यह भी स्मरण रखने वाली बात है कि बढ़ती जा रही जनसंख्या पर काबू पाने में भी आज़ादी के बात की तत्कालीन सरकारें असफल ही रही थीं। नि:संदेह चीन आज विश्व की बड़ी शक्ति के रूप में उभरा है परन्तु भारत अभी तक उससे कहीं पीछे खड़ा दिखाई दे रहा है। पूरे भारतीयों को पूरी दिलचस्पी और हिम्मत के साथ इस दौड़ में चीन से आगे निकलने की प्रतीज्ञा दोहरानी चाहिए, जो समय की ज़रूरत है।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द

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