हमें स्पेस का ‘डॉन’ बनाने के लिए इसरो को सलाम
इसरो ने देश को गर्व का एक और अवसर प्रदान किया है। पृथ्वी से 470 किलोमीटर की ऊंचाई पर सबने उसका यह कीर्तिमानी कमाल देखा जब उसने अपने स्पेडेक्स अर्थात स्पेस डॉकिंग एक्सपेरिमेंट को सफलतापूर्वक अंजाम दिया और आखिरकार अंतरिक्ष में दो स्पेसक्राफ्ट या उपग्रहों को एक साथ जोड़ने में कामयाब पा ली। हालांकि जुड़ने के बाद इन दोनों के बीच विद्युत आपूर्ति तथा फिर सफलता पूर्वक अलग करने का काम अभी बाकी है, पूरी उम्मीद है वह भी शीघ्र ही सफलतापूर्वक सम्पन्न होगा। पृथ्वी की निचली कक्षा में एक अंतरिक्ष यान के दूसरे से जुड़ने की प्रक्रिया को डाकिंग और अलग होने की स्थिति को अनडॉकिंग कहते हैं। भविष्य में मानवयुक्त अंतरिक्ष मिशनों के यह लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण तकनीक अब रूस, अमरू, चीन के बाद संसार में सिर्फ अपने पास है। ठीक है कि विश्व की तीन महाशक्तियां अमेरिका ने यह कारनामा 58 साल, रूस ने 57 और चीन ने 13 बरस पहले कर लिया था पर भारत की यह सफलता इसलिए प्रशंसनीय है कि जब अंतरिक्षीय सहयोग से संबद्ध तमाम अंतरराष्ट्रीय अनुबंधों और समझौतों के बावजूद किसी अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष एजेंसी या देश ने भारत से इस जटिल प्रणाली और तकनीक प्रक्रिया को साझा नहीं किया तो हमने अपना स्वदेशी डॉकिंग मैकेनिज्म को विकसित किया और इसे ‘भारतीय डॉकिंग सिस्टम’ देकर इस पर अपना पेटेंट लिया। हमने रूस, अमरीका, चीन से अधिक उन्नत और किंचित अलग अंतरिक्षीय तकनीक के साथ इस परीक्षण को अंजाम दिया है। बस कुछ कदमों बाद जब इसके बाकी जटिल मन्युवरिंग के पूरे होने की खबर आयेगी तब अंतरिक्ष के क्षेत्र में हमने जो लक्ष्य निर्धारित किए हैं उनकी ज़मीन और ज्यादा पुख्ता हो जाएगी। इसमें कोई शक नहीं कि इस अभियान की सफलता के बिना अंतरिक्ष में चंद्रयान-4, मंगलयान, गगनयान के द्वारा अंतरिक्ष में मानव यात्री भेजना, अपने बूते भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन के बनाने उसे कार्यरत होने अथवा चांद या अन्य ग्रहों से नमूने लाने की अथवा अंतरिक्ष में एक से ज्यादा रॉकेट प्रक्षिप्त करने की कवायद जो विशेषकर बड़े अंतरिक्ष मिशनों के लिए महत्वपूर्ण है, इस जैसी हमारी तमाम अंतरिक्षीय महत्वाकांक्षाओं का पूरा होना कठिन था। अब इस परीक्षण की सफलता ने कई मनोरथ एक साथ सिद्ध करने का रास्ता आसान कर दिया है।
इस तकनीक के मिल जाने के बाद कक्षा में ही किसी उपग्रह की गड़बड़ी सुधारने और वहीं किसी भी स्पेसशिप की रीफ्यूलिंग का तरीका भी मिलेगा। यह सफलता इसरो का आत्मविश्वास और बढ़ाएगा तथा अंतरग्रही अभियानों, उन्नत अंतरिक्ष खोजों, भविष्य के चांद मिशनों, ग्रहों के बीच प्रवास के लिए भी पथ प्रशस्त करेगा। बीते साल इसरो ने अपने अगले डेढ़ दशक का ही रोड़मैप जारी नहीं किया था बल्कि 2040 से 2047 तक की योजनाएं सार्वजनिक कीं थीं। इसमें अगले साल 2026-27 में गगनयान की दूसरी ह्यूमन फ्लाइट और 2028-29 में तीसरी ह्यूमन फ्लाइट के भेजने की बात है। उसक इरादा है कि 2029 तक तीन मानवयुक्त यान भेजे तथा इनकी सफलता के आंकलन तथा आपेक्षित सुधार के बाद 2030 में आखिरी गगनयान मिशन-5 यानी ल्यूपेक्स के जरिए अंतरिक्ष यात्रियों को स्पेस में पहुंचाया और वापस ले आया जाये। 2035 तक पांच मॉड्यूल वाला अपना अंतरिक्ष स्टेशन बनाने की योजना है, पहला मॉड्यूल साल 2028 में लॉन्च होगा, इसके बाद बाकी। इन्हें अंतरिक्ष में एक साथ जोड़ना इसी तकनीक से संभव होगा।
स्पेस स्टेशन बनाने और उसके बाद वहां जाने-आने तथा धरती से आपूर्ति पहुंचाने के लिये भी इस तकनीक की आवश्यकता रहेगी। 2037-38 में चंद्रमा की सतह पर भारतीय रोबोटिक ह्यूमनॉइड उतारने की योजना इसरो ने तैयार कर ली है। वह 2040 में चंद्रमा पर मानव सहित यान भेजने, उसकी सतह पर पहला भारतीय कदम रखने और इसके बाद क्रू मॉड्यूल को सुरक्षित रूप से समुद्र में लैंड कराने की अपनी इस महत्वाकांक्षी योजना में लगा हुआ है। अंतरिक्ष यात्री को चंद्रमा पर पहुंचाने या उससे पहले चंद्रयान-4 मिशन के तहत चांद से नमूने लाने के लिए भी अंतरिक्ष में एक यान से दूसरे यान से अलग होना और उसके बाद वापस लौटने वाले यान से जुड़ना ज़रूरी है सो यह तकनीक उसके लिए भी अनिवार्य थी। अंतरिक्ष में जाम की वजह से 30 दिसम्बर की रात स्पेडेक्स की लांचिंग में दो मिनट का विलंब हुआ था, समान कक्षा में उसी पथ पर कुछ दूसरे उपग्रह भी मौजूद थे। अंतरिक्ष में कार्यक्षम के अलावा निष्क्रिय उपग्रहों की भी भारी भीड़ है। निजी कंपनी स्टरलिंक के 7 हजार संचार उपग्रह जल्द बढ़कर 12 हजार पहुंचने वाले हैं तो हजारों दूसरे निष्क्रिय हो मलबे तौर पर हैं।
इस अंतरिक्षीय कचरे की समस्या से निबटने में स्पेडेक्स परीक्षण एक समाधान बन सकता है। इसके सैटेलाइट रोबोटिक आर्म के जरिए किसी उपग्रह या क्यूबसेट को पकड़कर अपनी ओर खींचा और न सिर्फ कक्षा में भटके उपग्रहों को सही जगह लाया जा सकता है बल्कि निष्क्रिय उपग्रहों के मलबे को दूर किया जा सकता है। स्पेडेक्स अभियान के दौरान वास्तविक परिस्थितियों में कुछ विशेष परीक्षण भी किए जाएंगे जैसे डॉकिंग के अंतिम चरण का परीक्षण करने के लिए डॉकिंग मैकेनिज्म परफॉर्मेंस टेस्ट, नियंत्रित परिस्थितियों में डॉकिंग तंत्र का परीक्षण करने के लिए वर्टिकल डॉकिंग एक्सपेरिमेंट लेबोरेटरी और रीयल टाइम सिमुलेशन के साथ रेंडेज़वस सिमुलेशन लैब जो इसके एल्गोरिदम को जांच सकेगा। इनके अलावा सटीक माप लेने वाले कई नए सेंसर जैसे लेजर रेंज फाइंडर, रेंडेज़वस सेंसर और डॉकिंग सेंसर का परीक्षण भी लगे हाथ हो जायेगा, इसी दौरान एक नितांत नए प्रोसेसर को भी आजमाया जाएगा। इस अभियान में साथ गए इसरो के 14 और गैर-सरकारी संस्थाओं, स्टार्टअप और शैक्षणिक संस्थानों के 10 पेलोड अंतरिक्ष में विकिरण, के अलावा वहां की माइक्रोग्रेविटी संबंधित कई प्रयोग करेंगे। इनसे करीब दो साल तक उपयोगी आंकड़े मिलते रहेंगे जो भविष्य के मिशनों के लिए ऑटोनॉमस सिस्टम बनाने के काम आएंगे।
पहली बार मल्टीस्पेक्ट्रल पेलोड का इस्तेमाल प्राकृतिक संसाधनों और वनस्पति की निगरानी के लिए करते हुए जैविक प्रयोग के तहत वहां लोबिया के 8 बीज उगाए जाएंगे, पौधे की बढ़त आंकी जाएगी। इसरो ने 30 दिसम्बर 2024 को लॉन्च स्पेस डॉकिंग एक्सपेरिमेंट मिशन के तहत दो उपग्रहों को पृथ्वी की निचली कक्षा में एक-दूसरे को नियत दूरी पर रखकर एक को टारगेट और दूसरे को चेजर के तौर पर 7 जनवरी को जोड़ने का तय किया था, लेकिन इसे टाला, फिर 9 जनवरी को भी तकनीकी दिक्कतों के कारण डॉकिंग टली यहां तक कि 12 जनवरी को दोनों स्पेसक्राफ्ट्स को 3 मीटर तक पास लाने के बाद वापस इन्हें सुरक्षित दूरी पर ले जाया गया। तब यह कयास था कि अब डॉकिंग कहीं मार्च में ही संभव हो पाये पर धरती से 470 किलोमीटर दूर, किसी बुलेट की तकरीबन दस गुना यानी 28,800 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चक्कर काटते उपग्रहों को जमीन से नियंत्रित कर, डॉकिंग करने के साथ अंतत: इसरो ने अपने कौशल से एक इतिहास बना दिया। अब बचता है इलेक्ट्रिकल पावर ट्रांसफर का काम और फिर स्पेसक्राफ्ट्स की अनडॉकिंग। अब आगे इसरो के महत्वपूर्ण लक्ष्यों में से एक है 2047 से पहले रीयूजेबल रॉकेट बना लेना। नि:संदेह उसकी प्रगति को देखकर यह सफलता भी निश्चित लगती है। फिलहाल यह कामयाबी केवल अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारत की बढ़ती सशक्त स्थिति को दर्शाता है बल्कि ये देश की भविष्य की अंतरिक्ष महत्वाकांक्षाओं के लिए भी एक मजबूत आधार प्रदान करता है। विशेषत: उस दौर में जब अंतरिक्ष, वैश्विक भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा का नया क्षेत्र बन गया हो और प्रतिद्वंदिता बढ़ती जा रही हो।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर